गोरखपुर (ब्यूरो)। उनका कहना है कि इस मामले की जांच जरूरी है। वहीं अब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी जांच कर उचित कार्रवाई की मांग की है। प्रो। कमलेश ने आरोप लगाया कि यूनिवर्सिटी में रिसर्च के नाम पर करोड़ों रुपए की धनराशि सीड मनी के रूप में जारी हुई, लेकिन उसका कोई हिसाब नहीं हुआ।

एसएसआर में दिखाई सीड मनी

प्रो। कमलेश ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, 'नैक मूल्यांकन के लिए दाखिल एसएसआर (सेल्फ स्टडी रिपोर्ट) में यूनिवर्सिटी की ओर से रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए टीचर्स को सीड मनी दिए जाने की बात कही गई है। उसमें प्रो। राजेश सिंह के कार्यकाल के सत्र 2020-21 में 3 करोड़ 89 लाख रुपए से अधिक की सीड मनी का दिया जाना दर्ज है। इसमें सीड मनी के संबंध में वित्त अधिकारी महोदय की ओर से हस्ताक्षरित बजट और व्यय का विवरण दिए जाने का दावा किया गया है, अर्थात सारी औपचारिकताएं पूरी की गई हैं, लेकिन व्यय से संबंधित वह विवरण यहां संलग्न नहीं है।

शिक्षकों को नहीं मिली सीड मनी

उन्होंने बताया कि यह गंभीर चिंता का विषय इसलिए है, क्योंकि यूनिवर्सिटी के शिक्षकों को सीड मनी के रूप में धनराशि कभी दी ही नहीं गई है। यह धनराशि जब दी ही नहीं गई, तो उनके द्वारा खर्च किए जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। उन्होंने लिखा कि निश्चित तौर पर वह करोड़ों रुपए की धनराशि कहीं और गई है। यह सीधे-सीधे करोड़ों रुपए की वित्तीय अनियमितता का मामला है, जिसकी जांच होनी ही चाहिए थी।

आदोलन के लिए नहीं होंगे पीछे

एबीवीपी के प्रदेश मंत्री सौरभ गौड़ ने कहा कि एबीवीपी अपने सारे बयानों की सम्पूर्ण जिम्मेदारी लेती है और आवश्यकता पडऩे पर वीसी प्रो। राजेश सिंह के खिलाफ आंदोलन के अतिरिक्त उचित कानूनी कार्यवाही करने से भी पीछे नहीं हटेगी। उन्होंने कहा कि गोरखपुर यूनिवर्सिटी में सीड मनी के रूप में करोड़ों की अनियमितताओं पर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने आंखे मूंद लीं हैं।