गोरखपुर (ब्यूरो)। इसके बाद स्टूडेंट्स को खाने-पीने के लिए बार-बार कैंपस के बाहर जाना पड़ता है। ऐसे में उनका स्वास्थ्य खराब होने के साथ ही सड़क पर खड़े होने के चलते एक्सीडेंट की संभावना भी बढ़ जाती है। वहीं, मेन गेट के सामने बने स्टॉल पर स्टूडेंट्स की भीड़ होने के चलते यहां अक्सर जाम की नौबत भी बन जाती है।
कैंपस में पढऩे आते 10 हजार स्टूडेंट
गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पढऩे के लिए रोजाना 10 हजार से अधिक स्टूडेंट कैंपस में विजिट करते हैं। वहीं, करीब 750 टीचर और कर्मचारी भी रोजाना कैंपस में आते हैं। ऐसे में कैंपस के अंदर कैंटीन की जरूरत सबसे ज्यादा महसूस की जाती है। इस प्रचंड गर्मी के मौसम में जहां लोग कमरों से बाहर आने के लिए सोचते हैं तो वहीं कैंपस में कैंटीन न होने के चलते पैदल बाहर जाना लोगों के लिए कठिन टॉस्क बन जाता है। नतीजा ज्यादातर लोग घर से निकलते समय अपने खाने-पीने की व्यवस्था साथ लेकर चलते हैं।
गर्मी में पानी के लिए तरसते हैं छात्र
एक ओर सिटी का पारा 44 डिग्री पहुंच गया है तो डीडीयू कैंपस में कैंटीन के न होने से स्टूडेंट्स को ठंडे पानी तक के लिए तरसना पड़ता है। परेशान छात्र बाहर जाकर पानी पीने के लिए विवश हो जाते हैं। दोपहर के समय चिलचिलाती धूप और उमस के बीच पानी न मिल पाना छात्रों और कर्मचारियों को दुर्गम एहसास कराता है।
एक साल से मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा हूं। कई बार कैंटीन खोलने की बात कही गई, लेकिन आज तक कैंटीन नहीं खुल पाई। इस भीषण गर्मी के मौसम में बाहर जाना बहुत तकलीफ देता है।
-सुधांशु, स्टूडेंट, डीडीयूजीयू
पहले यहां एक कैंटीन चला करती थी। लेकिन, कुछ महीनों पहले वह भी बंद हो गई। अब हमें भूख लगती है तो मेन गेट के बाहर जाना पड़ता है। यूनिवर्सिटी को कैंटीन शुरू करने पर विचार करना चाहिए।
- रीपू, स्टूडेंट, डीडीयूजीयू
भीषण गर्मी से बचाव के लिए पानी पीना जरूरी है। लेकिन यहां लगे वाटर कूलर खराब पड़े हैं। एक नया वॉटर कूलर लगाया गया है लेकिन स्टूडेंट्स की संख्या के आगे वह नाकाफी है। अगर कैंटीन होती तो खाने के साथ पीने का पानी भी मिल जाता।
-वैभव, स्टूडेंट, डीडीयूजीयू
कैंपस में बनी मिनी कैंटीन करीब 6 महीने पहले बंद हो गई। ऐसे में चाय पीना भी मुश्किल हो गया है। बार-बार बाहर जाना स्वास्थ्य के साथ ही दुर्घटनाओं को न्यौता देने वाला साबित हो सकता है।
-बलवंत, स्टूडेंट, डीडीयूजीयू