- जमीन नगर निगम की, कब्जा दबंगों का

GORAKHPUR : नगर निगम ने अपने सहारा के कब्जे में 1.46 एकड़ जमीन से कब्जा हटाते हुए है अपने अधीन कर लिया। नगर निगम की इस जमीन को भले ही आजाद कराकर अपनी जमीन थपथपा रहा है, लेकिन कई ऐसी जमीनें है, जिन पर लोग कब्जा जमाए हुए हैं, लेकिन नगर निगम इनसे कब्जा नहीं हटा पा रहा है। अगर नगर निगम इन जमीनों से अवैध कब्जा हटाकर उपयोग करने लगे तो कई मार्केट डेवलप कर सकता है।

केस नं। 1

बशारतपुर में नगर निगम की 19 डिस्मिल जमीन है। इस जमीन की कीमत लगभग 24,85,2000 रुपए है। इस जमीन पर पिछले कई सालों से लोगों का अवैध कब्जा है। नगर निगम ने कब्जा हटाने के लिए करीब 6 साल पहले कोशिश की थी जिसमें उसे कुछ सफलता भी मिली, लेकिन फिर जीएमसी ने इस जमीन से मुंह मोड़ लिया। इसके बाद फिर नगर निमग की जमीन पर कब्जा हो गया।

केस नं 2-

घोष कंपनी चौराहे पर निगम की कुल 39 डिस्मिल जमीन अवैध कब्जे में हैं। इस जमीन की कीमत 10,20,24000 रुपए के लगभग है। नगर निगम के राजस्व विभाग की मानें तो इस जमीन पर कई मुकदमे हैं जो 1970 से चले आ रहे हैं। इसमें से 4 मुकदमें नगर निगम जीत चुका है। नगर निगम के पूर्व उप सभापति रामदयाल का कहना है कि एक बाद इस जमीन को खाली कराया गया था, लेकिन उसके बाद नगर निगम उदासीन हो गया, जिसके कारण नगर निगम का कब्जा नहीं हो पाया।

केस नं। 3-

राप्ती नगर में मेन रोड पर नगर निगम की 32 डिस्मिल जमीन है। इस जमीन की कीमत लगभग 6,97,6000 रुपए है। इस जमीन पर दो साल पहले नगर निगम ने अपना जोन कार्यालय बनाने का निर्णय लिया। लेकिन पता चला कि इस पर कुछ लोगों ने कब्जा कर रखा है। नगर निगम ने कब्जा हटाया, लेकिन फिर से उस पर कब्जा जमा लिया गया। राप्तीनगर के पूर्व पार्षद छोटू सिंह का कहना है कि इच्छा शक्ति न होने के कारण नगर निगम कब्जा नहीं हटा पा रहा है।

केस नं। 4-

1989 में नगर निगम सीमा में गांवों को शामिल किया जा रहा था, तब राजेंद्र नगर एरिया में भी कई गांवों को शामिल किया गया। इसमें बनकटवां टोला में 45 डिस्मिल जमीन जो इस एरिया के गांवों के लिए खलिहान के तौर पर यूज होती थी, नगर निगम के अधीन हो गई। इस जमीन पर आज पूरी तरह से अवैध कब्जा हो गया है। इस जमीन की कीमत लगभग 78480000 रुपए है।

कब्जे में 1 हजार एकड़ जमीन

नगर निगम की सैकड़ों एकड़ भूमि शहर में इधर-उधर फैली हुई है। इनमें से कई का यूज नगर निगम कर रहा है जिन पर दुकानें, कर्मचारियों के लिए आवास या नगर निगम ऑफिस हैं। नगर निगम की लगभग 1 हजार एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा जमा हुआ है। कंप्लेन मिलने पर नगर निगम कार्रवाई करने जाता है, लेकिन अल्टीमेटम देकर वापस लौट आता है। उसके बाद रिमांडर न करने के कारण यह कब्जा फिर हो जाता है। नगर निगम के राजस्व विभाग के एक कर्मचारी ने बताया कि जमीन पर कब्जा करने वाला अगर दबंग है तो कंप्लेन मिलने पर टीम जाती है और अल्टीमेटम देकर चली आती है और अगर कंप्लेन करने वाला पावरफुल है तो एक या दो दिन में कब्जा हटा दिया जाता है।

पहले कब्जा, फिर मुकदमा

नगर निगम की जमीन पर कब्जा करने वाले एक खास तरह की मॉडस ऑपरेंडी का यूज करते हैं। नगर निगम के राजस्व विभाग से जुड़े सूत्रों की मानें तो कब्जा करने वाले पहले जमीन पर मुकदमा करते हैं, प्रतिवादी नगर निगम को बनाते हैं और जमीन पर कब्जा कर लेते हैं। उसके बाद नगर निगम भी इन पर मुकदमा कर देता है। पूरा मामला न्यायालय में चला जाता है। उसके बाद कब्जेदार का कब्जा न्यायालय कानिर्णय आने तक बना रहता है। ऐसे ही नगर निगम की कई जमीन पर लोगों का अवैध कब्जा बना हुआ है।

एक साल में 52 जगहों से हटा अतिक्रमण

नगर निगम की जमीनों पर अतिक्रमण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जनवरी से लेकर जून माह तक कुल 52 जगहों से अतिक्रमण हटाया गया है। राजस्व विभाग की माने तो पिछले सप्ताह तक नगर निगम के पास 20 से अधिक नई कंप्लेंट्स आ चुकी हैं।

147 वर्ग किमी में फैला है नगर निगम

टोटल एरिया- 147 वर्ग किमी

रेजिडेंशियल- 85 परसेंट

मार्केट- 10 परसेंट

जनहित(पार्क, ट्यूबवेल, पानी की टंकी)- 5 परसेंट