- शहर के प्राथमिक विद्यालयों में अभावों के बीच संवर रहा बच्चों का भविष्य
- बैठने के लिए बेंच छोडि़ए, पढ़ाने के लिए टीचर्स तक नहीं हैं
- सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद आई नेक्स्ट के रियलिटी चेक में खुली पोल
GORAKHPUR:
'हमें भी मॉडर्न स्कूल के बच्चों की तरह बनना है। हमें भी बेंच पर बैठकर पढ़ने का मन करता है। आखिरकार हम सब कब तक जर्जर कमरों में जमीन पर बैठकर पढ़ाई करेंगे?' यह दर्दभरे सवाल हैं उन मासूमों के जो शहर के प्राइमरी स्कूलों में अपना भविष्य संवारने जाते हैं। हालात यह हैं कि जितनी क्लास हैं, उतनी टीचर भी नहीं हैं। यूपी में सरकारी स्कूलों की बदहाली पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद मंगलवार को आई नेक्स्ट ने सिटी में रियलिटी चेक किया। रियलिटी चेक में सरकारी स्कूलों की लाचारी साफ नजर आई।
1-
स्कूल- प्राथमिक विद्यालय, बनकटी चक
समय- दोपहर 1.20 बजे
आई नेक्स्ट टीम बनकटी चक के प्राथमिक विद्यालय पहुंची। बच्चे दोपहर का भोजन कर क्लास में बैठने जा रहे थे। एक तरफ टीचर उर्मिला राय 74 बच्चों को अकेले संभालने में जुटी हुई थीं। वहीं टीचर मंजू गुप्ता बेसिक शिक्षा विभाग से बच्चों की अधूरी किताबें लेने गई थीं। बच्चों ने कहा कि बैठने के लिए तो बेंच चाहिए ही। साथ ही टीचर्स भी इतनी हों कि पढ़ाई पूरी हो सके।
2-
स्कूल- प्राथमिक विद्यालय, शास्त्रीनगर
समय- 1.50 बजे
बेतियाहाता स्थित प्राथमिक विद्यालय में नजारा हैरान करने वाला था। एक छोटे बरामदे में बच्चे चटाई पर पढ़ रहे थे। कहीं से नहीं लग रहा था कि एक से कक्षा पांचवीं तक का प्राथमिक विद्यालय हो। यहां मौजूद टीचर दीपिका शुक्ला ने बताया कि कुल 41 बच्चे हैं। कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को इसी बरामदे में पढ़ाया जाता है। नए भवन बनाए जा रहे हैं, लेकिन अभी पूरा नहीं हुआ है। यहां सबसे ज्यादा प्रॉब्लम टॉयलेट की है।
3-
स्कूल- प्राथमिक विद्यालय, दाउदपुर
समय- 2.10 बजे दोपहर
आई नेक्स्ट टीम दाउदपुर स्थित प्राथमिक विद्यालय पहुंची। टीचर गरिमा शाही एक साथ कक्षा एक से कक्षा पांचवीं तक के बच्चों को जमीन पर पढ़ा रही थीं। पूछने पर उन्होंने बताया कि महज दो कमरे हैं। इन्हीं दो कमरे में बच्चों को हम अकेले पढ़ाते हैं। एक और मैडम हैं, उनके ऊपर विभागीय कामों की जिम्मेदारी पड़ जाती है। यहां न तो टॉयलेट है और ना ही रसोई घर। किसी तरह से हम सभी को मैनेज करना पड़ता है। बच्चे आज भी चटाई पर बैठते हैं। कई बार उच्च अधिकारियों से अवगत भी कराया गया है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता।
स्कूल- प्राथमिक विद्यालय, रेलवे कॉलोनी
समय- 2.25 बजे दोपहर
मैडम बच्चों को पढ़ाने में पूरी तरह से मशगूल थीं। पूछने पर उन्होंने बताया कि शिक्षा के स्तर में सुधार की बेहद जरूरत है। इसके लिए जब तक मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलेगी। तब यह समस्या बनी रहेगी। बच्चों को चटाई पर आज भी पढ़ना पड़ता है। कम से कम उन्हें बेंच की सुविधाएं तो मिलनी ही चाहिए।
यह समस्याएं आई सामने
- न पंखा है न लाइट।
- पीने के लिए शुद्ध जल नहीं।
- स्टूडेंट्स और टीचर्स के लिए टॉयलेट नहीं है
- बेंच पर बैठकर पढ़ने की व्यवस्था नहीं है
- जर्जर व किराए के भवन में बैठकर पढ़ने-पढ़ाने को मजबूर।
-पर्याप्त संख्या में टीचर्स भी नहीं
यह सुविधाएं मिलती हैं
- सुबह का नाश्ता (दूध व फल)
- दोपहर का भोजन (मेनू के हिसाब से)
- किताबें (आधी-अधूरी)
- ड्रेस (दो सेट)
- भोजन के लिए बर्तन
बेसिक शिक्षा विभाग के विद्यालय
बेसिक शिक्षा अनुदानित विद्यालय - 84
परिषदीय प्राइमरी विद्यालय - 2151
परिषदीय जूनियर विद्यालय - 834
राजकीय बेसिक विद्यालय - 04
माध्यमिक स्कूल से संबद्ध जूनियर विद्यालय - 117
माध्यमिक स्कूल से संबद्ध प्राइमरी विद्यालय - 22
राजकीय विद्यालय - 05
मदरसा - 08
टोटल - 3244
प्राइमरी स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या - 2,66,542
जूनियर स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या - 1,23,053
कोट्स
शिक्षा के स्तर में सुधार की जरूरत है। विद्यालयों में बिजली, पानी, टॉयलेट, बेंच आदि की बेहद आवश्यकता है। इसके लिए सरकार को निश्चित तौर पर ध्यान देने की जरूरत है।
-दीपिका शुक्ला, शिक्षिका
दुख की बात यह है कि आज भी बच्चे चटाई पर बैठकर पढ़ाई करते हैं। ज्यादातर विद्यालयों में आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं है। जिम्मेदार लोगों को संज्ञान लेने की जरूरत है।
-गरिमा शाही, शिक्षिका
बच्चों का कोट्स
हमारा भी मन करता है कि हम बेंच पर पढ़ाई करें। मैडम जी अकेले पढ़ाती हैं, लेकिन हमारे स्कूल में टायलेट तक नहीं है और ना ही पढ़ने के लिए कमरे।
अमित, कक्षा-3
सर हम बरामदे में पढ़ते हैं। क्लास में पढ़ाई के दौरान टायलेट आने पर घर जाते हैं। ऐसे में हम लोगों की पढ़ाई डिस्टर्ब होती है।
अंशु, कक्षा-5
वर्जन
विद्यालयों मेंमूलभूत सुविधाएं होनी चाहिए। इसके लिए पूरा प्रयास किया जा रहा है। शासन को इस दिशा में पत्र भी लिखा जाता है। जो भी शासन स्तर पर निर्देश प्राप्त होता है, उसके अनुकूल हम कार्य करते हैं
-ओम प्रकाश यादव, बीएसए, बेसिक शिक्षा विभाग, गोरखपुर