- चौरीचौरा के आंदोलन का गवाह है यह शहर

- क्रांतिकारियों को यहीं दी गई फांसी, तो वहीं कुएं में जिंदा दफ्ना दिए गए थे फ्रीडम फाइटर

- करीब आधा दर्जन से ज्यादा क्रांतिकारियों की जन्मस्थली है यह भूमि

GORAKHPUR: देश में स्वतंत्रता आंदोलन की जब बयार उठी, तो हजारों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई। इस जमीन को अपने खून से सींचकर आजाद कराने में काफी जद्दोजहद भी की। उनकी कोशिशें रंग लाई और आज मेरी आगोश में रहने वाले आजाद हवा में सांस ले रहे हैं।

चौरीचौरा कांड इतिहास में अमर

मेरी सरजमीं पर रहने वाले आजादी के परवानों की दास्तान किसी से छिपी नहीं है। चौरीचौरा में क्रांतिकारियों ने पुलिस चौकी को ही आग लगा दी और अंग्रेजी हुकूमत के 22 सिपाही जिंदा जल गए, इस घटना को हम चौरीचौरा कांड के नाम से जानते हैं। यह स्वतंत्रता आंदोलन की एक ऐसी घटना थी, जिसके बाद महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ चलाया जा रहा असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। चौरीचौरा कांड के अभियुक्तों का मुकदमा पं। मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और उन्हें बचाने में अहम भूमिका अदा की।

बिसमिल को यहीं दी गई फांसी

देश की आजादी के लिए सरकारी खजाना लूट खुद को मजबूत करने के लिए हुए काकोरी कांड में अहम भूमिका निभाने वाले बिसमिल को यहीं फांसी दी गई। मेरी आगोश में ही उस महान क्रांतिकारी ने 19 दिसंबर 1927 को सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर अपनी आखिरी सांस ली। इस दौरान अंग्रेजों ने जेल का मेन गेट बंद रखा था, जिसके बाद वहां पहुंचे करीब डेढ़ लाख लोगों ने जेल की दीवार तोड़कर बिस्मिल शव उनके परिवार को सौंपा। इसके बाद यह लोग जुलूस की शक्ल में शहर में घूमते हुए राप्ती नदी के किनारे राजघाट पहुंचे और वहां उनका अंतिम संस्कार किया।

1857 की क्रांति में अहम रोल

मेरी सरहदों में रहने वाले लोगों ने इस देश को आजाद कराने के लिए बहुत कुर्बानी दी है। 1857 की क्रांति की अलख मंगल पांडेय ने मेरठ में जगाई थी। मगर इस क्रांति की लौ को शहर से लेकर दिल्ली तक जगाने वालों में शामिल था शहर का एक जाबांज सरफराज अली। उन्होंने अंग्रेजों को इस कदर परेशान कर रखा था कि वह उसे हर हाल में मौत की सजा देना चाहते थे। जब उनकी तमाम कोशिशें फेल हो गई, तो उन्होंने उनके मोहल्ले के रहने वाले लोगों पर खूब कहर ढाया। उनका नाम लेने वालों को फांसी पर लटका दिया। फांसी घर कम पड़ गए, तो उन्होंने एक पेड़ पर ही लोगों को लटकाकर मार डाला। वहीं एक कब्र खोदकर उसी कब्र में दर्जनों लोगों को दफ्ना दिया। अब यह जगह गंजे शहीद के नाम से जानी जाती है।

यह हैं शहर के जांबाज

सचींद्र सान्याल, दाउदपुर

बंधु सिंह, अलीनगर

पं। गौरीशंकर, बेतियाहाता

सरदार अली खां, कोतवाली

सुभानअल्लाह, जाफरा बाजार

दिलदार हुसैन, नसीराबाद

अब्दुल समद, नसीराबाद

राजा शाह इनायत अली, धुरियापार

जामिन अली

रघुपति सहाय, फिराक गोरखपुरी

गेंदा सिंह

मेजर उदय सिंह

श्याम बदन सिंह

चंद्रिका लाल श्रीवास्तव

इन अहम लोगों ने गंवाई जान

पं। राम प्रसाद बिस्मिल

सचींद्र सान्याल

सरदार अली खां

बंधु सिंह

यहां जली क्रांति की लौ

चौरीचौरा

डोहरिया कला, सहजनवां

गोला

पैना

डोमरियागंज

वर्जन

गोरखपुर की सरजमीं पर आजादी के परवानों की लंबी फेहरिस्त मौजूद हैं। इसमें कई नाम लोगों की जुबां पर हैं, लेकिन कई खो गए हैं। महात्मा गांधी से लेकर पंडित नेहरू तक यहां आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंकने के लिए पहुंचे थे। वहीं पं। राम प्रसाद बिस्मिल के अलावा कई बड़े क्रांतिकारियों ने यहीं पर अपनी जान गवाई थी। चौरीचौरा कांड सभी की जुबां पर हैं, जहां क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दिया था। इसके साथ ही शहर के कई क्रांतिकारियों को यही फांसी दी गई और एक ही कब्र में कई क्रांतिकारियों को दफन कर दिया गया।

- सुभाष अकेला, सामाजिक कार्यकर्ता