एंबुलेंस तो कालेज के अंदर नहीं जा रही है, लेकिन कार जाने पर कोई रोक नहीं है। कार के माध्यम से प्राइवेट वार्ड वाले रास्ते से रोगियों को अच्छे उपचार का झांसा देकर निजी अस्पताल पहुंचाया जा रहा है। कालेज के अधिकारियों ने ही दो माह पूर्व दो दलालों को कार से रोगी को निजी अस्पताल ले जाते पकड़ा था।

खून और रोगियों की दलाली कर दलाल मालामाल हो रहे थे। मामला सामने आने के बाद दलालों के साथ कालेज के सात कर्मचारी भी जेल भेजे गए। इसके बाद दलालों पर अंकुश लग गया। न दलाल अंदर जा पा रहे और न ही एंबुलेंस। इससे परेशान दलाल, कर्मचारियों की खोल में कालेज में घुस गए। जनवरी में हुई भर्ती में आउटसोर्सिंग कर्मचारी बन गए। सफाईकर्मी, लैब टेक्नीशियन व वार्डब्वाय के रूप में दलाल कालेज में तैनात हो गए हैं। चोरी-छिपे रोगियों को बाहर भेजने का धंधा फिर शुरू हो गया है। इतना ही नहीं, मेडिकल कालेज से मिलने वाली निश्शुल्क सुविधाओं का भी ये कर्मचारी चोरी-छिपे शुल्क वसूल रहे हैं। हीमोफीलिया रोगियों को निश्शुल्क लगने वाले फैक्टर (दवा) का दो सौ और कार्ड बनवाने का चार सौ रुपये ले रहे हैं। तीन रोगियों की शिकायत पर यह मामला सामने आया तो प्रबंधन के होश उड़ गए। इसके अलावा एचआइवी रोगियों को बाहर जांच कराने के लिए ये दलाल मजबूर कर रहे हैं, ताकि निजी पैथोलाजी से उन्हें कमीशन मिलता रहे। जबकि एचआइवी रोगियों की सभी जांचें मेडिकल कालेज में निश्शुल्क होती हैं।

ऐसे कर्मचारियों को चिह्नित किया जा रहा है जो दलाली में शामिल हैं और मेडिकल कालेज में मिलने वाली निश्शुल्क सुविधाओं से रोगियों को वंचित कर रहे हैं। इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।


-डा। रामकुमार जायसवाल, प्राचार्य, बीआरडी मेडिकल कालेज