GORAKHPUR : गोरखपुर को महानगर का दर्जा तो मिल गया, मगर फैसिलिटीज की बात करें तो यह कस्बे के मानिंद है। यहां लोग बस रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। ऐसे में जब गोरखपुराइट्स के दिल को टटोला गया तो उनका सिर्फ इतना ही कहना था कि हम वोट देंगे उसको, जो समझेगा गोरखपुर को।
कैसे कहें महानगर?
यहां पर महानगर वाली कोई बात है और न ही फैसिलिटी। नाक बचाने के लिए कहने को एक मॉल बन गया, मगर वह भी ऐसा कि दो कदम चलने पर ही खत्म हो जाए। खाने-पीने के लिए जहां लिमिटेड आईटम्स मिलते हैं, वहीं इन चीजों की मिलने वाली जगह भी गिनती की हैं। करीब क्क् लाख की आबादी वाले गोरखपुर में एंटरटेनमेंट के नाम पर एक मल्पीप्लेक्स है और एक सिनेप्लेक्स। ऐसे में वीकेंड को घर में ही स्पेशल डिशेज बनाकर, टेलीविजन के सामने बैठकर एंज्वाय करने में ही गोरखपुराइट्स अपना ज्यादा भला समझते हैं।
'धक्के' खाने को मजबूर गोरखपुराइट्स
अपने कनवेंस के बगैर सिटी में चलना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं है। कनवेंस के मामले में भी गोरखपुर आज भी पिछड़ा ही है। एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए अगर संग बाइक न हो तो रिक्शा या ऑटोरिक्शा का सहारा लेना पड़ता है। इसका सफर इतना आसान नहीं जितना आप समझ रहे हैं, क्योंकि पांच सवारी ढोने वाले ऑटोरिक्शा में क्0 पैसेंजर्स को ठूंसा जाता है। इसलिए अबकी बार वोट उसी को, जो दिलाएगा इससे राहत। गोरखपुर के आस-पास सटे एरियाज में जाने के लिए लोकल बस सर्विस का प्लान कई महीनों पहले बनाया गया था, मगर आज तक यह हकीकत में तब्दील नहीं हो सका।
कहां करें मॉर्निग वॉक?
सेहतमंद और तंदरुस्त रहना भी गोरखपुराइट्स के लिए किसी बड़े चैलेंज से कम नहीं है। वह इसलिए कि सेहतमंद रहने के लिए सबसे जरूरी मार्निग वॉक करने के लिए यहां पर सही पार्क तक नहीं हैं। कुछ एरियाज के लोगों की बात छोड़ दें तो वह मॉर्निग वॉक के लिए या तो किसी स्कूल का सहारा लेते हैं या फिर गाड़ी से स्टेडियम पहुंचकर अपनी जरूरत पूरा करते हैं। कुछ पार्क की बात छोड़ दें तो सिटी के पार्क की हालत इस लायक नहीं है कि वहां पर जाकर मॉर्निग वॉक की जा सके।
एंप्लायमेंट भी सबसे बड़ा चैलेंज
गोरखपुराइट्स के लिए एंप्लायमेंट भी सबसे बड़ा चैलेंज है। इसका सबसे बड़ा जिम्मेदार इसका पिछड़ापन है। इंडस्ट्रीज होने के बाद भी यहां के लोगों को जॉब के लिए बाहर जाना पड़ता है। खराब सड़क, बिजली की कमी और अंधाधुंध कटौती ने जहां गोरखपुराइट्स को परेशान किया है, वहीं सिटी में नई कंपनियों के लिए दरवाजे भी बंद कर दिए हैं। बेसिक फैसिलिटी न होने की वजह से बड़ी कंपनीज भी सिटी में आने से कतरा रही है, जिसकी वजह से यूथ के सामने एंप्लायमेंट सबसे बड़े चैलेंज के तौर पर खड़ा हो गया है। अगर यही हाल रहा बेसिक फैसिलिटीज के अभाव में गोरखपुर वहीं का वहीं रह जाएगा और बाकी लोग कई गुना आगे पहुंच जाएंगे।
कोट -
मैं ऐसे कैंडिडेट को वोट दूंगा जो सिटी में डेवलपमेंट के लिए कुछ करे। क्योंकि यहां ऐसी कोई फैसिलिटी नहीं है, जिसके बेसिस पर इसे महानगर कहा जा सके। फै सिलिटी के नाम पर एक मॉल, एक मल्टीप्लेस और कुछ पार्क ही मौजूद हैं। इसके साथ ही जो गोरखपुर यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनवाएगा वहीं मेरा वोट पाएगा।
- डॉ। मनोज द्विवेदी, प्रोफेशनल