- कठिन नौकरी के साथ संभालती हैं घर की पूरी जिम्मेदारी
- यात्रा शुरू करने से पहले यात्रियों को करती हैं जागरूक
GORAKHPUR:
'और किसी का टिकट बनना है भईया'। रोडवेज बस में जब आवाज किसी महिला की हो यात्रियों को उचक कर देखना ही पड़ जाता है। ज्यादातर यात्रियों ने बस में कंडक्टर के तौर पर पुरुषों को ही देखा है। मगर कुमकुम खरे रोडवेज की महिला कंडक्टर के तौर पर डिपार्टमेंट में एक अलग पहचान रखती हैं। कंडक्टर के तौर पर काम करते हुए कुमकुम को एक दशक से ज्यादा हो चुका है। वो इस टफ जॉब के साथ अपने घर की जिम्मेदारी भी बखूबी संभालती हैं। वह मेहनतकश इम्प्लाइ होने के साथ अपने परिवार की आइडियल बहू के रूप में पहचान बनाने में कामयाब है।
लखनऊ तक ड्यूटी
पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद जॉब में बाई कुमकुम की ड्यूटी गोरखपुर से लखनऊ जाने वाली बसों में लगती है। पहले वो साधारण बसों में ड्यूटी करती थी मगर अब उन्हें एसी बसों की जिम्मेदारी मिलने लगी है। पूरी मुस्तैदी और पाई-पाई का हिसाब रखना उनकी आदत में शुमार है। कहती है कि रोजाना 250 किमी का सफर कैसे कट जाता है, पता ही नहीं चलता। ड्यूटी के बाद घर पहुंचने में रात के 10 बज जाते हैं। मगर वहां पहुंचते ही सारी थकान दूर हो जाती है।
दो बेटियों की जिम्मेदारी
कुमकुम के पति प्राइवेट जॉब में हैं जबकि उनकी दो बेटियां भी हैं। वह उन्हें अच्छी शिक्षा देकर अपने पैरों पर खड़ा देखना चाहती है। वह उन्हें हिम्मत देती हैं और उदाहरण भी। कैसे परिस्थिति अनुकूल न होने पर भी कामयाबी हासिल की जा सकती है, इसकी साक्षात उदाहरण वह खुद हैं। उन्होंने बताया कि मेरी जब जॉब लगी तब परिवार इसके लिए तैयार नहीं था। लेकिन मेरी जिद के आगे सबको झुकना पड़ा। अब सभी मेरा हौसला बढ़ाते हैं।
सुनने पड़ते हैं कमेंट भी
काम की दुश्वारियों के बारे में कुमकुम कहती हैं कि यात्रियों के अजीबोगरीब कमेंट सुनना मेरे लिए आम है। मैं ऐसी बातों को इग्नोर करती हूं। अंत में सब खुद ही शांत हो जाते हैं। कई बार लोग टिकट न लेने के लिए दबाव भी बनाते हैं। कुछ धौंस भी दिखाने की कोशिश भी करते हैं। लेकिन इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता। मुझे यहां महिला होने का फायदा भी मिल जाता है क्योंकि यदि किसी ने ज्यादा दबाव बनाने की कोशिश की तो बस के अन्य यात्री मेरी मदद के लिए खड़े हो जाते हैं।
और भी हैं चुनौतियां
कुमकुम कहती हैं कि घर और नौकरी के बीच तालमेल बिठाना आसान नहीं है। फिर भी मैं अपना सबसे अच्छा करने की कोशिश करती हूं। कई बार टेड़े-मेढ़े यात्री भी मिलते हैं, उसको सिचुएशन के हिसाब से हैंडल करती हूं। अब कोई दिक्कत नहीं होती। रोडवेज स्टाफ से लेकर अधिकारियों तक पूरा सपोर्ट मेरे साथ रहता है। कभी ऐसा नहीं महसूस हुआ कि मैं महिला हूं तो कैसे काम करुंगी।
ढाबे पर खाना खाती हूं
घर में भले सुबह परिवार के लोग कुमकुम के हाथों के ब्रेकफास्ट का लुत्फ उठाएं मगर खुद कुमकुम अक्सर ही ढाबे पर लंच करती हैं। कहती हैं कि ये मेरे काम के हिस्से की मजबूरी है। घर में पहुंचने पर पति मनोज खरे और दोनों बेटियों का पूरा सपोर्ट मिलता है। शायद इसी वजह से मैं आसानी से सब कुछ कर लेती हूं।
यात्रियों को करती हैं जागरूक
कई बार बस में शराबी या नशेड़ी और पाकेटमार यात्रियों से भी भेंट होती है। ऐसे लोगों के प्रति मैं यात्रा शुरू करने से पहले ही सबको सचेत करती हूं। साफ कह देती हूं कि किसी का दिया हुआ कुछ न खाएं। मैं अब अराजक तत्वों को पहचानने लगी हूं। ऐसे लोगों के खिलाफ गोरखपुर डिपो के एआरएम महेश चंद्र श्रीवास्तव हमेशा मेरी मदद के लिए तैयार रहते हैं।
प्रोफाइल
नाम - कुमकुम खरे
काम - कंडक्टर
विभाग- यूपी रोडवेज
तैनाती - लखनऊ
मूल निवास - लखनऊ
प्रारंभिक शिक्षा - लखनऊ
उच्च शिक्षा - एमए