- डीडीयूजीयू के संवाद भवन में 'वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र-वरदान या अभिशाप' टॉपिक पर ऑर्गेनाइज हुआ सेमिनार
- सीनियर जज राकेश तिवारी ने विधिक सहायता केंद्र का किया इनॉगरेशन
GORAKHPUR: भारत वर्ष में वैकल्पिक न्याय व्यवस्था प्राचीन काल से ही चली आ रही है। रामायण और महाभारत में विवादों के निपटारे के लिए बीच-बचाव का रास्ता अपनाया जाता रहा है। किसी विवाद के दोनों पक्षकारों का हित इस व्यवस्था में निहित है। इस व्यवस्था को आम लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है। यह बातें डीडीयूजीयू के संवाद भवन में इलाहाबाद के सीनियर जज राकेश तिवारी ने कही। वह यूनिवर्सिटी में 'वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र'-'वरदान या अभिशाप' टॉपिक पर ऑर्गेनाइज सेमिनार में बतौर चीफ गेस्ट मौजूद थे।
ताकि मुकदमें का बोझ हो कम
इस दौरान सत्र एवं जिला न्यायाधीश रंगनाथ पांडेय ने कहा कि पक्षकारों को यह चाहिए कि वह विवादों के निपटारे में पहले वैकल्पिक न्याय व्यवस्था का प्रयास करें। इससे न्यायालयों पर मुकदमे का बोझ कम होगा। प्रोग्राम की अध्यक्षता करते हुए वीसी प्रो। अशोक कुमार ने कहा कि लॉ के टीचर्स और स्टूडेंट्स मुझे उम्मीद है कि यहां के स्टूडेंट्स वैकल्पिक न्याय व्यवस्था को आम जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाएंगे। गेस्ट्स का स्वागत करते हुए लॉ डिपार्टमेंट के डीन प्रो। जितेंद्र तिवारी ने बताया कि हमें मुकदमे जीतने के बजाय दिल जीतने का प्रयास करना चाहिए।
खर्चीली है पारंपरिक न्यायिक व्यवस्था
प्रोग्राम के दौरान लॉ डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो। अरविंद कुमार मिश्र ने वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पारंपरिक न्याय प्रक्रिया खर्चीली होने के साथ ही अधिक समय लेने वाली है। उन्होंने कहा कि मुकदमेबाजी को युद्ध नहीं, बल्कि बुराई मानना चाहिए। इस दौरान सीनियर जज राकेश तिवारी ने लॉ डिपार्टमेंट में बने विधिक सहायता केंद्र का इनॉगरेशन किया। इस मौके पर लॉ डिपार्टमेंट के डीन प्रो। जितेंद्र तिवारी, विभागाध्यक्ष प्रो। अरविंद मिश्र के साथ लॉ स्टूडेंट्स मौजूद रहे।