मुंबई में आशा साहनी ने फ्लैट में दम तोड़ दिया। विदेश में रह रहा बेटा जब लौटा तो हाथ बस मां का कंकाल आया।

आज आपके शहर की कुछ ऐसी ही 'आशा साहनी' की दास्तान, जिन्होंने परिवार का वटवृक्ष तैयार किया था, लेकिन आज उनके तने खोखले हैं। कोई अपने घर की दीवारों में तन्हाई से लड़ रहा है तो कोई वृद्धाश्रम में गैरों के बीच अपनापन तलाश रहा है

केस - 1

कोतवाली एरिया की रहने वाली गुडि़या (बदला हुआ नाम) के पति गुजर चुके हैं। एक बेटी थी, जिसकी शादी हो चुकी है, दो बेटे हैं, जिसमें एक शहर से बाहर जॉब करता है। जबकि दूसरा साथ ही रहता है लेकिन दिन भर अपने काम में बिजी रहने की वजह से बाहर ही रहता है। बहू भी बच्चों में उलझी रहती है, जिसकी वजह से उनको वक्त नहीं दे पाती। अकेले कमरे में ही उनकी जिंदगी कट रही है।

केस - 2

गोरखनाथ एरिया के रसूलपुर निवासी बेबी (बदला हुआ नाम) की सिर्फ एक औलाद है। कमाने के लिए विदेश चला गया है। कहने को तो टाइम-टाइम पर फोन पर बना रहता है और साल में एक बार अपनी मां के पास आता भी है। उसके रिश्तेदार भी कभी-कभार मिलने आ जाते हैं। वरना वह अपनी जिंदगी एक मकान में ही बसर कर रही हैं।

केस-3

शहर के रानीडीहा मोहल्ले में है वृद्ध महिला आश्रम है। यहां कुल 50 महिलाएं हैं। सबकी अपनी-अपनी कहानी है, लेकिन दर्द सबका एक ही है, अपनों से दूरी। किसी के घरवाले यहां छोड़ गए तो किसी को हॉस्पिटल से यहां लाया गया। कुछ खुशनसीब हैं कि उनके घरवाले उनसे मिलने आ जाते हैं, लेकिन सबके हिस्से में यह खुशी नहीं। हर सुबह उनका दिन इंतजार से शुरू होता है तो शाम बेबसी में ढल जाती है। खाना पीना तो बस रूटीन सा ही है। इसलिए बीमारी और कमजोरी हर किसी के चेहरे पर साफ नजर आती है।

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कोई ऐसा हो तो दरवाजा खटखटाएं

अगर आपके आस-पास या मोहल्ले में कोई ऐसा हो, जो बिल्कुल अकेला हो तो उसके घर जाएं और उनसे मिलें और उनका ख्याल रखें। अगर आपको लगता है कि इस बारे में दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट को भी बताना चाहिए तो हमारे फोन नंबर 9455601725 पर सूचित करें।

वर्जन

वृद्धाश्रम में करीब 50 माताएं हैं। इसमें से कुछ अस्पताल, पुलिस के जरिए यहां पहुंची हैं, तो वहीं कुछ को उनके घरवाले ही छोड़ गए हैं। दुनिया में अकेली रह रही माताओं की पूरी देखभाल की जाती है। अगर कोई चाहे तो इसकी सूचना दे सकता है, हम माताओं को वहां से ही बुलवा लेते हैं।

- कनक मिश्रा, संचालक, वृद्धाश्रम