गोरखपुर (ब्यूरो)।डॉक्टर्स इन्हें बचपन में ही चश्मा लगाने की जरूरत बताने लगे हैं। एक सर्वे के मुताबिक कोरोना से पहले जहां 10 से 15 साल के बच्चों में मायोपिया के मामले 7 से 8 परसेंट थे, वहीं यह कोरोना के बाद बढ़कर 13 से 18 परसेंट तक हो गए हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल में मायोपिया के मरीजों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है।

इलेक्ट्रॉनिक गैजेट बना रहा बीमार

कोरोना के बाद पढऩे-लिखने से लेकर टाइम पास तक के लिए इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल कई गुना बढ़ा है। बच्चों को बहलाने के लिए जहां मोबाइल दे दिया जा रहा है, वहीं पढ़ाई और इससे जुड़ी एक्टिविटीज के लिए भी मोबाइल जरूरी हो गया है। ऐसे में मोबाइल का शौक रखने वाले यह बच्चे अलग-अलग तरह की बीमारी की चपेट में आने लगे हैं। फिजिकल प्रॉब्लम तो हो ही रही है, वहीं अक्सर मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी से चिपके रहने से निकट दृष्टि दोष यानि कि मायोपिया के मामले भी बढऩे लगे हैं। मायोपिया में पास की वस्तुएं साफ दिखाई देती हैं, लेकिन दूर की नजर कमजोर हो जाती है। ऐसे में ग्लूकोमा होने का खतरा भी रहता है।

बच्चों में 30 परसेंट जोखिम ज्यादा

जिला अस्पताल की आई स्पेशलिस्ट डॉ। कामना श्रीवास्तव की मानें तो पेरेंट्स इस प्रॉब्लम का शिकार हो चुके हैं तो ऐसे में मायोपिया का जोखिम बच्चों में 30 परसेंट तक बढ़ जाता है। पेरेंट्स यदि पीडि़त है तो पांच से 15 साल के आयु के बच्चों की जांच की जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि जब मायोपिया की समस्या अगर बहुत बढ़ जाती है तो ग्लूकोमा होने का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों में यह समस्या तेजी से बढ़ती है, क्योंकि उनका शरीर और आंखें डेवलप हो रही होती हैं। आंखों का आकार बढऩे से कॉर्निया और रेटिना में तेज खिंचाव हो सकता है।

20-20-20 का फॉर्मूला अपनाएं

इससे बचने के तरीके को बताते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए 20-20-20 का फॉर्मूला अपनाना चाहिए। यानि कि अगर कोई कंप्यूटर, मोबाइल या फिर टीवी पर 20 मिनट का समय बिता रहा है तो इस दौरान 20 सेकेंड का ब्रेक लें। इस दौरान 20 मीटर दूर देखें। शरीर व आंखों को आराम दें।

ये करें

अच्छी रोशनी वाले कमरों में करे पढ़ाई

लेट कर पढऩे से बचें

स्मार्टफोन का इस्तेमाल कम करें

लंबे समय तक फिल्म या पढऩे से बचें

स्कूल में एक पीरियड आउट डोर का हो

सामान्य खाने पर ध्यान देना चाहिए।

यदि बच्चे को ब्लैकबोर्ड स्पष्ट नहीं दिखता, पास के टीवी देखने में प्रॉब्लम होती है तो उन्हें तुरंत जांच करवानी चाहिए। अगर पेरेंट्स में पहले से मायोपिया की शिकायत है तो बच्चे में इसके होने का रिस्क 30 परसेंट ज्यादा है। ऐसे में 15 साल के बच्चों की आखों की जांच जरूर करानी चाहिए।

डॉ। कामना श्रीवास्तव, आई स्पेशलिस्ट, जिला अस्पताल