- गोरखपुर के प्रेमचंद निकेतन में मुंशी प्रेमचंद ने लिखी थीं कई किताबें

- घंटाघर चौक पर स्थित पाकड़ के पेड़ पर दी गई थी क्रांतिकारियों को फांसी

- धरोहर के रूप में सहेजने वाली जगह हैं दोनों

GORAKHPUR: मैं गोरखपुर। इन दिनों बात मेरी ऐसी धरोहरों की हो रही है, जिन्होंने मेरा नाम ऊंचा किया, जिनसे मेरी पहचान होती है। ऐसी ही एक धरोहर है घंटाघर। यहां अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को मौत के घाट उतारा था। जिसे देखकर मैं रो पड़ा था। आज भी याद कर आंखें नम हो जाती हैं। इस धरोहर के अलावा कुछ शख्सियतें भी हैं, जिन्होंने मेरी जमीन पर अपने दिन गुजारे, मगर अपनी पहचान छोड़ गए। जो आज मेरी भी पहचान है। ऐसी ही एक शख्सियत कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद थे। आज उनकी कथा मेरी जुबानी सुनिए।

प्रेमचंद की यादें अब भी ताजा

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने 1916 से 1921 तक का वक्त मेरी आगोश में प्रेमचंद निकेतन में बिताया। 1903 में बनी इस बिल्डिंग को टीचर ट्रेनिंग के वार्डन के लिए बनाया गया था। जब मुंशीजी की तैनाती यहां हुई, तो उन्हें यहीं पर रहने के लिए क्वार्टर मिल गया। 15 फरवरी 1921 में बाले मियां के मैदान में महात्मा गांधी की स्पीच सुनने के बाद उन्होंने टीचिंग सर्विस और टीचर ट्रेनिंग कॉलेज के वार्डन पद से इस्तीफा दे दिया।

पार्क भी दिलाता है याद

वीर बहादुर सिंह जब सीएम थे, तो उन्होंने मुंशीजी की स्मृतियों को बचाने के लिए एक पार्क बनवाया। उसमें 1996 में प्रेमचंद साहित्य संस्थान ने प्रेमचंद निकेतन से प्रेमचंद पुस्तकालय और साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियां शुरू कर दीं। इससे आज भी मेरे आंगन में मुंशी जी के बिताए दिनों की यादें जिंदा हैं।

शहादत की याद दिलाता घंटाघर

सेंटर प्वाइंट उर्दू बाजार में मौजूद घंटाघर आज राहगीरों को वक्त बताने का काम करता है। लेकिन, यह बीते दिनों का भी वक्त बताने के लिए हमारे बीच मौजूद है। यह आजादी से पहले के वक्त की उन कड़वी यादों को भी संजोए हुए है, जिन्हें याद कर रूह कांप जाए। उन दिनों अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह चरम पर पथा। घंटाघर चौक पर जहां इस वक्त क्लॉक टावर है, वहां पाकड़ का बड़ा पेड़ हुआ करता था। 31 मार्च 1859 में अंग्रेजों ने इस पेड़ पर अली हसन के साथ कितने ही क्रांतिकारियों को लटकाकर मौत के घाट उतार दिया था। इस प्लेस पर सेठ राम खिलावन और ठाकुर प्रसाद ने फ्रीडम फाइटर्स की याद में क्लॉक टावर बनाया, जिसमें चारों ओर बड़ी-बड़ी घडि़यां लगवाई, जो आज भी लोगों को वक्त बताती हैं।