गोरखपुर (ब्यूरो)। इस बात का खुलासा किया है जिला कृषि रक्षा अधिकारी द्वारा की गई स्टडी में। उन्होंने बताया कि बरसात के दिनों मनुष्यों को स्किन डिजीज 'पार्थेनिक हिस्टेरीफोरस' यानी गाजर घास से हो रही है। इसकी चपेट में मैक्सिमम लोग आ रहे हैैं। सिटी से लेकर रूरल एरिया तक लोग इसकी चपेट में हैं। करीब 250 से ज्यादा लोगों पर की गई स्टडी में पाया गया कि इन्हें गाजर घास के जरिए एग्जिमा, एलर्जी, बुखार और अस्थमा हुआ और उन्हें डॉक्टर के पास जाने की जरूरत पड़ी।
ताकि न हो स्किन डिजीज
बीआरडी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल की ओपीडी में पैरों पर या फिर बॉडी के दूसरे हिस्सों में एलर्जी, एग्जिमा की प्रॉब्लम के पेशेंट पहुंचते हैं। ये खुजली से भी परेशान होते हैं। जिला कृषि रक्षा अधिकारी डॉ। आरडी वर्मा ने बताया, इसकी वजह पार्थेनिक हिस्टेरीफोरस है। इस बीमारी से लोगों को निजात दिलाने के लिए भारत सरकार की तरफ से 16 से 22 अगस्त तक गाजर घास उन्मूलन के लिए गाजर घास नियंत्रण सप्ताह शुरू किया गया है। उन्होंने बताया कि पार्थेनियम हिस्टेरीफोरस को गाजर घास कहते हैं। इसे आमतौर पर कांग्रेस घास, सफेद टोपी, असाडी गाजर, चटक चांदनी आदि के नामों से भी जाना जाता है। गाजर घास अक्सर रेलवे ट्रैक, सड़क के किनारे, बंजर भूमि, उद्यान आदि जगहों पर होती है। जो हमारी सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक हैं। इसके अलावा रूरल एरिया में 350 लाख हेक्टेयर फसलों और गैर फसली एरिया में भी यह पाई जाती है। जो मनुष्यों के साथ फसलों को भी प्रभावित करते हैं।
घास में फूल आने से पहले उखाडऩा है जरुरी
डॉ। आरडी वर्मा ने बताया, गाजर घास खतरनाक होती है। इसके प्रभाव से बचने के लिए इस घास में फूल आने से पहले ही जड़ से उखाड़ कर अलग करना ही बेहतर होता है। प्रतिस्पर्धात्मक पौधे जैसे चकोरा (सेन्ना सिरेसिया ) के बीज इक्ट्ठा कर छिड़क देने से यह फिर से नहीं पनप पाता है। यह गाजर घास के वृद्धि एवं विकास को रोक देता है। गाजर घास के रासायनिक नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट (1.0-1.5) अथवा मैट्रीब्यूजिन (0.3-0.5) का छिड़काव करना चाहिए। मैक्सिन बीटल (जाइगोग्रामा बाइक्लोराटा) नामक कीट बरसात में गाजर घास के जैविक नियंत्रण के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।
पार्थेनियम हिस्टेरीफोरस यानी गाजर घास के चपेट में आने वाले मरीज इन दिनों खूब आते हैं। एलर्जी और एग्जिमा के पेशेंट्स परेशान रहते हैं। एक हफ्ते में इलाज के जरिए यह स्वस्थ भी हो जाते हैं, लेकिन प्रॉपर इलाज जरूरी है।
प्रो। डॉ। ललित मोहन, डर्मेटोलाजिस्ट
बरसात के दिनों में स्किन डिजीज के मरीजों की संख्या ओपीडी में ज्यादा आती है। गाजर घास बहुत ही खतरनाक होता है। तेजी के साथ लोगों को अपने चपेट में लेता है। पार्थेनियम हिस्टेरीफोरस यानी गाजर घास से पीडि़त इन दिनों ज्यादा आ रहे हैं। इनका इलाज मेडिसिन और ऑयमेंट्स के जरिए होता है।
डॉ। नवीन कुमार, डर्मेटोलाजिस्ट