गोरखपुर (ब्यूरो)। वहीं उनके कान को बहरा भी बना रहे है। वहीं इस तरह के केसेज आने पर गवर्नमेंट की तरफ से भी सभी कमिश्नर और डीएम को पत्र जारी कर इस पर अंकुश लगाने के निर्देश जारी किए गए है। तो वहीं बीआरडी मेडिकल कालेज के ईएनटी डिपार्टमेंट ने भी ईयर बड्स और ईयर फोन के ज्यादा इस्तेमाल पर गहरी चिंता जाहिर की है। दरअसल, मार्डन लाइफ स्टाइल अपना रहे ज्यादातर यूथ और टीनेजर्स ईयर फोन का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। वह गाना खूब सुन रहे है और ऑनलाइन गेम भी खेल रहे हैं। इसके चलते कान में फंगस इंफेक्शन का खतरा जन्म ले रहा है। इस प्रॉब्लम से पीडि़त ज्यादातर यूथ और टीनेजर्स इसका शिकार हो रहे हैं। इस बीमारी के शिकार होने पर कान में सीटी बजने की आवाज सुनाई देती है। अगर इस पर समय से ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चलकर पीडि़त की सुनने की क्षमता कमजोर होने लगती है।
20-25 वर्ष के युवा ज्यादा हो रहे शिकार
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग की ओपीडी में आने वाले पेशेंट की संख्या औसतन 15 से 20 है। जिनकी सुनने की क्षमता कम हो गई है। ईयर फोन रेग्युलर लगाने से होने वाले पसीने से फंग्स इंफेक्शन के अधिकतर मामले 20 से 25 वर्ष से कम उम्र वाले यूथ्स की संख्या ज्यादा है। ईएनटी एक्सपर्ट की माने तो इसका सबसे बड़ा कारण लगातार ईयर फोन का इस्तेमाल करना, ज्यादा पसीना आने से इयर फोन में फफूदी से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। जिससे सुनने की क्षमता कम हो जाती है। इतना ही नहीं वाहनों के हॉर्न की तेज आवाज दिन भर सुनना, मोबाइल और लैपटॉप का इस्तेमाल या हेडफोन लगातार घंटों इस्तेमाल करने से भी कान से सुनने की क्षमता कम हो रही है।
सुनने की शक्ति हो जाती है कमजोर
जिला अस्पताल के ईएनटी एक्सपर्ट डॉ। देव कुमार की माने तो लगातार ईयर फोन लगाने और तेज आवाज से कान की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती है। इस कारण पीडि़त को अचानक बैठे-बैठे कानों में तेज सीटी बजने का अहसास होता है। इस मर्ज के लक्षणें में कानों में घनघनाहट या फुफकार जैसी आवाज आना भी शामिल है। अक्सर थोड़ी देर बाद यह प्रॉब्लम ठीक भी हो जाती है। कभी-कभी कानों में इस तरह की आवाज सुनाई देना आम है। अगर ऐसा बार-बार हो रहा है तो स्थिति खतरनाक हो सकती है। इंफेक्शन की स्थिति गंभीर होने पर लोगों की सुनने की शक्ति कमजोर हो जाती है। उन्हें काम करने या सोने तक में परेशानी होने लगती है। जिस तरह आज के दौर में ईयर फोन का इस्तेमाल बढ़ रहा है और सड़कों पर वाहनों का शोर बढ़ रहा है। तेज आवाज में संगीत सुना जाता है या टीवी देखते वक्त ध्वनि तेज रखी जाती है, उससे बीमारी का खतरा बढ़ता जा रहा है।
ईयर फोन व ईयर बड्स से नुकसान
-ईयरफोन पर तेज आवाज में संगीत सुनने से कान के पर्दो को नुकसान पहुंचाता है और सुसने की क्षमता भी कम हो जाती है। ईयरफोन इस्तेमाल कर रहे है तो गैजेट का वॉल्यूम 40 परसेंट तक ही रखें।
-यदि ईयरफोन लगाकर घंटों काम करना पड़ता है, तो हर घंटे के बाद 5-10 मिनट के लिए इनको निकालकर कानों को आराम दें।
-आजकल ईयरफोन कान में अंदर तक जाते हैँ, जो कि सही तरह से साफ न होने पर संक्रमण का खतरा बढा सकते है। इसलिए इस्तेमाल करने से पहले ईयरफोन को सैनिटाइजर से साफ करना न भूलें।
ऑनलाइन मीटिंग्स में हेडफोन का इस्तेमाल करें। इससे कानों को आराम भी मिलेगा और संक्रमण की आशंका भी नहीं होगी।
-यदि नौकरी ऐसी है कि ऑफिस के बाद भी फोन पर बात करना जरूरी रहता है तो ईयरफोन या मोबाइल फोन को कान पर लगाकर बात करने की अपेक्षा मोबाइल को स्पीकर पर रखकर बात करें।
- हमेशा अच्छी कंपनी का ईयरफोन ही इस्तेमाल करें। इसके साथ ही सुनिश्चित करें कि ईयरफोन का आकार ऐसा हो कि उन्हें लगाने से कानों में दर्द न हों।
-यात्रा के दौरान लोग शोर से बचने के लिए ईयरफोन पर तेज आवाज मे गाने सुनने लगते हैैं। इससे वो बाहरी शोर से तो बच जाते है, लेकिन ईयरफोन के जरिए करीब के शोर से उन्हें अधिक नुकसान होता है।
इयर फोन लगातार इस्तेमाल करने से पसीने के जरिए फफूदी या फंग्स इंफेक्शन का खतरा बढ़ रहा है। संक्रमण की वजह से युवा की सुनने की क्षमता भी कम हो रही है। मोबाइल पर इयरफोन लगाकर पूरी आवज में गाना सुनने से कानों में 100 डेसीवल की आवाज पहुंचाती है, बाइक से लेकर ट्रक की आवाज 70 से 90 डेसीवल तक होती है। रोज सात से आठ घंटे तक 70 डेसीवल की आवाज के संपर्क में रहने से कानों के सुनने की क्षमता कम होने लगती है। 40 डेसीवल से ज्यादा आवाजन कान की सुनने की खमता पर सीधा असर डालती है।
डॉ। आदित्य पाठक, ईएनटी विभाग बीआरडी
आज की युवा पीढ़ी ज्यादातर ईयर बड्र्स और ईयर फोन का इस्तेमाल कर रही है। इससे सुनने की क्षमता कम हो रही है। ऐसे में आरटीओ, ट्रैफिक विभाग और हेल्थ डिपार्टमेंट की ज्वाइंटली टीम बनाकर एजेंडा तैयार किया जाएगा। शासन के दिशा निर्देश पर जागरुकता के साथ कार्रवाई के अभियान भी चलाए जाएंगे।
कृष्णा करुणेश, डीएम