- अफसरों की लापरवाही से शुद्ध पानी की कई योजनाएं अधूरी

- हवा-हवाई योजनाओं ने गोरखपुराइट्स को दिखाए झूठे सपने

GORAKHPUR : नगर निगम की योजनाएं जब कागजों पर बनती हैं तो लगता है मानों बस कुछ ही दिन में सारी स्थिति बदल जाएगी। लेकिन जब योजना को अमलीजामा पहनाने की बारी आती है तो रफ्तार मंद हो जाती है। नगर निगम की शुद्घ पेयजल से जुड़ी ज्यादातर योजनाएं हवा-हवाई ही साबित हो रही हैं। फिर चाहे वो यूआईडीएसएसएमटी (अर्बन इंफ्रास्टक्चर डेवलपमेंट स्कीम फार स्माल एंड मीडियम टाउंस) योजना के पूरे होने की बात हो या राप्ती नदी के सरफेस वाटर सिस्टम की, नगर निगम की ज्यादातर योजनाएं या तो अधूरी पड़ी हैं या फिर उनपर कोई काम ही नहीं हुआ।

कागज में पूरी, जमीन पर अधूरी रह गई योजना

योजना- सिटी के चार जोन में पानी सप्लाई

लागत- 48.3 करोड़ रुपए (अभी तक कुल 22 करोड़ रुपए मिले हैं। 19 करोड़ रुपए केंद्र व लगभग 3 करोड़ रुपए राज्य सरकार ने दिये हैं। योजना की लागत का 80 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार और 20 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार को देना है.)

लांचिंग- 2015

उद्देश्य- सिटी के 32 प्रतिशत एरिया में जलकल पानी सप्लाई नहीं करता था। जब 2010 में गोरखपुर का यूआईडीएसएसएमटी योजना के तहत चयन हुआ तो दो चरण में पाइप लाइन विस्तार की योजना बनी। दो साल पहले पहला चरण पूरा होने के बाद दूसरे चरण का काम शुरू किया गया। इस योजना के पूरे होने से सिटी के लगभग 3 लाख से अधिक पब्लिक को शुद्ध पानी मिल जाता, लेकिन योजना बीच में ही लटक गई। इस योजना से

रसूलपुर, सूरजकुंड, माधोपुर, राजेंद्र नगर पश्चिमी, विकास नगर, लच्छीपुर, चरगांवा, जंगल नकहा, राप्तीनगर, सेमरा, उर्वरक नगर, जंगलशालिकराम, जंगल तुलसीराम पश्चिमी, जंगल तुलसीराम पूर्वी को लाभ मिलता।

जो है उसे साफ नहीं कर पा रहे, नदी का पानी फिल्टर करेंगे

योजना- रिवर वाटर ट्रीटमेंट प्लान

लागत- 60 करोड़ रुपए

लांचिंग- विचाराधीन

उद्देश्य- गिरते ग्राउंड वाटर लेवल को देखते हुए नगर निगम ने नदी और तालाब के पानी को यूटिलाइज करने का प्लान बना रहा है। इस योजना के तहत राप्ती नदी के बगल में खाली पड़ी जमीन पर पानी इकट्ठा करने के लिए एक इनटेक वेल बनाया जाएगा। इस वेल में पानी पहुंचाने के लिए नदी के भीतर पाइप बिछाया जाएगा। इस पानी का ट्रीटमेंट कर उसे पूरे शहर में सप्लाई किया जाएगा। फिलहाल इस योजना का डीपीआर(डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) जलकल तैयार कर रहा है, उसके बाद प्रस्ताव को केंद्र व राज्य सरकार को भेजा जाएगा। नगर आयुक्त राजेश कुमार त्यागी की मानें तो भू-गर्भ जल की अपेक्षा नदी के पानी का शोधन कर लोगों को अधिक से अधिक शुद्ध पेयजल मुहैया कराया जा सकता है।

अधर में लटका ट्यूबवेल ऑटोमेशन

योजना- ऑटोमेशन स्कीम

लागत- अनिर्धारित

लांचिंग- 2012

उद्देश्य- सिटी में बिजली कटौती की प्रॉब्लम को देखते हुए जलकल ने करीब 3 साल पहले ये योजना बनाई। बड़े ट्यूबवेल्स पर लगने वाले इस सिस्टम से बिजली आते ही मोटर ऑटोमेटिकली चालू हो जाता और बिजली जाते ही बंद हो जाता। योजना अप्रूव होते ही नगर निगम ने सबसे पहले सिटी के 3 ट्यूबवेल पर ऑटोमेशन सिस्टम लगाया। सिस्टम ने ठीक काम किया। फिर 6 और ट्यूबवेल पर भी ये सिस्टम लगाया गया। उसके बाद योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अभी भी सिटी के 97 ट्यूबवेल ऑटोमेशन सिस्टम की राह देख रहे हैं।

इस रफ्तार से 2020 तक हो जाएगा रिबोर का काम

योजना- हैंडपंप रिबोर स्कीम

लागत- करीब 30 लाख रुपए

लांचिंग- 2014

उद्देश्य- सिटी में 3975 हैंडपंप लगे हुए हैं। जलकल के आंकड़ों में ही लगभग 2 हजार हैंडपंप सूखे पड़े हैं। इन हैंडपंप को फिर से चालू करने के लिए नगर निगम कार्यकारिणी ने 8वीं बैठक में फैसला लिया था कि हर गर्मी से पहले सिटी के अंदरूनी वार्डो में दो-दो और बाहरी वार्डो के पांच-पांच हैंडपंप रिबोर किये जाएंगे, लेकिन जलकल अफसरों की लापरवाही के चलते अब तक एक भी हैंडपंप रिबोर नहीं किया गया है। अफसर रिबोर की फाइलों को दबा कर बैठ गए हैं। जिसके कारण यह हैंडपंप न तो रिबोर हो पा रहे हैं न ही किसी की प्यास बुझाने लायक बचे हैं।

जमींदोज हो गई पाइप लाइन योजना

योजना- पाइप लाइन डाउनफाल

लागत- अनिर्धारित

लांचिंग- 2013

उद्देश्य- सिटी में कुल 1125 किमी लंबी पाइप लाइन बिछाई गई है। गोरखपुर के पुराने एरियाज में लगभग 400 किमी लंबी पाइप लाइन 15 से 20 साल पहले की लगी हुई है। पहले लोड कम था तो 3 से 4 फीट पाइप लगे होने पर भी फटता नहीं था। अब लोड बढ़ा है तो अक्सर पाइप फट जाता है और कीमती पानी वेस्ट हो जाता है। लालडिग्गी, मिर्जापुर, जाफराबाजार और रेती एरिया में सबसे अधिक पाइप फटते थे। जलकल ने योजना बनाई कि इन पाइप लाइनों को 8 से 9 फीट नीचे किया जाएगा ताकि ओवरलोड के कारण पाइप लाइन न फटे। यह योजना कागजों में ही दब कर रह गई है।

योजनाओं के लिए बजट मिलते ही काम शुरू कराया जा रहा है। कुछ योजनाओं का पैसा नहीं मिल पा रहा है। उनके लिए बार-बार शासन को पत्र लिखा जा रहा है। पैसा मिलते ही जलापूर्ति की सभी योजनाओं को जल्द पूरा कर लिया जाएगा।

राजेश कुमार त्यागी, नगर आयुक्त