- रोजाना 4 क्विंटल खोवा और बर्फी बेच देते हैं चाचा
- बरगदवां चौराहे पर है बुढ़ऊ चाचा राकेश कुमार चौधरी की दुकान
GORAKHPUR: बात जब शहर के मशहूर व्यंजनों की हो रही है, तो मुंह मीठा करना तो बनता है। मेरी सरजमी पर यूं तो बहुत से ऐसे ठिकाने हैं, जहां लोग जाकर अपना मुंह मीठा करने का सामान लेते हैं, मगर इनमें सबसे खास है बदगवां स्थित बुढ़ऊ चाचा की दुकान। यहां मुंह मीठा करने के लिए मिलने वाली बर्फी का नाम शहर के आसपास रहने वाले लोगों के साथ दूर-दराज से आने वालों की जुबान पर भी है। मेरी सरजमीं पर आने वाला हर शख्स बिना यहां की बर्फी लिए वापस नहीं लौटता। सिटी की रिनाउंड पर्सनालिटीज हो या फिर आलाधिकारी, इस रूट से अगर उनका गुजर होता है, तो बिना यहां स्टॉप लिए वह आगे नहीं बढ़ते।
1968 से चल रही है दुकान
शहरवासियों का मुंह मीठा कराने वाले बुढ़ऊ चाचा की यह दुकान अर्से पुरानी है। आजादी के बाद 1968 बुढ़ऊ चाचा यानि राकेश कुमार चौधरी के ससुर तिलक चौधरी ने दुकान शुरू की। शुरुआती दौर में थोड़े दूध से खोवा निकाल वह बर्फी और मिठाइयां बनाने लगे। उनके साथ राकेश भी इस काम में लग गए। धीरे-धीरे लोगों को उनकी बर्फियां भाने लगीं और शहर के अलावा आसपास से भी लोग उनकी बर्फी खरीदने के लिए पहुंचने लगे। उम्र अधिक होने की वजह से लोग उन्हें बुढ़ऊ चाचा-बुढ़ऊ चाचा कहकर बुलाते और धीरे-धीरे उनकी दुकान इसी नाम से मशहूर हो गई।
रोजाना 3 क्विंटल की मिठाई
बरगदवां चौराहे पर लोगों की पसंद बन चुकी बुढ़ऊ चाचा की दुकान में लोगों की भीड़ लगी रहती है। खोवा और खोवे से बनी बर्फी इस दुकान की खासियत है। रोजाना तीन क्विंटल दूध से खोवा बनाया जाता है और इसे बेचा जाता है। 400 रुपए प्रति किलो मिलने वाली इस मिठाई के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और मिठाइयां लेकर जाते हैं। इसके लिए बुढ़ऊ चाचा ने 3 हेल्पर्स भी रखे हैं, जो खोवा बनाने के साथ ही मिठाइयां बनाने में भी उनकी मदद करते हैं।
मैं 1968 से दुकान चला रहा हूं। पहले मेरे ससुर तिलक चौधरी यहां पर दुकान चलाते थे, 12 साल पहले उनका देहांत हो गया। इसके बाद से मैं ही इसे संभाल रहा हूं। रोजाना 3 क्विंटल दूध का खोवा और बर्फी बिकती है। शहर और आसपास के साथ ही दूर-दराज से भी लोग यहां मिठाई लेने के लिए आते हैं। इधर से गुजरने वाले हर अधिकारी और नेता भी यहां की बर्फी खाए बगैर आगे नहीं बढ़ते हैं।
- राकेश कुमार चौधरी, उर्फ बुढ़ऊ चाचा