Gorakhpur Crime News: वेबसाइट पर सर्च कर आर्डर करने के चंद घंटे बाद ही प्रोडक्ट कहां तक पहुंचा, ट्रेकिंग लिंक से इसकी तलाश शुरू कर देते हैं। यहीं वे फंसते हैं साइबर क्रिमिनल्स के जाल में और लिंक पर क्लिक करते ही एकाउंट साफ हो जाता है। दरअसल, जिस लिंक पर क्लिक करके वे पार्सल ट्रैक कर रहे होते हैं, असल में वह हैकर्स का बिछाया हुआ जाल रहता है। इस फेक लिंक को फिशिंग लिंक कहते हैं, जो ठगी का नया वर्जन है। सिटी में कई लोगों को साइबर क्रिमिनल्स ने इसका यूज कर ठगा है।

वेबसाइट्स भी फर्जी


ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले लोग अक्सर अलग-अलग वेबसाइट्स पर विजिट करते हैं। वे अपनी निजी जानकारियां वहां शेयर करते हैं। हैकर्स और साइबर ठग यहीं से उनकी डिटेल इकठ्ठा कर ठगी की शुरुआत करते हैं। वहीं, कई बार साइबर क्रिमिनल किसी ब्रांडेड वेबसाइट की हूबहू कॉपी बनाकर उसे साइबर वल्र्ड में उतार देते हैं और लोगों को फंसाने का प्लेटफार्म लांच करते हैं। इसी तरह हैकर्स असली लिंक की तरह की-वर्ड्स, नाम का इस्तेमाल करते हुए फिशिंग लिंक भी बनाते हैं और लोगों को ठगते हैं।

एक्सपर्ट ने बताया


सिटी के साइबर थाने में तैनात साइबर एक्सपर्ट उपेंद्र सिंह ने बताया कि साइबर क्रिमनल लोगों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखते हैं। कस्टमर के ऑनलाइन ऑर्डर करते ही साइबर ठग उन्हें फेक लिंक भेज देते हैं। ठगी के शिकार लोगों का कहना है कि कई बार तो उन्हें ये मैसेज भी मिले हैं कि आपका प्रोडक्ट वेयर हाउस में है, पता अपडेट कराएं। वहीं कुछ संदेशों में कस्टमर्स को अन्य जानकारी अपडेट करने के लिए 12 घंटे का समय दिया जाता है। ग्राहक इन्हें कंपनी के मैसेज समझ क्लिक कर देते हैं और हैकर्स के चंगुल में फंस जाते हैं। वहीं, ठगी में माहिर हैकर्स चंद मिनटों में ही पूरा एकाउंट खाली कर देते हैं।

घटिया प्रोडक्ट डिलीवर


साइबर ठग केवल एकाउंट ही नहीं साफ करते बल्कि फर्जी वेबसाइट डिजाइन कर यहां असली वेबसाइट के जैसे प्राडक्ट की इमेज भी अपलोड करते हैं। इसके लिए प्राइस भी बिल्कुल ओरिजनल साइट की तरह ही रखी जाती है। जब कस्टमर इन साइट्स पर जाकर कोई प्राडक्ट आर्डर कर देता है तो वे असली प्रोडक्ट की जगह घटिया क्वालिटी का प्रोडक्ट डिलेवर करते हैं। कई बार तो ये प्रोडक्ट डिलेवर भी नहीं करते और लोगों के साथ ठगी करतेे हैं। इन साइट्स पर दिए गए हेल्पलाइन नंबर पर कोई संपर्क करने पर कोई रिस्पांस नहीं मिलता और प्रोडक्ट वापसी की कोई भी स्कीम लागू नहीं होती।

झांसा देकर ठगी


केवल वेबसाइट ही नहीं सोशल मीडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम और फेसबुक पर भी एक्टिव साइबर क्रिमिनल्स लोगों को फॉलोवर बढ़ाने का झांसा देकर फंसाते हैं और उन्हें ठगी का शिकार बनाते हैं। साइबर एक्सपर्ट के मुताबिक सिटी में कई ऐसे केसेज देखने को मिले हैं जिनमें फॉलोवर बढ़ाने का झांसा देकर ठगी की गई है।

केस 1


सिटी के बरगदवा के रहने वाले एक एमआर ने एक हफ्ते पहले अपने क्रेडिट कार्ड की लिमिट बढ़वाने के लिए एक लिंक पर क्लिक किए। चंद मिनटों में ही एमआर के खाते से करीब ढाई लाख रुपये निकल गए। एमआर ने जिस साइट पर क्लिक किया था वह बिल्कुल ओरिजनल साइट की तरह ही दिखती थी।

केस 2


रेलवे कॉलोनी में रहने वाले कर्मचारी ने करीब एक साल पहले ऑनलाइन साइट से कुछ सामान आर्डर किया। आर्डर प्लेस होने के कुछ घंटों बाद ही उन्हें ट्रैकिंग लिंग मैसेज के माध्यम से मिली। इसके बाद रेल कर्मचारी ने उस लिंक का यूज कर ट्रैकिंग शुरू कर दी। कुछ मिनटों बाद ही उन्हें एक मैसेज आया जिसमें लिखा कि आपके खाते से 99 हजार रुपये निकाले गए हैं। हैरान-परेशान रेलकर्मी जब पुलिस के पास पहुंचे तब पता चला कि वे फिशिंग लिंक से ठगी के शिकार हुए हैं।

साइबर ठग का जाल


साइबर क्रिमिनल्स की ओर से सबसे पहले ऑनलाइन ऑर्डर देने वालों का डेटा इकठ्ठा किया जाता है। ऑर्डर मिलने के बाद कंपनी कस्टमर को प्रोडक्ट ट्रैक करने के लिए लिंक भेजती है। इससे पहले ही हैकर्स ब्रांडेड कंपनी का फिशिंग लिंक तैयार कर कस्टमर को भेज देते हैं। कस्टमर कंपनी का लिंक समझकर उसपे क्लिक कर देता है और ठगी का शिकार बन जाता है।

ऐसे करें बचाव
- बचाव के लिए सबसे जरूरी है साइबर क्राइम के बारे में अवेयरनेस, लोग जागरूक रहेंगे तो वे इन क्रिमिनल्स के जाल में फंसने से बच सकेंगे।
- किसी भी लिंक पर क्लिक करने से पहले अच्छी तरह पड़ताल कर लें, इसके बाद ही आगे बढ़ें।
- ऑर्डर करने के कितने घंटे बाद आपके पास लिंक पहुंचा, यह ध्यान रखना जरूरी है।
- लिंक पर क्लिक करने से पहले यूआरएल, डोमेन नेम कंपनी के असली लिंक से मैच हो रहे हैं या नहीं।

सिटी में कई ऐसे केस सामने आए हैं जिसमें साइबर क्रिमिनल्स ने फिशिंग लिंक का यूज कर ठगी का शिकार बनाया है। ठगों का शिकार बनने के लिए सबसे जरूरी है जागरूकता। लोगों को किसी भी लिंक पर क्लिक करने से पहले अच्छे से उसकी पड़ताल कर लेनी चाहिए। किसी तरह का कंफ्यूजन होने की स्थिति में लिंक पर निजी जानकारी नहीं शेयर करनी चाहिए।
उपेंद्र सिंह, साइबर एक्सपर्ट