गोरखपुर (ब्यूरो).पैगंबर-ए-आजम पर इंसान, जिन्न, फरिश्ते दरूदो-सलाम भेजते हैं। मुसलमानों के लिए रबीउल अव्वल शरीफ का महीना बहुत अहम है। इस महीने की 12 तारीख पैगंबर-ए-आजम की पैदाइश का दिन है। मुख्य वक्ता अल जामितुल अशरफिया मुबारकपुर के मौलाना मसऊद अहमद मिस्बाही ने कहा कि जब-जब दुनिया में बुराईयां बढ़ती है तब-तब अल्लाह इंसानों की रहनुमाई के लिए नबी व रसूल (पैगंबर) भेजता है।

हालात थे खराब

पैगंबर-ए-आजम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसे जमाने में जन्म लिया, जब अरब के हालात बहुत खराब थे। बच्चियों को जिन्दा दफन कर दिया जाता था। विधवाओं से बुरा सुलूक होता था। छोटी-छोटी बात पर तलवारें खिंच जाती जाती थीं। इंसानियत शर्मसार हो रही थी। ऐसे समय में इंसानों की रहनुमाई के लिए अरब के मक्का शहर में पैगंबर-ए-आजम का जन्म हुआ। पैगंबर-ए-आजम ने जब सच्ची तालीमात आम करनी शुरु कि तो उस दौर के मक्का में रहने वालों को काफी बुरा लगा। आपको तरह-तरह की तकलीफें दी गईं। जिसका आपने डट कर सामना किया।

यतीमों को हक दिलाया

आपको मक्का से हिजरत करने पर मजबूर किया गया। आपने मदीना शरीफ में ठहराव पसंद किया। इतनी परेशानियों के बाद आपने मिशन को नहीं छोड़ा। आपने मजलूमों, गुलामों, औरतों, बेसहारा, यतीमों को उनका हक दिलाया। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमन सलामती की दुआ मांगी गई। जलसे में हाफिज अयाज अहमद, हाजी उबैद अहमद खान, अब्दुल मतीन फैजी, नासिफ अहमद, शादाब अहमद, मुफ़्ती अख़्तर हुसैन, कारी फुरकान अहमद,मौलाना मकसूद आलम, कारी नसीमुल्लाह, मोहम्मद आजम, हाफिज रहमत अली निजामी आदि मौजूद रहे।