गोरखपुर (ब्यूरो)।कुछ सर्वे रिपोर्ट ने लोगों में इतना खौफ पैदा कर दिया है कि घर-घर आरओ लग गए हैं, वहीं जहां इतना पैसा नहीं है, वहां भी पानी पीने के लिए किराए के जार लगवा लिए हैं। यह पानी से पैदा हो रही बीमारी का ही खौफ है कि पानी का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है। गोरखपुर के ज्यादातर आरओ प्लांट अवैध रूप से चल रहे हैं। ग्राउंड वॉटर एक्ट 2019 के तहत आरओ प्लांट लगाने वाले कारोबारियों को ग्राउंड वॉटर डिपार्टमेंट से रजिस्ट्रेशन कराना होता है। लेकिन गोरखपुर सिटी में दिखने वाले आरओ प्लांट में से कोई भी रजिस्टर्ड नहीं है, सिर्फ गीडा की कुछ कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है।
पांच लाख तक का जुर्माना
गोरखपुर में हजारों की संख्या में आरओ प्लांट और धुलाई सेंटर चल रहे हैं। इनमें से केवल गिने चुने का रजिस्ट्रेशन हुआ है, बाकि सभी अवैध हैं। ग्राउंड वॉटर एक्ट के तहत कॉमर्शियल यूज के लिए रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ 2 लाख से 5 लाख तक का जुर्माना और 6 महीने से 1 साल तक की सजा का भी प्रावधान है।
नहीं हो रहा एक्शन
अवैध रूप से चल रहे आरओ प्लांट के खिलाफ प्रशासन की ओर से किसी तरह का एक्शन नहीं लिया गया है। औसत देखें तो एक आरओ प्लांट एक दिन में 1000 लीटर पानी का दोहन करता है। ऐसे अगर अवैध रूप से पानी का दोहन होता रहेगा तो गोरखपुर भी जल्द ही एक्सप्लॉयटेड जोन में आ जाएगा। ग्राउंड वॉटर डिपार्टमेंट के एक्सईएन विश्वजीत सिंह ने बताया कि कॉमर्शियल यूज के लिए सभी को रजिस्टे्रशन कराना अनिवार्य है। इसके लिए 5000 रुपए फीस है। गीडा की कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया है। आरओ प्लांट और वॉशिंग सेंटर वाले अभी आगे नहीं आए हैं। अब इनके खिलाफ कैंपेन चलाकर कार्रवाई की जाएगी। जो रजिस्ट्रेशन कराएगा उसी का प्लांट चालू रहेगा। रजिस्ट्रेशन न कराने वालों पर सख्त एक्शन लिया जाएगा।
दोगुने हो गए वॉटर प्लांट
गोरखपुर में पानी के कारोबारियों की बात करें तो हर मोहल्ले में एक-दो वॉटर सप्लायर मिल ही जाएंगे। वहीं इन्हें सप्लाई करने के लिए पूरे जिले में हजारों वॉटर प्लांट स्टेब्लिश हो चुके हैं। इनसे पानी सप्लाई लेने वाले छोटे कारोबारियों की तादाद भी करीब डेढ़ हजार के आसपास पहुंच गई है, जहां हर प्लांट से करीब 400-500 गैलन वॉटर की सप्लाई की जा रही है। पानी का कारोबार पांच साल पहले जहां सिर्फ दुकानों तक ही सीमित था, वहीं इन दिनों करीब हर दूसरे घर में वॉटर जार की सप्लाई हो रही है।
कुछ यूं बढ़ता गया बिजनेस -
साल - प्लांट डेली डिमांड (गैलन)
2009 - 1 से 2 50 से 60
2010 - 5 से 10 100 से 150
2011 - 20 से 25 250 से 300
2012 - 40 से 50 2 से 3 हजार
2013 - 70 से 80 8 से 10 हजार
2014 - 100-105 12 से 15 हजार
2015 - 125-140 15 हजार से अधिक
2017 - 250 से ज्यादा 25 हजार से अधिक
2018 - 400 से ज्यादा 40 हजार से अधिक
2019 - 500 से ज्यादा 50 हजार से अधिक
(यह आंकड़े ग्राउंड वॉटर एक्ट 2019 के लागू होने से पहले के हैं.)
ऐसे वेस्ट होता है पानी
एमएमएमयूटी के प्रोफेसर डॉ। गोविंद पांडेय की मानें तो आरो सिस्टम के जरिए पानी शुद्ध करने के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस प्रॉसेस अपनाई जाती है। इसके तहत पानी शुद्ध करने पर 100 लीटर पानी में सिर्फ 40 लीटर पानी ही प्योर हो पाता है, जबकि 60 लीटर पानी वेस्ट हो जाता है। इस तरह अगर शहर में डेली एक लाख लीटर पानी की खपत हो रही है, तो उस हिसाब से डेढ़ लाख लीटर पानी बर्बाद हो जा रहा है। इतनी बड़ी मात्रा में शहर में डेली हो रही पानी की बर्बादी को रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया गया, तो पानी की जबरदस्त किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।
पानी का कॉमर्शियल यूज करने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। जिले में अगर आरओ प्लांट अवैध रूप से चल रहे हैं तो यह गलत है। उनपर नियमों के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी।
- कृष्ण करूणेश, डीएम