- साढ़े तीन हजार मेडिकल स्टोर शहर में हैं मौजूद
- वहीं 26 जन औषधि केंद्र की जिम्मेदारी भी इन्हीं के कंधों पर
GORAKHPUR: खांसी हो या फिर बुखार, कैंसर हो या फिर कालाजार। बीमारी कोई भी हो, दवाओं की जरूरत सभी को पड़ती है। मार्केट में ब्रांडेड दवाओं के नाम पर मची लूट से पब्लिक को बचाने के लिए शासन ने सख्त कदम उठाए हैं। डॉक्टर्स को जहां साल्ट लिखने के लिए निर्देशित किया गया है, वहीं स्पेशल मेडिकल स्टोर खोलकर लोगों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने की कोशिश की जा रही है। मगर इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि जेनेरिक दवाएं तो बेची जाएंगी, लेकिन इसकी क्वालिटी क्या होगी? इसके बारे में कोई श्योर नहीं है। ऐसे दर्जनों मामले सामने आए हैं, जिनमें जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी काफी खराब पाई गई है। गोरखपुर शहर में अगर दवाओं की हकीकत जाननी हो तो इसके लिए महज एक ड्रग इंस्पेक्टर मौजूद है, जिसके जिम्मे पूरा जिला है।
नया सैंपल फिर नई जांच
जिले में ड्रग की असलियत जानने के लिए यूं तो कोई व्यवस्था मौजूद ही नहीं है। ड्रग क्वालिटी की जांच करानी भी हो तो इसके लिए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है। इसकी वजह यह कि यहां जांच के दौरान या फिर शिकायत के बाद दवाओं की सैंपलिंग की जाती है। यह दवाएं जांचने के लिए केंद्र की लैब में भेजी जाती है, जहां उसकी जांच के बाद रिपोर्ट आती है। इसमें करीब एक माह का वक्त लग जाता है। ऐसे में दवाओं की क्वालिटी जबतक जांची जाएगी, इस बीच व्यापारी को या तो अपना माल फंसाना पड़ेगा, या फिर रिपोर्ट आने तक सारी दवा खप चुकी होगी। उसके बाद नया सैंपल और नई जांच।
कैसे होगी 3500 स्टोर की जांच
गोरखपुर जिले की बात करें तो अगर किसी को यहां जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी चेक करानी है, तो उसे इंतजार तो करना ही पड़ेगा। वहीं अगर एक साथ सभी काउंटर्स से सैंपल कलेक्ट करने हैं, तो इसमें एक माह से ज्यादा का वक्त लग सकता है। ऐसा इसलिए कि यहां हजारों की तादाद में दवा कंपनियां मौजूद हैं। एक शॉप में अगर 20 कंपनी की दवा भी मिलती है, तो इसका सैंपल लेने में कम से कम एक-दो घंटे का समय तो लग ही जाएगा। जिले में सिर्फ एक ड्रग इंस्पेक्टर है, जो मार्केट में अकेला ही कलेक्शन के लिए निकलता है। ऐसे में यहां के साढ़े तीन हजार मेडिकल स्टोर की जांच के लिए जिम्मेदारों को वक्त लगना तय है।
प्रदेश की हालत भी ठीक नहीं
यह हाल सिर्फ गोरखपुर का ही नहीं, बल्कि दवा की जांच के मामले में पूरे ्रप्रदेश की हालत खराब है। यूपी की बात की जाए तो यहां कुल 80 ड्रग इंस्पेक्टर हैं। इनके भरोसे प्रदेश के करीब एक लाख 70 हजार मेडिकल स्टोर हैं। ऐसे में क्वालिटी की जांच के लिए दवाओं की सैंपलिंग किस तेजी से हो सकती है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दवाओं के मैन्युफैक्चरर की बात की जाए, तो सिर्फ प्रदेश में 20 हजार से ज्यादा दवा फैक्ट्रियां मौजूद हैं। इनकी जांच कराना भी जिम्मेदारों के लिए आसान नहीं है।
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फैक्ट्री से ही करनी होगी निगरानी
इस मामले में दवा व्यापारियों से लेकर जिम्मेदारों तक सभी का कहना है कि अगर सही मायने में बेहतर क्वालिटी की ड्रग लोगों को दिलवानी है, तो इसके लिए जिम्मेदारों को सख्त रवैया अपनाना पड़ेगा। मार्केट में आने के बाद सैंपलिंग करने की जगह, उन्हें जब प्रॉडक्ट बनाया जा रहा हो, उसी वक्त फैक्ट्री से निगरानी शुरू कर देनी चाहिए। इससे यह फायदा होगा कि जब दवा बनाई जा रही होगी और उसमें कुछ खामी होगी तो तत्काल दुरुस्त की जा सकेगी। वहीं अगर ऐसा नहीं किया जाता, तो मार्केट में आने वाली सभी दवाओं को नष्ट करना पड़ेगा। इससे लोगों के साथ कंपनी का नुकसान भी बच जाएगा।
कोट्स
सरकार की ओर से रेग्युलर जांच कराई जाती है। वहां से अल्टरनेट दुकानों की लिस्ट आती है, जहां का नाम होता है। वहां से सैंपल कलेक्ट किया जाता है। वहीं कुछ जगह औचक और कुछ जगह शिकायत मिलने पर सैंपल कलेक्ट किया जाता है।
- ब्रजेश यादव, ड्रग इंस्पेक्टर
गोरखपुर में जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां सिर्फ दवाओं की सैंपलिंग होती है। व्यापारियों के पास जो दवाएं आती हैं, उन्हें वह आगे सेल कर देते हैं। इसलिए दवा कंपनी से ही निगरानी करनी चाहिए। जिससे मार्केट में व्यापारियों को परेशान नहीं होना पड़ेगा। वहीं कंपनी की निगरानी होने पर बेहतर दवा मार्केट में आएंगी।
- योगेंद्र नाथ दुबे, अध्यक्ष, दवा विक्रेता समिति