- इन पोखरों से हर साल नगर निगम को होती थी लाखों रुपए की आय

- एक साल से शहर में नहीं हुई 11 पोखरों की नीलामी

GORAKHPUR: पोखरों के संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट से लेकर सरकार तक गंभीर है लेकिन लगता है कि गोरखपुर नगर निगम को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। पिछले एक साल में शहर के 11 पोखरों की नीलामी ही निगम द्वारा नहीं की गई है। इसी से पता चल रहा है कि पोखरों को लेकर निगम प्रशासन कितना उदासीन है। नीलामी नहीं होने से न तो पोखरों का रख-रखाव सही हो रहा है और न ही उनसे आय हो रही है। साथ ही अवैध कब्जा करने वालों की नजर भी पोखरों पर लगी हुई है।

नीलामी से हैं फायदे

इन पोखरों की नीलामी हो जाती तो नगर निगम को आय होती। निगम चाहता तो उसी आय से पोखरों का संरक्षण-संव‌र्द्धन संभव है। एक पोखरे की नीलामी सालाना आठ से 10 हजार रुपए में होती है। इस तरह निगम को 80 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक मिलते। इस पैसे से नगर निगम कम से कम एक कोटेशन की फाइल तैयार कर छोटी नाली या दो से तीन क्रास नाला या 80 फीट लंबी दो गली में चार इंच का पाइप लाइन विस्तार का काम करा सकता था। नगर निगम एक पोखरा पांच साल के लिए नीलामी करता है। इसमें प्रत्येक साल पांच प्रतिशत की वृद्धि से नीलामीकर्ता को रिन्अुअल शुल्क के रूप में जमा करना होता है।

शहर में हैं कुल 300 पोखरे

गोरखपुर विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो। शिवशंकर वर्मा का कहना है कि आजादी के समय शहर में 300 से अधिक पोखरे थे। कभी राप्तीनदी से लेकर रामगढ़ताल तक पोखरों की एक श्रृंखला हुआ करती थी। नगर निगम के रिकार्ड में भी यह पोखरे हैं। नगर निगम के राजस्व विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो नगर निगम सीमा के अंदर केवल 36 पोखरे बचे हैं। निगम की उदासीनता यह है कि इनको बचाने के लिए उसकी तरफ से कुछ किया ही नहीं जा रहा है।

पोखरों को बचाने के लिए नगर निगम योजना बना रहा है। पिछले एक साल में दो पोखरों के अवैध कब्जा करने वालों पर एफआईआर दर्ज हुआ है। कुछ तकनीकी प्रॉब्लम के कारण नीलामी नहीं हो रही है। समस्या दूर कर नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।

- बीएन सिंह, नगर आयुक्त