- सेंट एंड्रयूज स्थित क्राइस्ट चर्च और कौआबाग स्थित सेंट एंड्रयूज चर्च अब भी उसी स्ट्रक्चर में
-बाकी कई चर्च में हो चुका है वर्क, शहर का सबसे बड़ा सेंट जोन्स चर्च पूरा हो चुका है चेंज
GORAKHPUR: आजादी के पहले के कई किस्से सुनाए और बताए जाते रहे हैं। शहर में भी आजादी और उससे पहले की कई यादें हैं, जिनके बारे में लोगों को कुछ खास मालूम नहीं है। रविवार को देशभर में क्रिसमस सेलिब्रेट किया जाएगा। शहर में भी इसके लिए तमाम चर्च ऐसे हैं, जहां काफी पहले से तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। आज हम ऐसे चर्च के बारे में बता रहे हैं, जो शहर में 18वीं सदी की गाथा सुना रहे हैं। इसमें से कुछ तो जस के तस बने हुए हैं, जबकि कुछ की शक्लो-सूरत पूरी तरह से चेंज हो चुकी है।
सुनिए चार चर्च की कहानी
क्राइस्ट चर्च, सिविल लाइंस
सेंट एंड्रयूज कॉलेज कैंपस में बने क्राइस्ट चर्च के पादरी डीआर लाल ने बताया कि यह एकलौता ऐसा चर्च है, जिसका अपीयरेंस असल मायने में चर्च जैसा है। इसके गुंबद से लेकर सभी चीजें उसी शेप और साइज में बनाई गई हैं, जैसा कि इसे होना चाहिए। वहीं खास बात यह है कि 1829 में इसका निर्माण किया गया। इसके बाद इसमें रिपेयरिंग का वर्क तो हुआ है, लेकिन स्ट्रक्चर आज भी वैसा ही है, जैसा कि बनते वक्त था। इसके शेप और साइज में अब तक कोई चेंज नहीं किया गया। वहीं, पहले यह एरिया कैंट के तौर पर जाना जाता था। अंग्रेजों का राज था, तो 1947 तक इसमें सिर्फ अंग्रेजों के एडनिस्ट्रेटिव ऑफिसर्स और सिविल सर्वेट ही जाते थे, लेकिन आजादी के बाद से इसमें इंडियन क्रिश्चेन की भी एंट्री होने लगी।
सेंट एंड्रयूज चर्च, कौवाबाग
सिटी के कौवाबाग रेलवे कॉलोनी में सन 1898 में बंगाल और नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे (बीएनडब्लू रेलवे) कंपनी की ओर से सेंट एंड्रयूज चर्च बनवाया गया। यह श्रद्धा का केंद्र तो हैं ही साथ ही इसकी बिल्डिंग बेहतर आर्किटेक्चर का एक नायाब नमूना है। रेलवे के अधिकारियों के लिए खास बने इस चर्च में रेलवे कॉलोनी और आसपास के अधिकारी ही जाया करते थे। धीरे-धीरे आबादी बढ़ी तो लोग वहां भी जाने लगे। शहर में यह इकलौता ऐसा चर्च हैं, जहां आज भी इंग्लिश में प्रेयर होती है। 15 साल पहले तक यहां सिर्फ इंग्लिश में ही प्रेयर हुआ करती थी, लेकिन बाद में यहां हिंदी में भी प्रेयर होने लगी। शहर के बाकी चर्च में हिंदी में ही प्रेयर होती है।
सेंट जोन्स चर्च, बशारतपुर
बशारतपुर में बना सेंट जोंस चर्च 1831 में लॉर्ट बेनटिंग जो उस समय इंडिया का गवर्नर जनरल था, उसने 200 बीघा जमीन रेव्ह। विलकिनसन को दे दी। इस जमीन पर मसीही समुदाय के लोग खेती करने लगे। धीरे-धीरे आबादी बढ़ती गई और अब यह पूरा इलाका बशारतपुर के नाम से जाना जाता है। 1835 में ईसाई समुदाय ने यहां सेंट जोंस चर्च का निर्माण कराया। मगर 1857 में हुई क्रांति में यह पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। इसके बाद इसका दोबारा से निर्माण हुआ, अब यह पूरी तरह से चेंज हो चुका है। शहर में सबसे बड़ा चर्च होने के साथ ही इसमें सबसे ज्यादा 10 हजार से ज्यादा मेंबर्स भी हैं।
वर्जन
सेंट जोन्स चर्च मेंबर्स और स्ट्रक्चर के हिसाब से शहर का सबसे बड़ा चर्च है। वहीं, क्राइस्ट चर्च में पहले सिर्फ अंग्रेजों की ही एंट्री थी, लेकिन 1947 के बाद शहरवासियों को भी इसमें जगह मिलने लगी। वहीं कौवाबाग स्थित सेंट एंड्रयूज चर्च रेलवे अधिकारियों के लिए बनाया गया था। इसमें आज भी इंग्लिश में प्रेयर होती है।
- डीआर लाल, पादरी, क्राइस्ट चर्च