गोरखपुर (ब्यूरो)। तनावपूर्ण माहौल और गलत खानपान से भी यह बीमारी बढ़ रही है। जिन लोगों को डायबिटिज, थॉयरायड और बीपी जैसी समस्या हैं, उनमें ग्लूकोमा होने की आशंका अधिक होती है। समय पर इसका पता चल जाए तो नुकसान अधिक होने से रोका जा सकता है। वहीं पर्यावरण फैक्टर जैसे एयर पाल्युशन से भी यह बीमारी हो सकती है, क्योंकि यह आपकी आंखों के सेल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में आंखों की विशेष देखभाल करने की जरूरत है। साथ ही अगर परिवार में पहले किसी को ग्लूकोमा हो चुका है तो परिवार के अन्य सदस्य सजग हो जाएं, क्योंकि उनमें यह बीमारी होने की आशंका अधिक हो सकती है।
आंख बड़ी तो डॉक्टर को दिखाएं
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के आई विभाग के एचओडी डॉ। राम यश यादव मुताबिक ग्लूकोमा बच्चों में भी होता है। अगर जन्म के बाद बच्चों की आंख बड़ी लगती हैं, तो बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाकर उसकी आंखों की जांच कराएं। यह ग्लूकोमा का लक्षण हो सकता है। हालांकि बड़े लोगों में यह लक्षण नहीं माना जाता है। ज्यादातर यह बीमारी 40 साल की उम्र में होती है।
उम्र 40 से अधिक हो तो सजग हो जाएं
डॉ। राम यश यादव मुताबिक वैसे ग्लूकोमा का कोई लक्षण नहीं होता है। केवल धीरे-धीरे आंखों की रौशनी कम होने लगती है। ऐसे में अगर आपकी उम्र 40 वर्ष से अधिक है और महिलाओं में अर्ली मेनापॉज है तो समय-समय पर आंखों की जांच कराते रहना चाहिए। इस उम्र में ही ग्लूकोमा का खतरा अधिक रहता है।
जानिए, क्या है ग्लूकोमा
इसे सबलबाई या काला मोतिया भी कहते हैं। इसमें आंखों की रोशनी जाने का खतरा रहता है। सही समय पर इलाज शुरू नहीं किया गया तो दोबारा रोशनी नहीं आती है। इस बीमारी में आंख में दबाव बढऩे से ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है। ऑप्टिक नर्व नर्व आंख को दिमाग से जोड़ती है, जिससे हम देख पाते हैं।
ये है इलाज की प्रक्रिया
ग्लूकोमा होने पर आंख में दबाव को कम किया जाता है, जिससे नर्व को क्षतिग्रस्त होने से रोका जा सके। शुरुआती दौर में इसके लिए आईड्राप दी जाती है। दवा से ठीक नहीं होने पर सर्जरी की जाती है। इसे ट्रेबेक्युलेक्टमी सर्जरी करते हैं। इसके असफल होने पर वॉल्ब के जरिए इलाज किया जाता है।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज मिल रहा इलाज
विशेषज्ञों के अनुसार बीआरडी मेडिकल कॉलेज में पेरीमेट्री और ओसीटी मशीन की सुविधा उपलब्ध है। इस मशीन के जरिए आंखों की जांच की जाती है। साथ ही ऑपरेशन भी किए जाते हैं।
ग्लूकोमा के लक्षण
- आंखों में हल्का दर्द या भारीपन रहना
- तेज सिरदर्द के साथ चक्कर आना
- आंख में लालीपन आना
- बल्ब के चारों तरफ रंगीन घेरे दिखाई देना
- दूर दृष्टि या नजदीक दृष्टि में धुंधला दिखना
ग्लूकोमा से बचाव
-बार-बार आंखों का चेकअप कराना
-जागरूक होने के लिए
-फिट रहना और स्वस्थ खाना
-ऐसे कार्य करते समय अपनी आंखों की सुरक्षा करना
ग्लूकोमा ऐसी बीमारी है, जो आप्टिक नर्व को प्रभावित करती है। साथ ही उसे डैमेज कर देती है। जिससे रोशनी वापस नहीं आ पाती है। ऑपरेशन ही इसका इलाज है। ऑपरेशन से रोशनी वहीं तक रोकी जाती है। छोटे बच्चों के अलावा ज्यादातर 40 साल उम्र के बाद यह बीमारी होती है। मेडिकल कॉलेज में इसका इलाज उपलब्ध है।
डॉ। राम यश यादव, एचओडी आई विभाग बीआरडी मेडिकल कॉलेज