गोरखपुर: स्पेशली पेट व मोटापा के रोग से पीडि़त लोगों ने इसे नियमित भोजन में शामिल करना शुरू कर दिया है। इससे बाजार में बाजरा, मक्का व ज्वार जैसे मोटे अनाज की खपत करीब 30 फीसदी तक बढ़ गई है। इनकी कीमतों में भी डेढ़ गुना तक उछाल आ गया है। घाटे की खेती मानने वाले किसानों के लिए अब यह मुनाफे की फसल साबित होने लगी है। मोटे अनाज के व्यंजन लोगों के रोजमर्रा के भोजन के साथ ही होटलों व शादी-ब्याह के मेन्यू में शामिल हो गए हैं। वहीं, बेहतर हेल्थ के लिए गर्वमेंट के लेवल पर भी इसे प्रमोट किया जा रहा है। दो साल पहले 19-20 रुपए किलो मिलने वाला बाजरा-मक्का अब 29 से 30 रुपए किलो तक पहुंच गए। अब बाजरा, मक्का व ज्वार जैसे मोटे अनाज ऑफ सीजन में भी बिक रहे हैं।
इस वजह से बढ़े भाव
सिटी में मोटे अनाज के कारोबारियों की मानें तो दिनो-दिन मोटे अनाज की मांग बढऩे से मक्का-बाजरा की खपत बढ़ रही है। हर साल बढ़ रहे समर्थन मूल्य ने बाजार में इसका रेट बढ़ा दिया है। बाजरे की पैदावार इस बार 42 से 45 लाख टन होने की उमीद थी, लेकिन बारिश के चलते यह आकलन घटकर 30 लाख टन ही रह गया है। मक्का की पैदावार इस बार देरी से होने से भावों में तेजी आई। ज्वार में भी मक्का व बाजरा के साथ तेजी आ जाती है।
बारिश से पैदावार प्रभावित
इस बार बेतरतीब बारिश होने से बाजरे की पैदावार प्रभावित हुई है। बाजरे की फसल खेतों में ही खराब हो रही है। वहीं सितंबर तक बाजार में आने वाली मक्का इस बार अभी तक नहीं आया है। ऐसे में इनके दामों में और तेजी आने की आशंका है।
सरकारी योजनाओं और लोगों के उपयोग करने से मोटे अनाज की खपत बढ़ गई। व्यापारियों के पास स्टॉक में माल नहीं है। मक्का का नया माल अभी आ नहीं रहा है।
- डॉ। प्रभात चतुर्वेदी, कृषि विशेषज्ञ
अनाज की मांग ने इनके दाम बढ़ा दिए हैं। अगर इस बार उत्पादन कम हुआ तो ये भाव और अधिक बढ़ जाएंगे, जबकि आज से 5 साल पहले आधे ही भाव थे।
- मनीष गुप्ता, महेवा मंडी
मोटे अनाज के दाम में आया उछाल
अनाज दो साल पहले का भाव और वर्तमान रेट (भाव प्रति किलो)
बाजरा 19 से 20 रुपए 28 से 29 रुपए
मक्का 19 से 20 रुपए 30 रुपए
ज्वार 20 से 22 रुपए 28 से 29 रुपए
बाजरा व मक्का की खपत 30 फीसदी बढ़ गई है, जबकि बाजरे की पैदावार इस बार 12 से 15 लाख टन कम होने का आंकलन है, ऐसे में बाजरे के भाव बढ़ गए हैं। मक्का की पैदावार अच्छी होने की उमीद है। इनके साथ ज्वार में भी तेजी आ गई है।
- रामआशीष गुप्ता, कृषि विशेषज्ञ