- जिले में हैं निषाद बिरादरी के लगभग 5 लाख वोटर्स

- पहले भी हो चुके हैं आंदोलन, नहीं मिली सफलता

- राजनीतिक पार्टियों के बीच हर बार पिस जाती है निषाद बिरादरी

GORAKHPUR : गोरखपुर में जाति आधारित राजनीति नई नहीं है। पहले भी जाति के आधार पर आंदोलन होते रहे हैं। चुनावों में जातिगत समीकरणों को देखकर ही पार्टियां प्रत्याशी तय करती हैं। निषाद बिरादरी की ओर से संडे को हुए आंदोलन के पीछे एक साल का छिटपुट संघर्ष रहा। गोरखपुर में निषाद बिरादरी की आबादी को देखते हुए हर राजनीतिक दल उसपर डोरे डालता रहा है और वोट जुटाकर सत्ता तक पहुंचने का रास्ता भी बनता रहा।

पिछले एक साल से चल रहा था संघर्ष

अपने आपको अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए पिछले एक साल से निषाद बिरादरी की ओर से छिटपुट आंदोलन चल रहा है। गोरखपुर में जब भी कोई सपा का बड़ा नेता आया, राष्ट्रीय एकता निषाद परिषद उनको ज्ञापन सौंपती रही है। लोकसभा चुनाव के पहले गोरखपुर में मुलायम सिंह की रैली का आयोजन था। प्रबंधन की जिम्मेदारी राजकिशोर सिंह को मिली था। उस समय राजकिशोर सिंह को गोलघर से आयोजन स्थल की ओर आते हुए राष्ट्रीय एकता निषाद परिषद के कार्यकर्ताओं ने घेर लिया और अपनी बात रखी। इसके अलावा हर माह निषाद बिरादरी के लोग छोटे-छोटे आंदोलन करके डीएम और कमिश्नर को ज्ञापन सौंपकर अपनी बात रखते रहे हैं। पहली बार संगठित रूप से आंदोलन की रूपरेखा बनी और उसे क्रियान्वित किया गया। हालांकि ये प्रयास शांतिपूर्ण होने की बजाय हिंसक हो गया और पब्लिक प्रॉपर्टी का काफी नुकसान हुआ।

राजनीतिक पार्टियों ने जमकर उठाया फायदा

उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जिले में सबसे अधिक निषाद बिरादरी है। जिले में 5 से 6 लाख मतदाता निषाद बिरादरी के हैं। इन मतदाताओं का राजनीतिक पार्टियों ने जमकर लाभ उठाया है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जिला पंचायत चुनाव से लेकर सांसद के चुनाव तक निषाद बिरादरी की अलग-अलग पार्टियां हैं। पंचायत के चुनाव में इनका प्रत्याशी अपनी बिरादरी का होता है तो विधान सभा में यह सपा और बसपा के साथ हो जाते हैं। गोरखपुर के दक्षिणांचल की निषाद बिरादरी बसपा के साथ हो जाती है तो उत्तरांचल के मतदाता सपा के साथ रहते हैं, वहीं लोकसभा चुनाव में वह मंदिर के साथ खड़े हो जाते हैं।

बड़ा वोटबैंक है निषाद बिरादरी

विधानसभा निषाद वोटर्स

गोरखपुर ग्रामीण 80 हजार

गोरखपुर शहर 40 हजार

पिपराइच 90 हजार

सहजनवां 50 हजार

खजनी 35 हजार

चिल्लूपार 45 हजार

बांसगांव 40 हजार

चौरीचौरा 55 हजार

रामदेव ने फूंका था संघर्ष का बिगुल

निषाद बिरादी के अधिकारों को लेकर संघर्ष का बिगुल गोरखपुर में सबसे पहले मोहद्दीपुर के रामदेव निषाद ने फूंका। 90 के दशक में शुरू हुए इस संघर्ष में विश्वविद्यालय कर्मचारी रहे रामदेव निषाद ने गोरखपुर की जनता को एकजुट करने की भरसक कोशिश की। कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि रामदेव से पहले निषाद बिरादरी गोरखनाथ मंदिर के साथ खड़ी रहती थी। रामदेव ने निषाद बिरादरी को एकजुट किया और 1989 के विधानसभा चुनाव में मानीराम विधान सभा से चुनाव लड़ा। हालांकि मामूली अंतर से वह चुनाव हार गए। उसके बाद भी वह लगातार संघर्ष करते रहे। चुनाव हारने के बाद निषाद बिरादरी कई खेमों में बंट गई।

जमुना निषाद ने दिखाया बिरादरी का दम

गोरखपुर की राजनीति में निषाद बिरादरी के सर्वमान्य नेता के रूप में स्व। जमुना निषाद एकमात्र नाम रहे। उन्होंने 1989 में खुटहन गांव के प्रधान के रूप में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की। 1992 और 1993 में निषाद बिरादरी के लिए उन्होंने जिला मुख्यालय पर आंदोलन किया। यही वह दौर था, जब वह गोरखपुर में निषाद बिरादरी के नेता के रूप में पहचाने जाने लगे। गोरखपुर में निषाद बिरादरी के वोटर्स की संख्या को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने जमुना निषाद को 1998 में अपना लोकसभा प्रत्याशी घोषित किया। अपने मजबूत वोटबैंक के दम पर जमुना निषाद ने भाजपा का गढ़ कही जाने वाली गोरखपुर सीट पर कड़ी टक्कर दी और मामूली अंतर से चुनाव हारे। सपा ने 1999 और 2004 में भी उन्हें लोकसभा प्रत्याशी के रूप में उतारा, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। फिर, 2007 में पिपराइच विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी ने जमुना निषाद को प्रत्याशी बनाया। पिपराइच एरिया में लगभग 2 लाख की आबादी निषाद बिरादरी की है। इसी के दम पर जमुना निषाद चुनाव भी जीते और मंत्री भी बने। जनता के बीच अच्छी छवि ने उन्हें मरते दम तक निषाद बिरादरी का सबसे ताकतवर नेता बनाए रखा।

राज्य सरकार एक धर्म विशेष को आरक्षण देने, उनकी बेटियों को कन्या धन देने और कब्रिस्तान के लिए धन आवंटित करने का निर्णय खुद ले सकती है तो निषाद बिरादरी को आरक्षण देने का निर्णय क्यों नहीं ले रही है? केंद्र सरकार को बेवजह बदनाम किया जा रहा है। पिछली यूपीए सरकार के दौर में और वर्तमान की एनडीए सरकार में भी मैं निषाद बिरादरी को आरक्षण देने का मुद्दा उठा चुका हूं।

योगी आदित्यनाथ, सासंद, गोरखपुर सदर

सपा अपने ही वादे से मुकरी है, जिसका परिणाम संडे को सीहापार हाल्ट में देखने को मिला। सपा के मुखिया ने चुनाव के समय और चिल्ला-चिल्लाकर निषाद बिरादरी को अनुसूचित जाति में शामिल करने की बात कही। अपने घोषणा पत्र में भी इसका जिक्र किया, लेकिन सरकार के तीन साल बीत जाने पर भी वादे पूरे नहीं किए। हम लोगों ने कमिश्नर से मिलकर पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग की है।

जयप्रकाश निषाद, विधायक, चौरीचौरा

इस तरह की घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इसकी जितनी निंदा की जाए उतनी ही कम है। इस मामले को लेकर जल्द ही गोरखपुर का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मुलाकात करेगा और निषाद बिरादरी पर हुए अत्याचार के बारे में मिलकर जानकारी देगा।

अमरेंद्र निषाद, विधायक प्रतिनिधि, पिपराइच