गोरखपुर (ब्यूरो)।वहीं काम के बोझ तले दबे यंगस्टर्स भी इस जद में आने लगे हैं। गोरखपुर के मेल्स की बात करें तो फीमेल के मुकाबले यह ज्यादा हाईपरटेंसिव पाए गए हैं। नेशनल हेल्थ सर्वे -5 में यह बात सामने आई है। कम सैलरी और फैसिलिटीज के अभाव में उनकी ख्वाहिशें पूरी नहीं हो पा रही हैं, जिसकी वजह से वह कुढ़-कुढ़कर जिंदगी जी रहे हैं और हाईपरटेंशन का शिकार हो रहे हैं। हालांकि अब हाईपरटेंसिव फीमेल्स की संख्या बढऩे लगी है, जो खतरे की घंटी है।
20.7 परसेंट मेल, 16.8 परसेंट फीमेल शिकार
हाइपरटेंशन एक ऐसी बीमारी है, जो इस भागती दौड़ती जिंदगी में लगातार अपना पांव पसार रही है। क्वालिफिकेशन से ज्यादा डिजायर, इररेग्युलर डाइट के साथ ही फिजिकल वर्क में कमी भी लोगों को हाइपरटेंशन का शिकार बना रही है। नेशनल हेल्थ सर्वे के डाटा पर नजर डालें तो 15-49 साल के लोगों पर हुए सर्वे में यह बात सामने आई कि फीमेल्स से ज्यादा मेल इस बीमारी का शिकार पाए गए हैं। इसमें जहां 16.8 फीसद महिलाएं हाइपरटेंसिव पाई गईं, तो वहीं मेल्स की तादाद 20.7 परसेंट हैं। यह आंकड़े उनके हैं, जो ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने के लिए दवाएं ले रहे हैं।
मानसिक तनाव नहीं है हाईपरटेंशन
अब तक लोगों में यह मान्यता है कि मानसिक तनाव ही हाइपरटेंशन है। मगर मेडिकल टर्म की बात की जाए तो जब आदमी का ब्लड प्रेशर 120/80 से ऊपर पहुंचता है तो यह फेज टेंशन या कंडिशनल टेंशन कहलाता है, वहीं जब बीपी 140/90 से ज्यादा पर पहुंचता है, तो यह कंडीशन हाईपरटेंशन की कैटेगरी में रखी जाती है। इसके दो बजे कॉज मेंटल हेल्थ और मेडिकल कॉजेज हैं।
महिलाओं में बढ़ रहा हाईपरटेंशन
नेशनल हेल्थ सर्वे 4 और 5 के डाटा पर नजर डालें तो 15-49 साल के लोगों पर हुए सर्वे में यह बात सामने आई कि फीमेल्स से ज्यादा मेल इस बीमारी का शिकार पाए गए हैं। मगर इन दोनों के आंकड़ों का कॉम्पेरिजन करें तो मेल अैार फीमेल दोनों में ही हाईपरटेंशन के केस बढ़े हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि फीमेल में इनकी तादाद ज्यादा तेजी से बढ़ी है। आंकड़ों पर नजर डालें तो एनएफएस 4 में इसमें जहां रूरल आबादी की 9.7 फीसद महिलाएं हाइपरटेंसिव पाई गईं, तो वहीं अर्बन एरियाज में इनकी तादाद इससे कई ज्यादा मिली है। वहीं एनएफएस 5 में गोरखपुर की 16.8 फीसद महिलाएं अब बीपी कंट्रोल के लिए दवा ले रही हैं।
मेंटल क्लॉज -
सोशल कंडीशन, सराउंडिंग एंड एनवायर्नमेंटल कंडीशन, फिजिकल कंडीशन, मेराइटल कंडीशन, डोमेस्टिक कंडीशन, इकोनॉमिकल कंडीशन, कल्चरल और जातिगत कंडीशन
वजह - एक्सेसिव डिजायर विदाउट क्वालिफिकेशन
मेडिकल क्लॉज
कार्डियो वेसिकुलर डिजीज, डिजीज ऑफ वीनस सिस्टम, डिजीज ऑफ इंडोक्रायनल सिस्टम, मेटाबोलिक डिस्ऑर्डर
वजह - इररेग्युलर डाइटरी हैबिट एंड लीस्ट फिजिकल एक्सरसाइज, स्पेशली फैट एंड प्रोटीन, इंड्यूज मैटेरियल फॉर क्रॉप एंड मैटेरियल, नमक
किस एज ग्रुप में और क्यों?
चाइल्ड ग्रुप - 0 से 15 - रेयर या ब्रेन प्रॉब्लम
एडल्ट - 15 से 45 - फिजिकल कंडीशन एंड इररेग्युलर डायरटी हैबिट
जेरियॉटिक - 45 से 70 - मेडिकल हैबिट
ओल्डर - 70 से ऊपर - बॉडी फंक्शन
क्या है सिंप्टम -
सिरदर्द, थकान, कमजोरी, घबराहट, नजर कमजोर, धुंधलापन, चक्कर, उलझन, कान में घंटी बजना, सांस फूलना, अनियंत्रित धड़कन की प्रॉब्लम, अनकॉन्शस
क्या पड़ेगा इफेक्ट -
- अर्टरीज सिकुडऩा
- ब्रेन में ब्लड क्लॉट (ब्रेन हैमरेज)
- हार्ट अटैक
- एन्युरिज्म
- किडनी फेल्योर
- हार्ट फेल्योर
- आई डैमेज
क्या है प्रिकॉशन -
- बैलेंस डाइट लें
- भूख लगने पर ही खाना खाएं
- रेग्युलर एक्सरसाइज
- अपने डिजायर को कम करें
- रेग्युलर चेकअप कराते रहें।
स्टैटिस्टिक -
फीमेल्स -
नॉर्मल से अबव - 10.2 परसेंट
मॉडरेटली हाई - 4.6 परसेंट
वेरी हाई - 16.8 परसेंट
मेल्स -
नॉर्मल से अबव - 13.4 परसेंट
मॉडरेटली हाई - 6.1 परसेंट
वेरी हाई - 20.7 परसेंट
नॉर्मल रेंज -
नॉर्मल से अबव - 140-159/90-99
मॉडरेटली हाई - 160-179/100-109
वेरी हाई - 180/110 या इससे ज्यादा
एक्सेसिव डिजायर विदाउट क्वालिफिकेशन लोगों को हाईपरटेंशन का मरीज बना रही है। लोग अपनी लिमिट से ज्यादा सोचने लगते हैं, लेकिन लिमिटेशन होने की वजह से उनकी ख्वाहिशें पूरी नहीं हो पाती, जिसकी वजह से उनको धीरे-धीरे टेंशन होने लगती है, तो वक्त बीतने के साथ बढ़ जाती है।
- डॉ। त्रिलोक रंजन, फिजीशियन