- आठ साल पहले खरीदी गई मशीनें हो गई कबाड़
- खड़ी ही रह गई, आज तक इस्तेमाल ही नहीं हुई
द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र : लोक निर्माण विभाग। इस डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी शहर और गांव की सड़कों, बिल्डिगों का निर्माण करना है। इसके लिए बकायदा टेंडर निकलते हैं। जो ठेकेदार कम कीमत में काम करने को तैयार होता है, उसे टेंडर मिलता है। आज से साढ़े आठ साल पहले प्रदेश में बसपा सरकार थी। तत्कालीन पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा था कि रोड़ और बिल्डिंग निर्माण में गर्वमेंट का बहुत पैसा मशीनरी पर खर्च होता है। अगर हम निर्माण कार्य में आने वाली सारी मशीनें खरीद लेते हैं तो टेंडर और कम कीमतों पर जाएगा। इससे सरकार के खजाने को फायदा होगा। इसी रणनीति के साथ गोरखपुर में ढाई करोड़ की मशीनरी आई। तत्कालीन मंत्री के इस निर्णय पर खूब वाहवाही भी हुई, लेकिन आज न तो मंत्री हैं और न इन मशीनों का कोई रखवाला। जंगल सिकरी स्थित केन्द्रीय लोक निर्माण भंडार में यह मशीनें सड़ रही हैं।
सड़ने के लिए खरीदी थी क्या?
सन 2008 में सिद्दीकी ने प्रदेश के कई जिलों में शासन स्तर पर ही मशीनें खरीदने के ऑर्डर दिए। गोरखपुर के लिए भी ढाई करोड़ की मशीनें खरीदी गई। जब ये मशीनें गोरखपुर आई तो डिपार्टमेंट में यह बात भी चलकर आई कि अब ठेकेदारों को इन्हीं मशीनों केसाथ काम करना होगा, लेकिन जब से यह मशीनें आई हैं तब से इन्हें आज तक नहीं चलाया गया है। अब सवाल यह खड़ा होता है कि क्या इन मशीनों को केवल सड़ाने के लिए ही खरीदा गया था?
इन मशीनों की हुई थी खरीदारी
टीपर मशीन -3
मिक्सर मशीन - 4
जनसेट-1
लेवलिंग मशीन-1
हर साल बचते लाखों रुपए
अगर यह मशीनें वर्क कर रही होती तो हर साल सरकार के लाखों रुपए बचते। यह बात पीडब्ल्यूडी के एक सीनियर अफसर ने बताई। उनका कहना था कि ठेकेदार अपने टेंडर में मशीनरी खर्च की एक मोटी रकम जोड़ कर देते हैं जिसे पास करना पड़ता है। अगर इन मशीनों से वर्क करवाया जाता तो यह मोटी रकम टेंडर से गायब हो जाती और सीधे सरकार के खाते में बचत के तौर पर आती।
हाईटेक मशीनों पर उग आए पेड़
2008 में खरीदी गई ये सारी मशीनें हाईटेक थीं। इन कंप्यूटराइज्ड मशीनों पर आज झाड़ झंगाल लग चुके हैं। टिपर और मिक्सर मशीनों की हालत तो यह हो चुकी है कि इनके टायरों पर पेड़ उग आए हैं। जेनसेट और लेवलिंग मशीन जंग के चलते लाल होती जा रही हैं।
अब लाखों के खर्च से चलेंगी
इस पूरे मामले में एक सवाल यह खड़ा होता है कि अगर इन मशीनों को अभी चलाया जाए तो क्या यह काम करेंगी? जब इस सवाल का जवाब आई नेक्स्ट ने मशीनरी के कुछ जानकारों से लिया तो लापरवाही की इंतहा सामने आई। कई सालों से पड़े रहने के कारण आज ये कंडम हो चुकी है। इन्हें चलाने के लिए 30 से 40 लाख रुपए खर्च करने पड़ेंगे।
सीसी रोड बनाने के लिए आठ वर्ष पहले शासन स्तर पर तीन जिलों को कुछ मशीनरी मिली थी, जिसमें गोरखपुर भी शामिल था। इसके अलावा वे आज क्यों नहीं चल रहे हैं, इसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है।
ई। राजेश कुमार, अधिशासी अभियंता, भवन निर्माण पीडब्ल्यूडी