- हैकर्स ने लिपिकों को रिवाइज बिल स्वीकृत करने का दे दिया अधिकार
- एचसीएल कंपनी की लापरवाही से हैकर्स ने तैयार किया क्लोन, बड़े घोटाले की आशंका
- नियमानुसार केवल एक्सईएन और एसडीओ के पास है बिल रिवाइज करने का अधिकार
GORAKHPUR: गोरखपुर बिजली विभाग में घोटाले की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। अभी ज्यादा बिजली बिल के घोटाले का मामला शांत भी नहीं हुआ कि अब नया खेल बिल रिवाइज करने का आ गया है। दरअसल बिजली विभाग की वेबसाइट को हैकर्स ने हैक कर लिपिकों को रिवाइज बिल स्वीकृत करने का अधिकार दे दिया है। इससे विभाग में एक बार फिर बड़े खेल की संभावना जताई जा रही है। वैसे समय रहते अफसरों की सक्रियता ने एक बहुत बड़े गोलमाल से विभाग को बचा लिया है। अगर हैकर्स का मंसूबा कामयाब हो जाता तो बिजली विभाग को बिल रिवाइज में लाखों रुपए का नुकसान होता।
हुई साइट में छेड़छाड़
दो जुलाई को सिस्टम अपडेट के दिन ये सारी गड़बड़ हुई। एचसीएल कंपनी की लापरवाही से हैकर्स ने महानगर विद्युत वितरण निगम के सभी लिपिकों के आईडी का क्लोन तैयार कर लिया। अब क्लोन तैयार करने के बाद उपभोक्ताओं का बिल रिवाइज कर पैसा अपनी जेब में रख लेते। लेकिन इस मामले को विभाग के लिपिक उदय प्रकाश ने तब पकड़ लिया जब उन्होंने 15 जुलाई को एक बिल सही करने के बाद डाटा इंट्री की। जैसे ही डाटा इंट्री करने लगे वैसे ही उनके कंप्यूटर पर स्वीकृत करने का ऑप्शन आ गया। इससे वे चौंक गए और इसकी जानकारी एक्सईएन को दी। इसके बाद यह मामला एमडी के पास पहुंचा। इसकी जांच के लिए एमडी ने दो सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर दी है।
अधिकारियों ने साधी चुप्पी
हैकर्स ने इस बार आईडी का खेल डाटा अपडेट के दिन किया है। बिजली विभाग में प्रत्येक माह के पहले कार्य दिवस के दिन डाटा इंट्री और सिस्टम अपडेट होता है। इस बार एक जुलाई को अलविदा की नमाज होने के कारण छुट्टी थी, जिसके कारण दो जुलाई को ऑफिस खुला। इस दिन पब्लिक के लिए काउंटर बंद रहे, लेकिन डाटा इंट्री और सिस्टम अपडेट का कार्य हुआ। इसी बीच हैकर्स ने सभी लिपिकों को रिवाइज बिल सही करने का अधिकार देकर क्लोन तैयार कर दिया। वहीं, क्लोन तैयार होने की बात पर अधिकारी चुप हैं, लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि ऐसा हुआ है।
एसडीओ और एक्सईएन को अधिकार
कोई भी कंज्यूमर बिल में गड़बड़ी सही कराने के लिए एसडीओ या एक्सईएन के पास अप्लीकेशन देता है। अप्लीकेशन की रीडिंग वेरिफाई करने के बाद एक्सईएन और एसडीओ किसी लिपिक को बिल सही करने के लिए देते हैं। इसके बाद लिपिक बिल की हिस्ट्री अपने कंप्यूटर में देखते हैं और उसकी कॉपी निकालते हैं। बिल को हार्ड कापी में सही करते हैं। इसके बाद बिल को एसडीओ राजस्व स्वीकृत करते हैं फिर वह एक्सईएन या एसडीओ के पास जाता है और वह अपने आईडी से रिवाइज बिल की स्वीकृति देते हैं। फिर कंज्यूमर का सही बिल ऑनलाइन हो जाता है।
रिवाइज बिल पर रोक
गोरखपुर जोन के चीफ इंजीनियर डीके सिंह का कहना है कि इस तरह का मामला सामने आने के बाद सभी अधिकारियों को सतर्क कर दिया गया है। दो जुलाई के बाद जिस भी बिल का सुधार हुआ है, उसे रोक दिया गया है। यह सभी बिल अब जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद रिवाइज कर और जमा होंगे। उन्होंने बताया कि इस बीच जिन भी कंज्यूमर्स का बिल रिवाइज हुआ है, उनके बिल में घालमेल की आशंका नजर आई तो उनसे पूछताछ की जाएगी।
2014 में भी हुआ था खेल
छह अक्टूबर को बकरीद की छूट्टी थी। उसी दिन शहर के तीन एक्सईएन की फर्जी आईडी तैयार की गई और सात अक्टूबर को इस आईडी की स्वीकृति भी मिल गई। इसके बाद आठ अक्टूबर को पांच कंज्यूमर्स का 1.15 लाख रुपए का बिल कम कर दिया गया था। यह मामला नौ अक्टूबर को तब खुला जब शास्त्री चौक स्थित एक्सईएन का कंप्यूटर खोलते हुए एचसीएल का पूर्व कर्मचारी संदीप गुप्ता पकड़ा गया। हैकर्स ने इन तीन फर्जी आईडी से डिविजन सेकेंड में दो और डिविजन थर्ड में तीन बिल सही किए थे।
आंकड़ों पर नजर
-शहर में एक लाख 60 हजार हैं बिजली उपभोक्ता
-करीब 60 हजार उपभोक्ता हर महीने जमा करते हैं बिल
-करीब 25 हजार उपभोक्ता के बिजली बिल में हर महीने होती है गड़बड़ी