-सिटी में पॉलिथीन की रिसाइकलिंग की कोई योजना नहीं
-सड़कों के किनारे फैले रहते हैं पॉलिथीन
-घट रहा अंडर ग्राउंड वाटर लेवल, जहरीली हो रही है नदियां
GORAKHPUR: सिटी में रोजाना ख्000 किलो पॉलिथीन का यूज होता है। यह गोरखपुराइट्स के लिए धीमे जहर का काम कर रहा है, लेकिन लोगों को इसका अभास नहीं हो है। यह प्लास्टिक का ही कुप्रभाव है कि सिटी का वाटर लेवल लगातार गिरता जा रहा है। नदियों का पानी इंसानों और जानवरों दोनों के लिए जहरीला होता जा रहा है, लेकिन जिम्मेदार हैं कि कान मेंरुई डाल कर बैठे हैं।
जल, जमीन और नदी पर प्लास्टिक की मार
नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग की मानेंतो सिटी में रोजाना भ्98 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। इसमें से लगभग ख्00 मीट्रिक टन पॉलिथीन कचरा रहता है। यह पॉलिथीन सिटी की सड़कों, नालों और नदी के किनारे फैला रहता है। इधर-उधर फैला पॉलिथीन सिटी के जल, जमीन और नदी को प्रदूषित कर रहा है। महेसरा पुल और राजघाट पुल के एकला बांध पर पूरे साल कूड़े के साथ पॉलिथीन कचरा गिराया जाता है। बारिश के बाद जब राप्ती नदी में बाढ़ आती है तो नदी में पॉलिथीन बहकर चला जाता है और मछलियाें के लिए प्राणघातक हो जाता है। यह भी एक कड़वा सच है कि सिटी के क्8 परसेंट एरिया पॉलिथीन के कारण जलजमाव का शिकार रहते हैं।
खुद की सावधानी ही है उपाय
महानगर पर्यावरण मंच के कोआर्डिनेटर जितेंद्र कुमार द्विवेदी का कहना है कि नगर निगम के पास पॉलिथीन की रिसाइकिलिंग के लिए कोई उपाय नहीं है। नगर निगम अगर पहले से सर्तक रहा होता तो यह स्थिति पैदा नहींहोती। पब्लिक को इस मामले में जागरूक होने की जरूरत है। अगर पब्लिक अवेयर हो गई है तो सिटी में पॉलिथीन का रिसाइकलिंग हो सकती है। भले ही कम ही मात्रा में हो, लेकिन यह कदम ठोस पहल की ओर पहला कदम हो सकती है। उन्होंने कहा कि गीडा की एक निजी कंपनी रिसाइकलिंग का काम करती है, लेकिन अगर यह पॉलिथीन कबाडि़यों को दे दी जाए तो इसकी रिसाइकलिंग हो सकती है।
इस तरह की जा सकती है रिसाइकलिंग
- पॉलिथीन का यूज कम से कम करें।
- यूज के बाद पॉलिथीन को इधर उधर फेंकने के बजाय एक जगह एकत्र किया जाए।
- प्लास्टिक बैग को एक जगह एकत्र करें और उसे समय समय पर कबाड़ी वाले बेच दें।
-नगर निगम पॉलिथीन का यूज रोड बनाने में भी कर सकता है।
ऐसे बनेगा गोरखपुर पॉलिथीन मुक्त
सिटी में पॉलिथीन की खुलेआम बिक्री हो रही है। कानून का पालन कराने वाले नगर निगम के अफसर कोरम पूरा करने का काम करते हैं। इस कारगुजारी का अंदाजा नगर निगम की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। नगर निगम बोर्ड की पहली कार्यकारिणी ने सिटी को पॉलिथीन मुक्त बनाने के लिए इसे बैन करने का निर्णय लिया था। मेयर डॉ। सत्या पांडेय व तत्कालीन उपसभापति जियाउल इस्लाम ने इसके लिए प्रयास किया था। इनके प्रयास से ही नगर निगम कार्यालय परिसर को पॉलिथीन मुक्त किया गया था। दो माह तक नगर निगम के अफसरों ने भी सिटी को पॉलिथीन मुक्त कराने के लिए जोर आजमाइश शुरू कर दी, लेकिन अफसरों को यह चुस्ती दो ही महीने में ढीली पड़ गई। इसलिए तो पिछले एक साल में नगर निगम ने पॉलिथीन बेचने वाले मात्र म्भ् दुकानों पर जुर्माना लगाने की कार्रवाई की है। नगर निगम के अफसर अगर कार्यकारिणी के आदेश का पालन करते तो शायद आज गोरखपुर पॉलिथीन मुक्त होने की तरफ कदम बढ़ा चुका होता।
प्लास्टिक यहां है बैन
अनेक पर्वतीय राज्यों जैसे जम्मू एवं कश्मीर, सिक्किम, पश्चिम बंगाल ने पर्यटन केंद्रों पर प्लास्टिक थैलियों, बोतलों के यूज को पूरी तरह बैन कर दिया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक कानून के तहत समूचे राज्य में क्भ्.08.ख्009 से प्लास्टिक के उपयोग पर पाबंदी लगा दी है। इसको लेकर केंद्र सरकार भी प्रयासरत है। प्लास्टिक कचरे से पर्यावरण को होने वाली हानि का आकलन कराया है। इसके लिए कई समितियां और कार्यबल गठित किये गए है। पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रि-साइकिंल्ड प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर ऐंड यूसेज रूल्स, क्999 जारी किया था, जिसे ख्00फ् में, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, क्9म्8 के तहत संशोधित किया गया है ताकि प्लास्टिक की थैलियों और डिब्बों का नियमन और प्रबंधन उचित ढंग से किया जा सके। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने धरती में घुलनशील प्लास्टिक के क्0 मानकों के बारे में अधिसूचना जारी की है।
गोरखपुर में पॉलिथीन रिसाइकलिंग के लिए प्रत्यक्ष रूप से कोई संसाधन नहीं है। कोशिश की जा रही है कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के शुरू होते ही पॉलिथीन के रिसाइकलिंग की भी व्यवस्था शुरू हो जाएगी।
राजेश कुमार त्यागी, नगर आयुक्त