गोरखपुर (ब्यूरो)। शहर पर कब्जा जमाने के लिए पहले बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी और विरेन्द्र शाही के बीच सालों तक खूनी संर्घष चला। फिर 90 के दशक में श्रीप्रकाश शुक्ला ने कई हत्याएं कर शहर को दहलाया। उसकी मौत के बाद बीसवीं सदी के पहले दशक में अजीत शाही और विनोद उपाध्याय ने गोरखपुर की सरजमीं पर खूनी दास्तान लिखी। इस बीच गैंगवार में कई जानें भी गईं। मगर 2024 की शुरुआत के साथ ही गोरखपुर की यह मिट्टी जो लहू से सींची जा रही थी, अब यहां कोई ऐसा बड़ा नाम नहीं बचा जो कानून को चैलेंज कर अपनी निगाह उठाने की हिम्मत कर सके।
शहर पर कब्जा करने पर होता है गैंगवार
जानकारों की मानें तो 80 के दशक से ही गोरखपुर क्राइम सिटी के तौर पर जाना जाता रहा है। यहां के बड़े सरकारी महकमों में मलाईदार विभागों से ठेका पाने के लिए दंबगों के बीच तकरार आम बात हुआ करती थी। खुद को कद्दावर साबित करने के लिए गैंगवार भी हुए, इसमें जिसका पलड़ा भारी रहा, उसने शहर के उन सरकारी महकमों पर राज किया और अकूत सम्पत्ति बनाई। 80 के दशक से 20वीं सदी तक अंतर बस इतना है कि दशक बदला और दंबगों के नाम बदलते गए, लेकिन शहर के दस्तावेजों पर खूनी दास्तान लिखने का सिलसिला जारी रहा। हाल-फिलहाल में शहर में बड़ी घटनाओं को अंजाम देने की कोशिश तो कई मनबढ़ों ने की, लेकिन कानून की सख्ती से शहर पर कब्जा जमाने की सोच उनके अंदर नहीं पनप पाई।
आरएफसी के ठेके से चर्चा में आया विनोद
छात्र राजनीति और नई उम्र के जोशीले युवाओं का साथ मिलते ही सबसे पहले विनोद उपाध्याय ने आरएफसी के टेंडर में सेंधमारी शुरू की। आरएफसी में धान, गेंहू की ढुलाई का टेंडर निकलता था। जिसमें अच्छे सेंटर के लिए बड़ी-बड़ी पार्टियां दांव लगाती थी। अच्छे-अच्छे सेंटर जहां से अधिक पैसे की कमाई होती थी, उसपर दंबगई से विनोद कब्जा करने लगा। आरएफसी से पैसा कमाने के बाद विनोद की धन कमाने की भूख और बढ़ी फिर उसने शहर के सबसे मलाईदार विभाग मानें जाने वाले पीडब्ल्यूडी पर हाथ आजमाना शुरू किया। जहां पर अजीत शाही का सिक्का चलता था। यहीं से दोनों गैंग एक-दूसरे के सामने आए।
पीडब्ल्यूडी कांड से थर्राया था शहर
साल 2007 में पीडब्ल्यूडी के ठेके को लेकर अजीत शाही गुट के लाल बहादुर यादव और विनोद उपाध्याय गैंग के बीच घंटो गोलियां चली। पूरा शहर इस गैंगवार से थर्रा गया। गोलीबारी में विनोद गैंग के दो गुर्गों की भी मौत हो गई। पीडब्ल्यूडी की घटना के बाद एक तरफ अजीत शाही गैंग के लाल बहादुर यादव का नाम खूब चर्चा में आया। इस घटना के नाम पर शहर में खूब वसूली और ठेके को हड़पने का खेल चला। एक तरफ अजीत शाही गैंग ने इसको खूब भुनाया तो दूसरी तरफ विनोद उपाध्याय ने इस घटना के बाद रेलवे में भी अपनी अच्छी धमक बना ली। रेलवे में स्क्रैप का ठेका भी विनोद को मिलने लगा। ये कह सकते हैं कि इस घटना के बाद दोनों ही गैंग कमाने में लग गई।
सात साल बाद फिर गैंगवार में हत्या
पीडब्ल्यूडी की घटना 2007 में हुई थी। इसकी आग अभी बुझी नहीं थी। सात साल बाद साल 2014 में अजीत शाही गैंग का मेन सरगना लाल बहादुर यादव की यूनिवर्सिटी के सामने कार्बाइन से छलनी कर हत्या कर दी गई। जिसमें विनोद उपाध्याय, धनंजय तिवारी, मुकेश शुक्ला, पंकज लोचन मिश्रा, अवनीश पाण्डेय, दीपक सिंह, प्रिंस समेत 11 बदमाशों के नाम सामने आए।
विनोद ने खरीदी थी सेकेंड हैंड टाटा सूमो
जरायम की दुनिया में आने के बाद विनोद उपाध्याय ने सबसे पहली गाड़ी सेकेंड हैंड सूमो के रूप में ली। इसके बाद उसका वक्त बदलता गया फिर उसके साथ ही उसकी गाडिय़ों में लग्जरी का काफिला जुडऩे लगा। पहले क्वालिस, फिर सफारी और अब स्कॉर्पियो के साथ कई लग्जरी गाडिय़ां उसके काफिले का हिस्सा बन चुकी थीं।