GORAKHPUR:

केस एक

गोरखपुर डीआईजी ऑफिस में तैनात सिपाही अरुण चौधरी ने रहस्यमय हालत में डीआईजी के प्राइवेट मकान गोमती नगर में सुसाइड कर लिया था। उसकी ड्यूटी डीआईजी ऑफिस में थी, लेकिन बिना लिखा पढ़ी के उसे डीआईजी के निर्माणधीन प्राइवेट मकान की सुरक्षा के लिए भेज दिया गया था। बस्ती के अरूण की शादी इसी साल फरवरी में हुई थी। ड्यूटी के चलते वह शादी के बाद सात दिन भी परिवार के साथ नहीं रह सका था। अरूण के सुसाइड करने के पीछे असल में कौन जिम्मेदार है यह तो अभी भी सवाल है, लेकिन सिस्टम पर एक सवाल तो खड़ा हो गया कि आखिर किस आधार पर उसे बिना लिखा पढ़ी के ड्यूटी पर भेजा गया?

केस दो

लखनऊ के टूरिज्म डिपार्टमेंट में तैनात उप निदेशक के उत्पीड़न से परेशान होकर राजघाट के महेवा मंडी निवासी अमित कुमार ने क्ख् सितंबर को लखनऊ स्थित उनके सरकारी आवास पर सुसाइड कर लिया था। उसने सुसाइट नोट में उत्पीड़न का आरोप भी लगाया था। सुसाइट नोट में लिखा था कि उसकी नियुक्ति कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर हुई थी, लेकिन उससे घरेलू नौकर की तरह काम लिया जाता था। परिजनों के आरोप पर लखनऊ पुलिस मामले की इनवेस्टिगेशन कर रही है।

केस तीन

गोरखपुर का दुर्गेश यादव हाटा थाने में सिपाही के पद पर तैनात था। ख्ख् अक्टूबर को उसकी संदिग्ध हालत में मौत हो गई थी। मौत से पहले दुर्गेश का सुकरौली चौकी इंचार्ज से कहासुनी भी हुई थी। दुर्गेश की मौत के बाद परिजनों ने इंस्पेक्टर और चौकी इंचार्ज पर आरोप लगाया था और केस दर्ज करने की मांग को लेकर मेडिकल कॉलेज में जाम भी लगाया था। पुलिस डिपार्टमेंट ने हत्या के मामले में इंस्पेक्टर और चौकी इंचार्ज के खिलाफ केस भी दर्ज किया था। मामले की जांच चल रही है।

उपरोक्त केस यह बताने क लिए काफी है कि किस तरह चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी दबाव में जीने को मजबूर हैं। यह दवाब काम के अलावा अतिरिक्त काम का भी होता है। साथ ही परिवार को समय न दे पाना भी उनकी एक बड़ी समस्या होती है। साथ ही काम को लेकर उनका कोई रोल तय नहींहोता है। अफसर उन्हें अपनी जरूरत अनुसार काम पर कहींभी भेज देते हैं। जो हिम्मती होते हैं वे तो किसी तरह मैनेज कर लेते हैं, लेकिन कई लोग घुट जाते हैं। नौकरी के दौरान सुसाइड की घटना पर नजर दौड़ाई जाए तो सबसे ज्यादा सरकारी महकमे में निचली पोस्ट के कर्मचारियों ने सुसाइड किया है। इसमें खास तौर पर फोर्स और पुलिस डिपार्टमेंट को लोग शामिल हैं। विशेषज्ञों का भी कहना है कि ब्यूरोक्रेसी की तानाशाही के चलते कर्मचारी अपने विचारों को व्यस्त नहीं कर पाते। फिर चाहे वह प्रमोशन का मामला हो या फिर छुट्टी का। वे जाने अनजाने उत्पीड़न का शिकार हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में वे मौत का रास्ता चुन लेते हैं। साइकोलॉजिस्ट की मानें तो कई बार कर्मचारियों को अपने काम के बारे में सही से नहींपता होता है। ड्यूटी को लेकर क्लीयर इंस्ट्रक्शन न मिलने के कारण वे कंफ्यूज रहते है और अवसादग्रस्त हो जाते है। यही वजह है कि इस राह पर चल पड़ते हैं।

वर्जन-

परिवार से अलगाव और अव्यवस्था के बाद भी आक्रोश व्याप्त न कर पाने की स्थिति में निचले पदों के सरकारी कर्मचारी सुसाइड का रास्ता चुनते हैं। कठोर अनुशासन के चलते वे कई बार अपनी बात अफसरों तक नहींपहुंचा पाते हैं। ऐसी घटनाएं फोर्स और पुलिस डिपार्टमेंट में ज्यादातर देखने को मिलती है। वहां विरोध की स्थिति होने के बाद भी भाव व्यक्त नहीं कर पाते है। कुंठा का शिकार होकर वे मौत का रास्ता चुन लेते हैं।

डॉ। मानवेन्द्र सिंह,

समाजशास्त्री, डीडीयू

गवर्नमेंट जॉब में अक्सर कर फोर्थ क्लास या ऐसा वर्ग सुसाइड करता है एकूपेशनल स्टेज पर होता है। इसके तीन कारण है पहला रोल ओवर लोड, दूसरा एम्बीग्यूटी और तीसरा ष्श्रठ्ठह्यद्यह्लष्ह्ल। आत्महत्या के यही तीन कारण होते हैं। खास तौर से सरकारी विभाग में निचले पदों पर कार्यरत कर्मचारियों को अपने काम की भूमिका की जानकारी नहींहोती है। अफसरों के निर्देश पर वे काम करते हैं। कई बार अपनी ड्यूटी के प्रति क्लीयर रोल की जानकारी न होने पर अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं। द्वंद की स्थित में मौत का रास्ता चुन लेते हैं।

डॉ। धनंजय कुमार, साइकोलॉजिस्ट

जॉब में प्रेशर हर पोस्ट पर होता है, लेकिन निचले पदों पर कुछ ज्यादा ही प्रेशर होता है। पहला वर्क प्लेस को लेकर और दूसरा ड्यूटी का। अन्य डिपार्टमेंट की अपेक्षा फोर्स और पुलिस डिपार्टमेंट के कर्मचारियों पर इस तरह का प्रेशर ज्यादा देखने को मिलते है। परिवार की इच्छाएं भी ज्यादा होती हैं, जिसे वह समय पर पूरा नहीं कर पाते। दूसरी तरफ डिपार्टमेंट भी उनसे दबाव में बड़ी उपेक्षा रखता है। जिसमें फेल होने की दशा में वह कुंठाग्रस्त हो जाते हैं। ज्यादा प्रेशर न झेल पाने की स्थिति में वह ऐसे कदम उठा लेते हैं।

कीर्ति पांडेय,

समाजशास्त्री, डीडीयू