गोरखपुर: पोलियो के खात्मे और कोविड 19 महामारी को फैलने से रोकने में शासन और लोगों की सतर्कता ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस दौरान पब्लिक और सिस्टम के मैनेजमेंट के काफी अच्छे नतीजे देखने को मिले थे, लेकिन बात जब डेंगू की आती है तो आम लोग तक लापरवाह हो जाते हैं, जबकि विभाग डेंगू को कंट्रोल करने के लिए पसीना बहा रहे होता है और इसी का नतीजा होता है कि हर साल डेंगू सिटी में मुसीबत बन कर जाता है, जिससे निपटना विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है।
कारगर उपाय की तलाश
भारत में पोलियों को खत्म करने के लिए पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था। शासन-प्रशासन के माइक्रोमैनेजमेंट और लोगों के सहयोग से दूर-दराज के इलाकों तक वैक्सीन पहुंचाई गई, जिससे देश में पोलियो का आखिरी केस साल 2011 में मिला और 2014 में भारत को पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया गया। साल 2019 में कोविड महामारी के दौरान भी इसी तरह की अवेयरनेस, सतर्कता, तत्परता देखने को मिला और कोविड को मात दी जा सकी। ऐसे में डेंगू को खत्म करने के लिए भी एक कारगर उपाय की जरूरत है, जिसके लिए विभाग और पब्लिक मिलकर इसके हराने के लिए आगे आना होगा।
बीमारी के पीक टाइम पर एक्टिव होता है विभाग
जानकारों की मानें तो स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम केवल डेंगू के पीक टाइम पर ही एक्टिव मोड में नजर आता है। सिटी में डेंगू के मामले बढऩे के दौरान खानापूर्ति के नाम पर एंटी लार्वा और फॉगिंग कराई जाती है। इसके बाद विभाग पटाई मार के बैठ जाता है।
डेंगू से लडऩे का बजट
जानकारी के अनुसार, अभियान से लेकर दवा छिड़काव के लिए केमिकल व अन्य सभी चीजों की सप्लाई शासन स्तर से कराई जाती है। वहीं, विशेष अभियान के लिए एक से लेकर तीन लाख तक का बजट जारी किया जाता है। सफाई, जागरूकता अभियान में बजट भी मानदेय के रूप में मिलता है। नगर निगम को फॉगिंग, छिड़काव और अन्य मदों के तहत 5 लाख से अधिक का बजट मिलता है। वहीं, फॉगिंग मशीन के लिए अतिरिक्त बजट भी जारी होता हा।
फॉगिंग या बेहेशी का इंजेक्शन
एक्सपर्ट की मानें तो मच्छरों से बचाव के लिए नगर निगम फॉगिंग तो करवाता है, लेकिन इसका असर बहुत देर तक नहीं रहता। इसमें मैलाथियान केमिकल होता है। फॉगिंग से मच्छर कुछ देर के लिए तो बेहोश होते हैं पर फॉगिंग का असर खत्म होते ही वह दोबारा एक्टिव हो जाते हैं। समझ ही नहीं आता कि विभाग फॉगिंग कराता है या मच्छरों को बेहेशी का इंजेक्शन दिया जाता है। विभाग के एंटी लार्वा छिड़काव का असर सिर्फ नाम मात्र का होता है।
केमिकल भी बेअसर
एक्सपर्ट के अनुसार, पहले केरोसिन का प्रयोग किया जाता था, जिसका अच्छा असर देखने को मिलता था, इस पर रोक के बाद केमिकल का इस्तेमाल किया जाने लगा। एंटी लार्वा छिड़काव के लिए टेमेफोम और अन्य केमिकल का प्रयोग में लाया गया, लेकिन इसका कुछ खास असर देखने को नहीं मिलता। मच्छर इनके प्रति रेजिस्टेंट होते जा रहे हैं।
विभाग में नहीं है सामंजस्य
वैसे तो डेंगू से लड़ाई में एक दर्जन से ज्यादा विभाग शामिल रहते हैं। पर स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण होती हैैं, जिनमें अक्सर आपसी सामंजस्य की कमी देखने को मिलता है। नतीजन डेंगू के अभियान पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है।
इन इलाकों में डेंगू का प्रकोप
सिटी के लालडिग्गी, टीपीनगर, बेतियाहाता, तारामंडल, मिर्जापुर, अधियारीबांग व अन्य इलाकों में जलभराव और नाले के जाम रहने से डेंगू का प्रकोप हर साल देखने को मिलता है। यहां रहने वाले लोग डेंगू के शिकार हो जाते हैं।
डेंगू के सरकारी आंकड़े
वर्ष मरीज मृत्यु
2027 11 00
2028 25 00
2019 114 01
2020 09 01
2021 69 00
2022 318 00
2023 276 00
2024 94 00
------------------
छोटे जलस्रोतों की सफाई करने से जो लोग चूक गए हैं, वह पानी एक जगह पर एकत्र ना होने दें। इसका पूरा ध्यान रखें। पशुओं के पात्र, कूलर, फ्री ट्रे, टायर, गमले, नाद आदि में अगर एक चम्मच पानी भी ठहर रहा तो उसमें डेंगू वाहक मच्छर पैदा होंगे। यही मच्छर संक्रमित व्यक्ति को काट कर दूसरे को भी संक्रमित कर देंगे। दिन में लोग पूरी आस्तीन के कपड़े अवश्य पहनें और सर्तक रहें।
डॉ। आशुतोष कुमार दुबे, सीएमओ गोरखपुर
मच्छरों के खात्मे के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिन इलाकों में पहले डेंगू के लार्वा पाए गए हैैं, वहां पर टीम भेज कर एंटी लार्वा का छिड़काव करवाया गया है। साथ ही फॉगिंग भी करवाई जाती रही है। वहीं, पब्लिक को जागरूक भी किया जाता है। ऐसे उपाय भी तलाशे जा रहे हैं कि डेंगू को जड़ से खत्म किया जा सके।
अंगद सिंह, जिला मलेरिया अधिकारी