गोरखपुर (ब्यूरो).वल्र्ड पापुलेशन डे को मनाने का उद्देश्य लोगों को बढ़ती पॉपुलेशन पर कंट्रोल के लिए जागरूक करना है। इस दिन तरह-तरह के प्रोग्राम आर्गनाइज करके लोगों से पापुलेशन कंट्रोल करने के उपायों पर चर्चा की जाती है। 2022 का थीम है- '8 बिलियन की दुनिया: सभी के लिए एक लचीले भविष्य की ओर- अवसरों का दोहन और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करनाÓ।
लगातार बढ़ रही गोरखपुर की पॅापुलेशन
जनगणना वर्ष टोटल पॉपुलेशन कितना परसेंट बढ़ा
1901 9,54,789
1911 10,40,392 8.97
1921 10,61,375 2.02
1931 11,85,436 11.69
1941 13,11,976 10.67
1951 14,73,156 12.29
1961 16,73,134 13.57
1971 19,80,329 18.36
1981 24,60,611 24.25
1991 30,66,002 24.60
2001 37,69,456 22.94
2011 44,40,895 17.81
1. डॉक्टर्स कम पेशेंट ज्यादा
अगर बात करें हेल्थ डिपार्टमेंट की तो यूं तो गोरखपुर में एम्स, मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल जैसे तीन बड़े संस्थान हैं। मगर यहां मरीजों के हिसाब से न संसाधन हैं और न ही डॉक्टर उपलब्ध हैं। जिला अस्पताल में डॉक्टर्स के लिए 53 पद स्वीकृत हैं, जिसमें मौजूदा समय में सिर्फ 25 डॉक्टर ही अवेलेबल हैं। डेली यहां पर लगभग 2000 पेशेंट़्स ओपीडी में आते हैं। इसके अलावा इन्हीं डॉक्टर्स को इमरजेंसी और वार्ड में जाकर भी मरीजों को देखना पड़ता है।
2. सीटें कम कैंडिडेट्स ज्यादा
बात अगर एजुकेशन सेक्टर की करें तो इसमें बहुत ही ज्यादा कॉम्पटीशन है। किसी अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने के लिए स्टूडेंट्स को काफी मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि वहां पर सीट लिमिटेड होती हैं और अप्लाई करने वाले हजारों की संख्या में होते हैं। उदाहरण के तौर पर गोरखपुर यूनिवर्सिटी की बात करें तो यहां सेशन 2021-22 में बीए की 2437 सीटों के लिए 11,277 आवेदन आए थे। मतलब एक सीट पर लगभग 4.5 लोगों ने दावेदारी पेश की थी।
3. बेरोजगारी दर घटने का नहीं ले रही नाम
पॉपुलेशन बढऩे की वजह से रोजगार पाना कठिन काम हो गया है। चाहे व गवर्नमेंट सेक्टर हो या प्राइवेट, कहीं भी जॉब पाने के लिए बहुत ही टफ कॉम्पटीशन है। किसी गर्वमेंट डिपार्टमेंट में अगर 10,000 पदों के लिए कोई भर्ती अगर आती है तो उसके लिए लाखों आवेदन आ जाते हैं। सेवायोजन कार्यालय गोरखपुर के आंकड़ों की बात करें तो गोरखपुर में अभी लगभग 81 हजार बेरोजगार रजिस्टर्ड हैं। जो अभी भी जॉब के लिए भटक रहे हैं।
4. रेलवे स्टेशन हमेशा हाउसफुल
सरकर कितनी भी नई ट्रेनें क्यों न चला दे पर फिर भी भीड़ की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। गोरखपुर जंक्शन पर रोज 200 से अधिक ट्रेनें गुजरती हैं। स्टेशन पर डेली करीब एक लाख से भी अधिक पैसेंजर्स का मूवमेंट होता है। ट्रेन की टिकट पाने के लिए रिजर्वेशन काउंटर पर लंबी-लंबी कतारें लगी रहती हैं। कंफर्म टिकट फुल होने के बाद सैकड़ों लोग वेटिंग टिकट लेकर ट्रेवल करते हैं। शायद ही कोई ऐसी ट्रेन होगी जो खचाखच भरी हुई न हो।
पॉपुलेशन कंट्रोल करने के कुछ प्रमुख उपाय
- महिलाओं को शिक्षित करना
- फैमिली प्लानिंग पर जोर देना
- लोगों को जागरूक करना
- गर्भ निरोधक का उपयोग करना
- नसबंदी को अपनाना
पॉपुलेशन कंट्रोल पर ध्यान दे रहे गोरखपुराइट्स!
गोरखपुर के लोग पॉपुलेशन को कंट्रोल करने के लिए तेजी से आगे आते दिख रहे हैं। यह हेल्थ डिपार्टमेंट के आंकड़े बता रहे हैं। जिले के सभी सीएचसी, पीएचसी, न्यू पीएचसी, यूपीएचसी, सीएमओ ऑफिस, जिला महिला अस्पताल और एचडब्ल्यूसी पर लकड़ी से बने बॉक्स में कंडोम के पैकेट भरकर ऐसी जगह लगाए गए हैं, जहां सभी की पहुंच हो और उनकी गोपनीयता भी बनी रहे। कंडोम बॉक्स खाली होने पर स्वास्थ्य कार्यकर्ता पुन: इसे भर देते हैं और यह चक्र चलता रहता है ।
यूज हुए गर्भ निरोधक
वित्तीय वर्ष यूज
2018-19 6.80 लाख
2019-20 6.83 लाख
2020-21 8.64 लाख
2021-22 16.67 लाख
(नोट: यह सिर्फ सरकारी क्षेत्र का आंकड़ा है.)
परिवार नियोजन सेवाओं को धरातल पर उतारने और लोगों को छोटे परिवार के फायदे समझाने के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार कोशिशें कर रहा है। पब्लिक को कुछ गलत अवधारणाओं से बाहर निकलना होगा। इसके साथ ही नसबंदी और कंडोम के उपयोग से परिवार नियोजित कर सकते हैं।
-डॉ। आशुतोष कुमार दुबे, सीएमओ गोरखपुर
पॉपुलेशन को समाज में अलग-अलग तरह की भ्रांतियां हैं। इसको तोडऩे के लिए सबसे जरूरी है महिलाओं को शिक्षित करना। जब समाज में महिलाएं शिक्षित रहेंगी तो वह फैमिली को कंट्रोल कर सकेंगी। महिलाओं की शिक्षा और फीमेल बर्थ को लेकर पॉजिटिव एप्रोच अपनाने की जरूरत है।
- प्रो। संगीता पांडेय, एचओडी, समाजशास्त्र डीडीयूजीयू
हम लोग पॉपुलेशन कंट्रोल पर हमेशा जागरुकता अभियान चलाते रहते हैं। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है महिलाओं को शिक्षित करना। बढ़ती आबादी से पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंच रहा है। अगर लोग अभी न सुधरे तो इसका नुकसान आने वाली पीढ़ी को झेलना पड़ेगा।
- तनु शर्मा, सोशल वर्कर