गोरखपुर : National Sports Day: हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की जयंती पर हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। उनका नाम यूं ही हॉकी का जादूगर नहीं पड़ा, इसके पीछे उनकी कड़ी मेहनत के बाद मिलने वाली सफलता थी, जिसने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया। इसी तरह अपनी सिटी में भी कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो कड़ी मेहनत के दम पर देश का नाम विश्व पटल पर रोशन कर रहे हैं। नए खिलाडिय़ों को उनके संघषों से प्रेरणा लेकर आगे बढऩा चाहिए।

पिता बेचते थे चाय, बेटी एशिया चैंपियन
जिले के माड़ापार की रहने वाली कुश्ती की एशियन कुश्ती चैंपियन पुष्पा ने शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष किया है। जब वह चार साल की थी तभी उनके सिर से मां का साया उठ गया था। माड़ापार बाईपास के पास उनके पिता की चाय की दुकान में हाथ बंटाने के साथ-साथ उन्होंने कुश्ती में कदम रखा। तीन भाई और दो बहनों में चौथे नंबर की पुष्पा के सिर से करीब पांच वर्ष पूर्व पिता का भी साया उठ गया। दुकान अब भाई चलाते हैं।

नहीं मानी हार
विपरीत परिस्थितियों में भी पुष्पा ने कभी हार नहीं मानी और जुनून और लक्ष्य के प्रति गंभीरता ने उन्हें एशिया चैंपियन बनाया है। हाल ही में जॉर्डन की राजधानी अम्मान में आयोजित अंडर-23 एशियाई चैंपियनशिप में 59 किलो भार वर्ग में पुष्पा इंटरनेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल जीतने वाली गोरखपुर की पहली महिला रेसलर बन गई है। वर्तमान में वह उत्तर प्रदेश पुलिस में गाजियाबाद में तैनात हैं।

देश के लिए मेडल जीती आदित्या
प्रेसिडेंट के हाथों अवॉर्ड पाकर बैडमिंटन सनसनी आदित्या यादव सिटी का नाम रोशन किया है। उन्हें यह मुकाम यू ही नहीं मिला है, इसके पीछे आदित्या और उनके पिता की कड़ी मेहनत है। सिटी के कौवाबाग एरिया निवासी आदित्या यादव जन्म से ही सुन व बोल नहीं सकतीं, लेकिन उसने इतनी कम उम्र में देश को गोल्ड मेडल दिलाकर इतिहास रच दिया। ब्राजील में हुए डेफ ओलंपिक में बैडमिंटन खिलाड़ी आदित्या यादव ने देश को गोल्ड दिलाया।

पहली बार गोल्ड
डेफ ओलंपिक में इंडिया ने पहली बार बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता है। वहीं जूनियर वल्र्ड डेफ चैंपियनशिप के सिंगल्स और डबल्स में सिल्वर मेडल हासिल करने वाली आदित्या ने वल्र्ड डेफ टीम बैडमिंटनशिप के मिक्स डबल में अपने जोड़ीदार अभिनव के साथ जापान के खिलाड़ी को हराकर इंडिया को गोल्ड मेडल दिलाने में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा भी आदित्या ने दर्जनों इंटरनेशनल मेडल अपने नाम किए हैं। उनकी इस उपलब्धि के लिए राष्ट्रपति भी उन्हें सम्मानित कर चुकी हैं।

पिता की मर्जी के बिना खेला हैंडबॉल
सिटी की हैंडबॉल खिलाड़ी को शुरू से ही खेलों का शौक था। लेकिन, उन्हें शुरू में पापा का साथ नहीं मिला। क्योंकि वह चाहतते थे कि वह पढ़कर गवर्नमेंट जॉब करें, बावजूद इसके उन्होंने खेलना जारी रखा इसमें उसे मम्मी का सहयोग मिला। कॉन्वेंट स्कूल की स्टूडेंट समृद्धि को खेल के स्कूल से छुट्टी नहीं मिलने पर उन्होंने 10वीं के बाद कॉन्वेंट स्कूल की पढ़ाई छोड़ यूपी बोर्ड के स्कूल में एडमिशन ले लिया, ताकि उन्हें खेल के लिए छुट्टी मिल सके। पिता अबतक चार बार देश के लिए अपनी परफॉर्मेंस दे चुकी हैं। इसमें तीन बार देश के खाते में मेडल भी आए हैं। पिछले दो सालों में 3 इंटरनेशन और 4 नेशनल मेडल जीत चुकी हैं।

कई मेडल जीता
समृद्धि ने 17 एशियन हैंडबॉल चैंपियनशिप चाइना में 23- इंटर क्वांटिनेंटल एशियन फेज 2, एशियन चैंपियनशिप उज्बेकिस्तान में सिल्वर मेडल- इंडियन हैंडबॉल फेडरेशन आईएचएफ ट्रॉफी, बंगलादेश ढाका में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रौशन किया है। वर्तमान में वह इनकमटैक्स डिपार्टमेंट में बतौर टैक्स असिस्टेंट की पोस्ट पर जॉब कर रही हैं।

अंडर 18 में देश में सातवें रैंक की खिलाड़ी हैं शगुन
सिटी की पहली महिला इंटरनेशनल टेनिस खिलाड़ी शगुन कुमारी की अंडर-18 कैटगरी में देश में छठवी रैंक है। शगुन के पिता आनंदजीत लाल ने जब उसे टेनिस खेलते हुए देखा तो उसे आगे बढ़ाने का निर्णय लिया और उसे ट्रेनिंग देने लगे। इसके बाद वह लगातार सफलता अर्जित करने लगी और अंडर-18 में प्रदेश के पहले रैंक की खिलाड़ी बन गई।

होती है आर्थिक समस्या
टेनिस खेल के महंगा होने के कारण आनंद के सामने तमाम तरह के दिक्कतों आने लगी। आनंद ने बताया कि एक मैच पर करीब 20 से 25 हजार रुपये का खर्च आता है और महीने में वह कम से कम दो मैच खेलती है। ऐसे में उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे वह उसे इंटरनेशनल मैच नही खिला पाते हैं, इससे उसकी रैंकिंग में सुधार नहीं हो रहा है। आनंद का सपना है कि वह देश की नंबर एक टेनिस खिलाड़ी बने।