गोरखपुर: अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो। पूनम टंडन ने कहा कि यह आयोजन विश्वविद्यालय के लिए एक गौरवशाली क्षण है। ये साहित्य और पर्यावरणीय चिंताओं के गहरे संबंध पर वैश्विक संवाद का मंच प्रदान कर रहा है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता के साथ साहित्य में नवीनतम शोधों पर भी जानकारी हुई। अंग्रेज़ी विभाग विश्वविद्यालय का रोल मॉडल है।

पर्यावरण संरक्षण पर बल


मुख्य अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो। निशी पांडेय ने महाकाव्यों और धर्मग्रंथों से प्राप्त पर्यावरण संरक्षण की सीख पर विशेष बल दिया। कहा कि साहित्य के माध्यम से न केवल विश्व कल्याण, बल्कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता भी विकसित की जा सकती है। मुख्य वक्ता पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के प्रो। अक्षय कुमार ने कहा कि पर्यावरण का रोष सीमाओं के बंधन नहीं जानता। मानव स्वार्थ और उपभोग की प्रवृत्ति ने इसे गंभीर संकट में डाल दिया है। साहित्य के माध्यम से हम बदलाव की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं। साहित्य और पर्यावरण के बीच के जटिल संबंधों को समझने और समाधान की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित किया।

एशियाई साहित्य से जुड़ाव


संगोष्ठी के संयोजक एवं अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष प्रो अजय शुक्ल ने स्वागत करते हुए पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं पर बात करते हुए दक्षिण एशियाई साहित्य से संगोष्ठी को जोड़ा। अनुप्रिया मिश्रा के स्वागत गीत प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत पौधा देकर किया गया। प्रो। आलोक कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन व डॉ आमोद राय ने संचालन किया।

स्मारिका का विमोचन


इस अवसर पर संगोष्ठी की स्मारिका का विमोचन किया गया। साथ ही 'क्विवरÓ पुस्तक का भी विमोचन किया गया। इसे अंग्रेजी विभाग के प्रो। अजय शुक्ल, प्रो। सुनीता मुर्मू, प्रो। अवनीश राय और डॉ शायका तंजील ने संपादित किया है।

पर्यावरण संरक्षण का संकल्प


प्रतिभागियों ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए हस्ताक्षर अभियान में भाग लिया। गुरुवार को आधा दर्जन तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिनमें पर्यावरण और साहित्य के बीच के अंतरसम्बंधों पर गहन विचार-विमर्श हुआ।