- नव पाषाण काल से ही शहर में हो गई थी जिंदगी की आमद
- कई बड़ी यूनिवर्सिटीज की रिसर्च में सामने आई है बात
इंट्रो
पितृपक्ष आरंभ हो चुका है। इन 15 दिनों में हम अपने पितरों को याद करते हैं। श्राद्ध के जरिए हम उन्हें अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। पितरों के जैसा ही अपने शहरों से भी हमारा कनेक्शन है। अपनी इस खास सिरीज 'मेरा पितर, मेरा शहर' आई नेक्स्ट एक बार फिर से अपने शहर के साथ कनेक्शन को याद कर रहा है।
GORAKHPUR: गोरक्षनगरी, मुअज्जमाबाद, गोरखपुर और न जाने क्या-क्या नाम हैं, जिनसे मैं जाना जाता हूं। पुराने जमाने के लोग जहां मुझे बादशाह मुअज्जमशाह के द्वारा बसाए जाने की बात करते हैं, वहीं गुरु गोरक्षनाथ के नाम की वजह से इसका नाम गोरक्षनगरी गोरखपुर कहे जाने की चर्चाएं भी आम हैं। यह सब बातें तो बीतें बरसों की हैं। लेकिन अगर कोई मेरा इतिहास पलटकर देखे, तो यह काफी जुदा है। बौद्ध काल के नाम पर आर्कियोलॉजिस्ट ने मेरी पहचान बना दी, मगर हकीकत में मेरा इतिहास चंद सौ साल नहीं बल्कि पुरापाषाण और मध्यपाषाण के बाद शुरू हुए नवपाषाण पीरियड का है। यानि यह एक दो नहीं बल्कि पूरे दस हजार साल पुराना।
इतिहास गवाह है
गोरखपुर यूनिवर्सिटी के साथ कई दूसरी यूनिवर्सिटीज के आर्कियोलॉजिस्ट्स की रिसर्च में यह बातें सामने आई हैं। इन्होंने मेरी आगोश में मौजूद अहम जगहों की खुदाई कराई, जिसमें नवपाषाण काल के अवशेष मिले हैं। यह 8 हजार ईसा पूर्व का पीरियड माना जाता है। रिसर्चर्स की फाइडिंग्स मेरी हिस्ट्री को काफी पुरानी होने की पुष्टि करते हैं। मेरा इतिहास जानने के लिए गोरखपुर यूनिवर्सिटी ने भी तीन जगह खुदाई कराई है। 1974 में शैलनाथ चतुर्वेदी की देखरेख में खुदाई कराई गई। यहां से जो अवशेष मिले हैं, उनकी प्राचीनता नवपाषाण काल की थी। वहीं फाजिलनगर में खुदाई के दौरान अग्रहार भूमिका का साक्ष्य मिला है, इसमें मुहर मिली है जिसमें प्राचीन लिपि में सृष्टिग्राम ग्राहस्य लेख है। वहीं चौरीचौरा स्थित बसडीला में कई बर्तन और एनबीपी के अवशेष भी मिले हैं।
किस पीरियड का क्या मिला -
1. नवपाषाण काल -
कॉर्डेट वेयर
कुल्हाडि़यां
सिल लोढ़े
2. ताम्रपाषाण काल -
तांबे की कटिया
तांबे के उपकरण
हड्डी के उपकरण
ब्लैक एंड स्लिप्ड वियर
सुराही, कटोरे और तश्तरियां
3. प्रारंभिक एतिहासिक काल -
ब्लैक एंड स्लिप्ड वियर-
लोहे के बाणाग्र
लोहे की कील
4. ऐतिहासिक काल -
ब्लैक एंड स्लिप्ड वियर
लोहे के बाणाग्र
मिट्टी की मूर्तियां
अगेट पत्थर
काले लेनियन पत्थर
पहिया
लटकन
ढक्कन
ठप्पे
यहां हुई खुदाई -
सोहगौरा
इमलीडीहा खुर्द
लहुरादेवा
नरहन
टीला उस्मानपुर
बसडीला
वीराभारी
इन पीरियड्स के मिले अवशेष
नवपाषाण काल
ताम्रपाषाण काल
प्रारंभिक एतिहासिक काल
मौर्य काल
कुषाण काल
गुप्तकाल
बौद्ध काल
1974 में मिली पहली सफलता
गोरखपुर के हिस्ट्री को नवपाषाण से जोड़ने वाली पहली फाइंडिंग 1974-75 में मिली है। बसडीला टीला टार की खुदाई में अहम भूमिका निभाने वाले शीतला प्रसाद सिंह ने बताया कि इसके लिए सर्वे काफी पहले 1960-61 से ही स्टार्ट हो गया था, मगर 14-15 साल तक कोई फाइंडिंग्स नहीं मिली। मगर गोरखपुर यूनिवर्सिटी के सर्वेयर्स को 1974-75 में पहली कामयाबी मिल गई। सोहगौरा में हुए खनन में नवपाषाण काल के कई अवशेष मिले।
वर्जन
गोरखपुर की हिस्ट्री 10 हजार से ज्यादा साल पुरानी है। इसको जानने के लिए सिर्फ सिटी के ही नहीं बल्कि बाहर के भी आर्कियोलॉजिस्ट्स ने इंटरेस्ट दिखाया है। इसके लिए गोरखपुर यूनिवर्सिटी के साथ ही बनारस हिंदु यूनिवर्सिटी, लखनऊ यूनिवर्सिटी और स्टेट यूनिवर्सिटी के आर्कियोलॉजिस्ट रिसर्च कर चुके हैं। इसमें कई जगह से खुदाई के दौरान एंसियंट पीरियड के अवशेष मिले हैं, जिनसे गोरखपुर की हिस्ट्री काफी पुरानी होने का प्रूफ मिलता है।
- डॉ। शीतल प्रसाद सिंह, एंसियंट हिस्ट्री, डीडीयूजीयू