गोरखपुर (ब्यूरो)।इसे लेकर डॉक्टरों ने लोगों को आगाह किया है। डॉक्टर्स का कहना है कि यदि बहुत जरूरी काम न हो तो 12 से 3 बजे तक निकलने से बचें।

हीट स्ट्रोक का दिमाग और किडनी पर असर

जिला अस्पताल के फिजीशियन डॉ। राजेश कुमार ने बताया, इस मौसम में हीट स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़े हैं। मरीजों को एक से दो दिनों तक भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है। उन्होंने बताया, हीट स्ट्रोक एक ऐसी स्थिति है, जब शरीर का तापमान 104 डिग्री फारेनहाइट (40 डिग्री सेल्सियस) या इससे ऊपर पहुंच जाता है। ऐसे में बढ़े हुए तापमान को अगर समय रहते संतुलित नहीं किया जाए तो यह दिमाग और किडनी पर असर डालता है, जो मौत का कारण बनता है। जिला अस्पताल के इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर डॉ। शहनवाज ने बताया कि इमरजेंसी में हीट स्ट्रोक के मरीजों की संख्या बढ़ी है। इसमें ज्यादातर बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉ। गगन गुप्ता ने बताया कि इमरजेंसी में हीट स्ट्रोक के मरीज तेजी से बढ़े हैं।

इस वजह से होता है हीट स्ट्रोक

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉ। गगन गुप्ता ने बताया कि जब शरीर के द्रव्य बॉडी फ्लूयेड सूखने लगती है या शरीर से पानी व नमक की कमी होने लगती है तो हीट स्ट्रोक या लू लगने का खतरा बढ़ जाता है। जब तक वातावरण का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। कोई दिक्कत नहीं होती है, लेकिन जब यह इससे ऊपर बढ़ता है तो शरीर वातावरणीय गर्मी को शोषित करने लगता है और शरीर का तापमान प्रभावित होने लगता है।

हीट स्ट्रोक के लक्षण

सीएमओ डॉ। आशुतोष कुमार दूबे ने बताया, गर्म, लाल, शुष्क त्वचा का होना, पसीना न आना, तेज पल्स होना, सांस गति में तेजी, व्यवहार में परिवर्तन, भ्रम की स्थिति, सिरदर्द, मितली, थकान और कमजोरी होना, चक्कर आना, मूत्र न होना अथवा इसमें कमी हीट स्ट्रोक के लक्षण हो सकते हैं। ऐसे लक्षणों के कारण शरीर के आंतरिक अंगों खासतौर से मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है और उच्च रक्तचाप की स्थिति बनती है।

ऐसे करें सावधानी

भरपूर मात्रा में पानी पीएं। पसीना शोषित करने वाले हल्के वस्त्र पहनें।

धूप के चश्मे, छाता, टोपी, चप्पल का इस्तेमाल करें।

खुले में कार्य करने वाले सिर, चेहरा, हाथ, पैरों को गीले कपड़ों से ढके रहें व छाते का प्रयोग करें।

लू प्रभावित व्यक्ति को छाये में लिटा कर सूती गीले कपड़े से पोछें अथवा नहलायें व चिकित्सक से संपर्क करें।

ओआरएस, घर में बने पेय पदार्थ लस्सी, चावल का पानी (मांड), नींबू पानी, छाछ आदि का प्रयोग करें।

यह न करें

बच्चों को कभी भी बंद व खड़ी गाडिय़ों में अकेले न छोड़ें।

दोपहर 12 से तीन बजे के बीच धूप में जाने से बचें।

गहरे रंग के भारी और तंग कपड़े न पहनें।

अधिक प्रोटीनयुक्त, बासी व संक्रमिक खाद्य एवं पेय पदार्थों का सेवन न करें।

अल्कोहल, चाय या कॉफी पीने से परहेज करें।