- पिछले साल जिन वार्ड्स में मिले थे डेंगू के मरीज, वहां अब भी नहीं प्रॉपर हुई सफाई व्यवस्था
- इन कर्मचारियों पर हर माह खर्च होता है लाखों रुपए, फिर भी गंदगी के अंबार और चोक है नालियां
- आई नेक्स्ट ने किया दो वार्ड का लाइव स्कैन
GORAKHPUR: डेंगू की दस्तक ने सिटी को हिलाकर रख दिया है। गोरखपुर में पहला पेशेंट मिलने के बाद ही डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल से लेकर मेडिकल कॉलेज तक हड़कंप मच गया। डेंगू होने के बाद इससे निपटने के लिए तो तैयारियां जोरो-शोर से चल रही हैं, लेकिन जहां इस बीमारी की बुनियाद है और जो इसके जिम्मेदार हैं, वह अब भी सोते नजर आ रहे हैं। साफ ठहरा हुआ पानी, डेंगू के मच्छरों का सबसे सेफ आशियाना है। हर गलियों और वार्डो में यह सेफ आशियाना देखने को मिल ही जाएगा। नगर निगम की लापरवाही से नालियां चोक हैं, बहने की जगह न होने से पानी सड़कों पर तैर रहा है, वहीं इसमें मच्छरों की भी भरमार लगी हुई है। ऐसे में जिम्मेदारों की अनदेखी से डेंगू का खतरा कई गुना बढ़ गया है। वार्ड्स की हकीकत जानने के लिए जब आई नेक्स्ट ने वार्ड नंबर 70 और 64 का लाइव स्कैन किया, तो चौंका देने वाले मामले सामने आए।
वार्ड नं - 70 शेषपुर
वार्ड एरिया- दो वर्ग किमी
जनसंख्या- 12 हजार
मोहल्ले- 15
तैनात सफाई कर्मचारी- 20 सरकारी और 9 आउट सोर्सिग
सफाई कर्मचारियों पर खर्च वेतन- सरकारी कर्मचारी पर हर मंथ 4.20 लाख रुपए और आउट सोर्सिग पर 76518 रुपए
दुनिया में मौजूद शहरों की भीड़ मे गोरखपुर को पहचान दिलाने वाला गीता वार्ड नंबर 70 में ही मौजूद है। वार्ड की गलियों और नालियों की सफाई के लिए नगर निगम ने इस वार्ड में कुल 29 सफाई कर्मचारियों की तैनाती की है। इतनी बड़ी तादाद में सफाईकर्मी होने के बाद मोहल्ल चमचमाता हुआ नजर आना चाहिए, लेकिन हकीकत बिल्कुल इसके परे है। जगह-जगह नालियां चोक हैं, जिनकी वजह से सड़कों पर पानी बह रहा है। वहीं कई गलियों में ऐसी नालियां हैं कि इन राहों से गुजरना किसी जंग लड़ने जैसा है। लापरवाही का आलम तब है जबकि पिछले साल ही वार्ड में डेंगू का लार्वा मिलने की पुष्टि हुई थी।
दर्जनों बार नगर निगम और पार्षद को कंप्लेन किया गया है, लेकिन हर कोई भी इन नालियों की सफाई करने के लिए नहीं आता है। गीता प्रेस रोड की स्थिति यह है कि यहां पूरे साल पानी लगा रहा है।
किशन अग्रहरि, व्यापारी
इस शहर का कोई भी माई-बाप नहीं है। पब्लिक अपनी प्रॉब्लम जब भी किसी के पास जाती है, लोग उसे दूसरे के पास भेज देते हैं। दूसरे को जिम्मेदार बताने लगते हैं। पता ही नहीं चल पाता है कि इस शहर को कूड़ाघर बनाने की जिम्मेदारी किसको है।
प्रहलाद, रेजीडेंट
अधिकतर कर्मचारी सही तरीके से काम नहीं करते हैं। कई बार कहने पर किसी एक मोहल्ले की सफाई करते हैं। इसकी वजह कूड़ा नालियों में जमा हो जाता है, जिससे नालियां चोक हो जाती हैं। इससे मार्केट में जगह-जगह वॉटर लॉगिंग की प्रॉब्लम हो जाती है।
संजीव सिंह सोनू, पार्षद
वार्ड नं - 64 बसंतपुर
वार्ड एरिया- 3 वर्ग किमी
जनसंख्या- 40 हजार
मोहल्ले-10
तैनात सफाई कर्मचारी- 22 सरकारी, 6 कैजुअल और 1 आउट सोर्सिग
सफाई कर्मचारियों पर खर्च वेतन- सरकारी कर्मचारी पर हर मंथ 3.78 लाख रुपए, 48 हजार रुपए और आउट सोर्सिग पर 8502 रुपए
सिटी का सबसे अधिक आबादी वाला वार्ड बसंतपुर है। इसमें पिछले दो साल से लगातार डेंगू के मरीज मिल रहे हैं। पिछले साल इस वार्ड के लालडिग्गी पार्क के पोखरे में हेल्थ डिपार्टमेंट को डेंगू का लार्वा मिला था। इतना गंभीर मुद्दा होने के बाद भी नगर निगम ने इस वार्ड की सफाई व्यवस्था भी भगवान भरोसे छोड़ दी है। मोहल्लों की नालियां कूड़े से जाम हो चुकी है, नालियों का पानी सड़क पर बह रहा है। नगर निगम के सफाई कर्मचारी गलियों में जाते तक नहीं है, लेकिन इस मामले में कर्मचारियों से कोई पूछने वाला ही नहीं है।
कोई भी जिम्मेदार पब्लिक की नहीं सुनता है। जब कभी पार्षद या नगर निगम के अफसरों के पास जाते हैं तो वहां से सिर्फ आश्वासन ही मिलता है। काम कब होगा इसकी कोई भी गारंटी नहीं लेता है।
अमन कुमार, रेजीडेंट
नालियां जाम होने के कारण मोहल्लों की गंदगी से पट गया। गंदगी होने की वजह से मोहल्लों में मच्छरों की संख्या बढ़ गई है। हालात यह है कि शाम को सड़कों पर खड़ा होना और रात को पानी लगने की वजह से गलियों में चलाना मुश्किल हो जाता है।
फिरोज, रेजीडेंट
मेरे वार्ड की सफाई की सबसे बड़ी प्रॉब्लम हैं। इसकी वजह कर्मचारियों में महिलाओं की संख्या अधिक होना है। वहीं 8 कर्मचारियों की कमी भी है, जिसकी वजह से प्रॉब्लम सॉल्व नहीं हो पा रही है।
विजेंद्र अग्रहरि, पार्षद