गोरखपुर (ब्यूरो)। यही नहीं कितनी मात्रा में खाद का छिड़काव हो और उससे कितने क्विंटल अनाज के पैदावार होने की संभावना हो, यह सबकुछ स्मार्ट एग्रीकल्चर के जरिए अब संभव हो चुका है। इसके लिए डीडीयूजीयू के कृषि संकाय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ। निखिल रघुवंशी व डॉ। मोनालिसा साहू ने आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंक) की मदद से सेंसर युक्त मार्डन टेक्नोलॉजी का अविष्कार किया है। यह सेंसर मोबाइल, स्मार्ट फोन और कंप्यूटर से कनेक्ट कर खेतों में के स्वॉयल को न सिर्फ हेल्दी बनाने में मददगार साबित होंगे, बल्कि किसानों को बीज रोपने से पहले और उसके बाद कितनी मात्रा में खाद का छिड़काव करना है, इन सभी का डाटा सेंसर के माध्यम से मोबाइल में ही देखा जा सकेगा और अनाज की अच्छी पैदावार कराई जा सकती है।
मानक के अनुरूप होगी फार्मिंग
ईस्ट यूपी के खेतों में किसानों में अभी भी खेती के तरीके नहीं पता है। कितनी मात्रा में खाद का छिड़काव करना है और किस प्रकार की मिट्टïी में कौन सा बीज और खाद का छिड़काव करना है, इसकी जानकारी न होने से पैदावार पर इसका असर पड़ता है। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर यह सबकुछ मानक के अनुरूप संभव हो सकेगा। डीडीयूजीयू के कृषि संकाय भवन के असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ। निखिल रघुवंशी और डॉ। मोनालिसा साहू ने एक नई और एडवांस टेक्नोलॉजी टेक्नॉलाजी डेवलप की है। जिसका पेटेंट प्रकाशित हुआ है। जो स्मार्ट कृषि से संबंधित है। इसमें सेंसर, रिमोट सेंसिंग, जीपीएस, जीआईएस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) आदि का उपयोग किया गया है। डॉ। निखिल बताते हैैं कि आईओटी के जरिए हमारी रिसर्च तैयार हुई है। आगे इसके इंप्लीमेंट के लिए इंजीनियर हमारी मदद से इसे आगे पहुंचा सकेंगे।
स्मार्ट खेती का जुटा सकेंगे डाटा
डॉ। निखिल ने बताया कि यह पेटेंट आईओटी इक्विपमेंट्स पर आधारित है, जो तापमान, नमी, आर्द्रता और अन्य प्रकार के जीव संवेदकों पर ध्यान में रखता है। किसान इस सिस्टम का इस्तेमाल करकेखेत पर स्मार्ट खेती को आसानी से लागू कर सकते हैं और स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टैबलेट आदि जैसे विभिन्न गैजेट्स पर तमाम तरह के डाटा जुटा सकते हैं। वहीं डॉ। मोनालिसा बताती हैैं कि यह विकसित तकनीक वातावरणीय रूप से अनाज उत्पादन की दर को बढ़ाने में मदद करेगी और मृदा गुणवत्ता को बनाए रखने में लाभकारी सिद्ध होगी। भूमि की जैव विविधता को बेहतर बनाएगी। यह टेक्नोलाजी प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने, जैव विविधता के हानि को रोकने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अभी तक डॉ। रघुवशी ने सूक्ष्म जीवों के खेती में उपयोग पर 3 एससीआई पेपर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित कर चुके हैैं।