- नियम तोड़ने में अव्वल है पुलिस डिपार्टमेंट

- सेमिनार और विज्ञापन बोर्ड तक सीमित है मानवाधिकार के नियम

GORAKHPUR: आज ह्यूमन राइट डे है। हर साल की तरह इस बार भी मानवाधिकार पर सेमिनार और लेक्चर आयोजित किये जाएंगे। फिर लोग इसे भूल जाएंगे। दस दिसंबर को ह्यूमन राइट डे के मौके पर आई नेक्स्ट ने गोरखपुर में मानवाधिकार की स्थिति जानने की कोशिश की। हमने पाया कि मानवाधिकार का सबसे ज्यादा हनन पुलिस विभाग में होता है। पीडि़त को पता ही नहींहोता है उसके अधिकार क्या हैं। थाने, चौकी, सरकारी विभाग में हर रोज कॉमन मैन के अधिकार का हनन होता है। न कोई पूछने वाला और न कोई बताने वाला। जिन एजेंसी पर इसकी जिम्मेदार है उनके पास भी अधिकार के लिए अधिकार नहीं हैं। ऐसी स्थिति में कैसे कॉमन मैन को मिलेगा मानवाधिकार?

दंड का प्रावधान तक नहीं

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम क्99फ् में दंड का प्रावधान नहीं है। मानवाधिकार के मामले की सुनवाई एडीजे कोर्ट में होती है। हालांकि सालों से एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है। कहने को मानवाधिकार आयोग है, लेकिन न तो उनके पास एक्शन लेने का अधिकार तक नहींहै।

कितने नियम किए जाते फॉलो

मानवाधिकार पुलिस रेगुलशन में भी मान्य है, लेकिन उन अधिकारों का सच क्या है? यह कॉमनमैन ही बता सकता है। आज हम

आइए आपको कुछ ह्यूमनराइट नियमों बारे में।

नियम क्

- थाने पर पीडि़त की रिपोर्ट अवश्य लिखी जाए और एफआईआर की कॉपी निशुल्क उपलब्ध कराई जाए।

सच- किसी भी थाने में बिना चक्कर लगाए एफआईआर दर्ज नहीं होती हैं। इसे पुलिस के आला अफसर भी मानते हैं।

नियम ख्

- थाने पर लाए गए व्यक्ति के साथ मारपीट या अमानवीय व्यहवार नहीं किया जाए।

सच- थाने में आरोपी तो दूर पीडि़त भी पुलिस के अमानवीय व्यहवार से बच नहीं पाता है। थानों में पुलिस के अपशब्द की बौछार कॉमन को ही सबसे ज्यादा फेस करनी पड़ती है।

नियम फ्

-धारा क्म्0 (ख्) के तहत अगर यदि किसी व्यक्ति को थाने पर बयान हेतु बुलाया जाता है तो उचित यात्रा व्यय दिया जाए।

सच- पुलिस डिपार्टमेंट में क्या ऐसा संभव हैं? क्या कभी किसी थाने पर साक्ष्य के लिए बुलाए जाने पर किसी को यात्रा व्यय मिला है? उल्टा उसे ही खर्च करना पड़ता है।

नियम ब्

- धारा क्भ्0 के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण बताया जाए। उसे उसके वकील से परामर्श और प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाए।

सच- शायद ही कुछ मामले हो जिसमें पुलिस अरेस्टिंग की सूचना परिजनों या फिर उसके वकील को देती हैं। कई बार बिना सूचना के ही पुलिस अरेस्ट कर लेती है।

नियम भ्

- धारा क्म्7 के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को ख्ब् घंटे के भीतर साक्ष्य के साथ कोर्ट में पेश किया जाए।

सच- ऐसे सैकड़ों मामले प्रकाश में आ चुके है जिसमें हिरासत में लेकर कई कई दिन तक पुलिस थाने में बैठाए रखती है। हां सरकारी रजिस्टर में इंट्री करने के बाद उसे थाने में जरूर पेश कर देती है।

नियम म्

- पुलिस रेगुलेशन एक्ट के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को भोजन कराने की व्यवस्था की जाए।

सच- शायद ही कोई थाना हो जहां अरेस्ट किए गए व्यक्ति को भोजन कराया जाता है। हालांकि कि विभाग को भोजन के लिए जितना फंड मिलता है उतने में आज चाय तक नहीं मिलती।

नियम 7

-सर्वोच्च न्यायलय के अनुसार गिरफ्तार किए गए विचारधीन बंदी को न्यायालय में पेश करने के और एक जगह से दूसरे जगह लेने के दौरान हथकड़ी न लगाई जाए।

सच- यह सच आप किसी भी कचहरी और कोर्ट के बाहर देख सकते हैं। बंदी को हथकड़ी में बांध कर लाया जाता है और कोर्ट के बाहर उसकी हथकड़ी खोल दी जाती है।

वर्जन-

मानवाधिकार आयोग किसी भी मामले में जांच कर अपनी रिपोर्ट तो दे सकता है, लेकिन जांच के बाद वह स्वयं एक्शन नहीं ले सकता हैं। इसके लिए वह राज्य सरकार को कार्रवाई के लिए सूचित कर सकता है।

बच्चू सिंह, एडवोकेट

अपने अधिकारों की जानकारी बहुत से लोगों को नहीं हैं। कानून ने आम आदमी को जो अधिकार दिए है उसने ज्यादा से ज्यादा लोगों को अवेयर कराने की जरूरत है। ताकि अपने हक के बारे में उन्हें जानकारी हो सके। मानवाधिकार का हनन शासन से जुड़ी मशीनरी के द्वारा ही वायलेंस फैलाया जाता हैं।

डॉ। ए.के शुक्ला, प्रोफेसर रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग डीडीयू