गोरखपुर (ब्यूरो)। प्रश्नकाल के दौरान उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष अपनी बात रखते हुए कहा, गीडा के अधिसूचित गांवों में जहां अभी गीडा द्वारा अधिग्रहण नहीं किया गया है। उन सभी गांवों में ग्रामीण मानचित्र स्वीकृत नहीं किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं किसानों की जमीन को धारा 80 के तहत अकृषक भी घोषित नहीं किया जा रहा है। इससे तमाम विसंगतियां पैदा हो रही हैं।
आम लोगों को परेशानी
गीडा में अधिसूचित गांवों के किसानों को अपनी जमीन पर गीडा की अनुमति के बिना सिर्फ खेती करने का अधिकार है। तीन दशक पूर्व मानचित्र स्वीकृति के लिए बनाया गया नियम यह था कि डीह की आबादी से 50 मीटर के अंदर ही मानचित्र स्वीकृत कर एनओसी जारी की जाएगी। यह नियम प्रासंगिक नहीं है। गीडा के साथ ही संभवत: यही नियम उत्तर प्रदेश के सभी औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में भी है। वर्तमान समय में डीह की आबादी का व्यापक विस्तार हो चुका है। अब प्राधिकरण द्वारा डीह आबादी की सीमा के निर्धारण में ही अत्यधिक समस्या आ रही है, जिसके कारण मानचित्र स्वीकृत नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में इस नियम में बदलाव किया जाना बहुत जरूरी है। पुराने नियम में बदलाव के बाद ही किसानों एवं आम लोगों की तमाम बाधाएं दूर हो सकेंगी। यदि ऐसा नहीं किया गया तो बिना मानचित्र स्वीकृति के ही लोगों के तमाम निर्माण बाद में अवैध घोषित हो जाएंगे।
34 साल पुराने नियम से दिक्कत
विधायक प्रदीप शुक्ला ने कहा, बहुत सारे ऐसे जरूरतमंद लोग हैं, जो बैंक से कर्ज लेकर अपना घर तथा व्यवसाय आदि का कार्य करना चाहते हैं, परंतु गीडा के 34 साल पुराने नियम के कारण लोगों की जमीन अकृषक घोषित नहीं हो पा रही है। न ही गीडा से मानचित्र स्वीकृत हो रहा है। इससे लोग परेशान हैं। उन्होंने मांग की कि गीडा के समस्त अधिसूचित गांवों तथा क्षेत्रों की पुन: जांच करा कर वर्तमान की आवश्यकता के अनुसार मानचित्र स्वीकृति तथा अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने हेतु नई नीति बनायी जाए।