गोरखपुर (अनुराग पांडेय)।पादरी बाजार एरिया के जंगल तिकोनियां नंबर 2 में 50 से अधिक लड़कियां और लड़के अच्छा एथलीट बनने के लिए पसीना बहा रहे हैं। इनके पास सुविधा तो कुछ भी नहीं है, लेकिन जुगाड़ से ये खिलाड़ी प्रैक्टिस के सारे दांव पेंच को पूरा करते हैं।

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ईंट से हाई जंप, डंठल से कराते शॉर्ट जंप

खिलाडिय़ों के जुनून को देखते हुए कोच शिवशंकर यादव ने अपना कॅरियर भी इनके साथ लगा दिया। कोच शिवशंकर वालीवॉल में स्टेट लेवल, इंटर यूनिवर्सिटी और स्टेट लेवल के गेम में रेफरी की भूमिका भी अदा कर चुके हैं। यही नहीं इन खिलाडिय़ों को जंगल में जुगाड़ से नेशनल प्लेयर की तरह ट्रेनिंग भी देते हैं। कोच ईंट सजाकर खिलाडिय़ों को हाई जंप कराते हैं, तो दूसरी तरफ पेड़ पौधे की डंठल से शॉर्ट जंप कराते हैं।

लड़कों से रेस लगाती हैं लड़कियां

संसाधन की कमी है, लेकिन बेटियों का जज्बा बेहद हाई है। यहां प्रैक्टिस करने वाली बेटियों का कहना है कि एक दिन वो देश के लिए मेडल जीतना चाहती हैं। इन बेटियों ने अपना आइडियल भारत की उडऩ परी कही जाने वाली पीटी ऊषा को बनाया है। यही वजह है कि ये बेटियां डेली लड़कों के साथ रेस लगाती हैं।

लड़के वालीवॉल लड़कियां एथलीट

यहां लड़कियां एथलीट बनने की प्रैक्टिस कर रही हैं। जबकि लड़के एथलीट और वालीवॉल खिलाड़ी बनने के लिए दिन-रात पसीना बहा रहे हैं।

मजदूरी भी करती हैं स्टेट खेलने वाली बेटियां

जंगल में प्रैक्टिस करने वाली कुछ लड़कियां स्टेट लेवल के टूर्नामेंट में पार्टिसिपेट भी कर चुकी हैं। ये लड़कियां अपने खेल को जारी रखने के लिए दूसरे के घर और खेत में मजदूरी भी करती हैं। अधिकतर खिलाड़ी के पेरेंट्स किसान या फिर मजदूर हैं। घर से इन्हें कोई सुविधा नहीं मिल पाती है।

सुबह-शाम होती है प्रैक्टिस

कोच शिवशंकर ने बताया कि जंगल तिकोनिया नंबर 2 में सुबह 5 से 7 बजे और शाम को 3 से 5:30 बजे तक सभी खिलाड़ी रेगुलर प्रैक्टिस करते हैं। इधर कुछ खिलाडिय़ों के हाईस्कूल और इंटर के एग्जाम शुरू हुए हैं, वे इसलिए कुछ दिन प्रैक्टिस पर नहीं आ रहे हैं।

गेंहू भीगोकर रखतीं खुद को उर्जावान

नेशनल प्लेयर जिनकी डाइट में चिकन, मछली, दाल, चावल, रोटी, अंडा, सलाद, हरी सब्जियां और मौसमी फल शामिल होते हैं। लेकिन ये खिलाड़ी आर्थिक कमजोरी के कारण ऐसी डाइट नहीं ले सकते हैं। इसके लिए भी इन खिलाडिय़ों ने जुगाड़ की डाइट यानी गेंहू के दाने भीगोकर खाती हैं। जिससे इन्हें उर्जा मिलती है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए करती अवेयर

ये बेटियां केवल खेलना ही नहीं बल्कि प्रर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को अवेयर भी करती हैं। ये बच्चियां जहां शादी, विवाह में जाती है, वहां पर पौधा भेंट कर लोगों को अवेयर करती हैं। इसके साथ ही राष्ट्रीय युवा उत्सव कर्नाटक में भी पार्टिसिपेट कर चुकी हैं।

जैसे-तैसे प्रैक्टिस हो रही है। इन खिलाडिय़ों को थोड़ी सरकार की तरफ से मदद मिलती तो इनका प्रेशर कम होता और तब ये अपना सारा दिमाग खेल पर ही लगाती तो इसका रिजल्ट और अच्छा होगा।

शिवशंकर यादव, कोच

अपनी तरफ से पूरा जोर लगा रहा हूं। बाकी किस्मत पर छोड़ दिया है। ये पता है कि मेहनत कर रहा हूं एक दिन इसका फल जरूर मिलेगा।

सौरभ निषाद, प्लेयर

हमें तो बस खेलना आता है, लेकिन खेल कैसे और इंप्रूव हो ये सर ने बताया है। हमे तो पता भी नहीं था कि जंगल में इतनी अच्छी प्रैक्टिस हम कर पाएंगे।

सचिन साहनी, प्लेयर

उडऩपरी बनना है। यही सपना है मेरा एक दिन देश के लिए मेडल जीतकर लाऊं। मेहनत से हम थोड़ा भी नहीं घबराते हैं। आगे जो होगा देखा जाएगा।

सोनी यादव, प्लेयर

पापा से बोला है मैं खेलने जाती हूं, मुझे मत रोकिए। वो मेरी बात मानते हैं। मैं भी उनको एक दिन सही साबित करके दिखाऊंगी।

नंदनी, प्लेयर

अच्छा खेलती थी, लेकिन ग्राउंड के अभाव में रेगुलर प्रैक्टिस नहीं कर पाती थी। सर ने ऐसा जुगाड़ बनाया कि अब रेगुलर हमारी प्रैक्टिस हो जाती है।

सुनीता, प्लेयर