गोरखपुर (ब्यूरो)। इस कदर उसे मोबाइल पर गेम की लत थी कि नींद में भी कभी-कभी उसकी उंगलियां चलने लगती थी। लेकिन अब मानस ने अपनी इस आदत को नियंत्रित कर लिया है। मानस में ये बदलाव आया है डिजिटल फास्ट से। फास्ट के दिन मानस सप्ताह में एक दिन मोबाइल से पूरी तरह से दूरी बना लेता है। इसके साथ ही सामान्य दिन में भी मोबाइल का इस्तेमाल कम कर दिया है।
ऐसे हुई शुरुआत
मानस की इस लत का प्रभाव उसकी पढ़ाई के साथ ही उसके पारिवारिक जीवन पर भी पड़ रहा था। वह बात-बात पर उग्र हो जाता था। उसकी मम्मी ने सख्ती की, लेकिन सख्ती का कोई खास असर नहीं पड़ा। ऐसे में मानस की मम्मी उसे एक मनोचिकित्सक के पास ले गईं। वहां डॉक्टर से पता चला कि यह एक मानसिक बीमारी है। इसके बाद उसने अपनी दिनचर्या में बदलाव किया और मोबाइल से दूरी बनानी शुरू की। इसमें उसे दोस्तों का भी सहयोग मिलने लगा। मानस ने अपने दोस्तों आशीष और मीत के साथ मिलकर डिजिटल फास्ट की शुरुआत की। इसके तहत तीनों ने सप्ताह में एक दिन मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट के साथ ही अन्य डिजिटल गैजेट्स बनानी शुरू की। फिर तीनों ने दूसरों को भी मोबाइल से दूरी बनाने के लिए प्रेरित करना शुरू किया।
ये है डिजिटल फास्ट
डिजिटल फास्टिंग लोगों के एक दिन या एक सप्ताह में स्मार्टफोन के इस्तेमाल की लिमिट निर्धारित करता है। डिजिटल फास्टिंग में लोग निर्धारित समय के अनुसार ही डिजिटल डिवाइज का इस्तेमाल करते हैं। इस फास्टिंग में आमतौर पर फोन, टैबलेट या लैपटॉप को शामिल किया जाता है।
डिजिटल फास्ट के फायदे
- डिजिटल फास्टिंग को अपने रूटीन में शामिल करने से आपके रिश्ते मजबूत बनते हैं
- आप प्रोडक्टिव काम कर पाते हैं
- सेहत भी अच्छी रहती है
- बेहतर कामों के लिए समय मिल जाता है
ऐसे करें कोशिश
- अनावश्यक नोटिफिकेशन बंद कर दें
- चमकीले रंगों से दूर ग्रेस्केल स्क्रीन फिल्टर सक्रिय करें
- खाना खाते समय करते समय फोन दूर रखें
- डिजिटल डिवाइस से हर दिन दूरी का समय तय करें
- बेडरूम को नो-टेक जोन बनाएं।
- मनपसंद किताबें पढ़ें
- मोबाइल देखने की जगह म्यूजिक सुनें
8 घंटे से ज्यादा समय
गोरखपुर यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक डॉ। शुभांकर राय ने बताया कि यंगस्टर्स ऑनलाइन रोजाना करीब 8 घंटे गुजार रहे है। फोन पर घंटों गुजारने का सीधा असर सेहत पर पड़ रहा है। सोशल मीडिया की लत लोगों के बर्ताव और स्वभाव को चिड़चिड़ा बना रही हैं। मानसिक दिक्कतों बढ़ती जा रही हैं। दिक्कतें हद से ज्यादा बढ़ जाने पर डॉक्टर डिजिटल फास्टिंग की सलाह देते हैं।
बड़ी संख्या में ऐसे केसेज सामने आ रहे हैं, जिसमें यंगस्टर्स को मोबाइल की लत पड़ गई है। बिना मोबाइल के वह रह ही नहीं पाते हैं। मोबाइल की लत को खत्म कराने के लिए उनकी दिनचर्या में बदलाव करवाया जा रहा है। इसके साथ ही मोबाइल से सप्ताह में एक दिन की दूरी बनवाई जा रही है।
डॉ। अमित शाही, मनोचिकित्सक
मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से युवा मानसिक रोगी बन रहे हंै। ये बहुत ही खतरनाक है। उन्हें मोबाइल चलाने की बीमारी हो जा रही है। बिना मोबाइल के वे रह ही नहीं पाते हैं। ऐसे में उनकी आदतों में बदलाव कर ही लत को छुड़ाया जा सकता है।
डॉ। सीमा श्रीवास्तव, मनोवैज्ञानिक