- आईनेक्स्ट की खबर का असर, उद्योग लगाने के लिए जेल एडमिनिस्ट्रेशन ने की प्रपोजल भेजने की तैयारी

GORAKHPUR: सश्रम कारावास की सजा पाने वाले बंदी अब बेकार नहीं बैठेगे। दिन भर ताश खेलने के बजाय अब वह अपने परिवार का पेट भी पाल सकेंगे। गोरखपुर जेल में बंदियों के निठल्ले होने की खबर आईनेक्स्ट ने 'आखिर कब तक करते रहेंगे खेती-बारी' हेडिंग के साथ पब्लिश की थी। इसको संज्ञान में लेते हुए जेल प्रशासन एक्टिव हुआ है और उन्होंने जेल में उद्योग लगाने के लिए नया प्रपोजल भेजने की तैयारी शुरू कर दी है।

सश्रम कारावास के बंदी भी नहीं करते कोई काम

जिला कारागार में महिला और पुरुष बंदियों की तादाद करीब 12 सौ है। इन बंदियों के पास जेल में कोई काम नहीं है। कोर्ट से सश्रम कारावास की सजा पाने वाले बंदी भी बेकार बैठे रहते हैं। उनका पूरा समय ताश खेलने में निकल जाता है। गोरखपुर के अलावा प्रदेश की कई जिलों में उद्योग लगे हैं। इससे बंदियों को काम का मौका मिल जाता है। जेल से छूटने पर बंदी को अपना रोजगार करने में सहूलियत होती है, लेकिन गोरखपुर जेल में ऐसी कोई व्यवस्था नही है। जेल में सिर्फ 15 सिलाई मशीनों का इंतजाम किया गया है। इससे महिला और पुरुष बंदियों कपड़े और वर्दी सिलते हैं।

आईनेक्स्ट ने उठाया मुद्दा, जाग गया प्रशासन

जेल में उद्योग धंधे का इंतजाम न होने का मुद्दा आईनेक्स्ट ने प्रमुखता से उठाया। आठ अगस्त को खबर प्रकाशित होने के बाद जेल प्रशासन की नींद खुली। जेल प्रशासन ने जिला कारागार में उद्योग धंधे लगाने के लिए प्रयास शुरू कर दिया। वरिष्ठ जेल अधीक्षक एसके शर्मा ने पुरानी फाइल तलब की। एक नया प्रपोजल बनाने का निर्देश मातहतों को दिया। वर्ष 2010 में साबुन और फिनायल बनाने उद्योग का प्रपोजल भेजा गया था, लेकिन गवर्नमेंट ने गड़बड़ी की वजह से फाइल लौटा दी। तब से अभी तक इस मामले में कोई प्रयास नहीं हुआ। जेल प्रशासन दोबारा उसी फाइल की कमियां दूर करके भेजेगा। 15 अगस्त के बाद इस पर विधिवत कार्रवाई शुरू होगी।

पुरानी फाइल में क्या गड़बड़ी है। इसको चेक कराया जा रहा है। नया प्रपोजल बनाकर यूपी गवर्नमेंट को भेजा जाएगा। इस बार पूरी कोशिश होगी कि कोई कमी न रह जाए।

एसके शर्मा, वरिष्ठ जेल अधीक्षक