- मोहर्रम की तीसरी से दसवीं तक इमामबाड़ा में खोल दिए जाते हैं सातों दरवाजे
GORAKHPUR : मोहर्रम की शुरुआत के साथ ही जगह-जगह जुलूस निकाले की तैयारियां शुरू हो चुकी है। बरसों की रवायत के मुताबिक मियां साहब के इमामबाड़ा इस्टेट में भी हर साल लगने वाले मेले की तैयारियां भी पूरे शबाब पर हैं। देश के सभी इमामबाड़ों से खास गोरखपुर का इमामबाड़ा कई खूबियां खुद में समेटे हुए है। यह एक वाहिद ऐसा इमामबाड़ा है जिसके अंदर सोने और चांदी की ताजिया मौजूद है। खास बात यह कि साल भर यह लोगों की नजरों से दूर सात दरवाजों व सात तालों में बंद रखी जाती है। मोहर्रम के दिनों में यह सातों दरवाजे खोल दिए जाते हैं, जिससे लोग सोने और चांदी की ताजिया की जियारत कर सकें। साल में महज एक हफ्ते का मौका मिलने की वजह से यहां जायरीनों का हुजूम उमड़ा रहता है।
मोहर्रम के दिनों में इमामबाड़ा की शान ही कुछ और होती है। तीन से दस मोहर्रम की दोपहर तक लोग यहां ताजिए की जियारत करने आते है। कई दरवाजों से गुजरने के बाद मोहर्रम के दिनों में उस हिस्से तक पहुंचा जा सकता है, जहां एक बड़े कमरे में सोने-चांदी की ताजिया रखी हुई हैं। भीड़ से बचने के लिए कुछ लोग ताजियों को बाहर लगी जालियों से देखते हैं, तो कुछ एक-एक करके अंदर जाते हैं। मोहर्रम का चंाद दिखने के बाद इमामबाड़ा इस्टेट के उत्तराधिकारी सोने-चांदी ताजिया वाले कमरे में चाबी लेकर पहुंचते है, दो रकात नमाज अदा करने के बाद कमरे का दरवाजा खोला जाता है। शहर के किसी सर्राफ को इसकी साफ-सफाई की जिम्मेदारी दी जाती है।
साढ़े पांच किलो सोने की ताजिया
इमामबाड़ा इस्टेट से जुड़े जिम्मेदारों की मानें तो बरसों से रखी सोने की ताजिया एक-दो नहीं बल्कि पांच किलो से ज्यादा सोने से बनाई गई है। इसे अवध के नवाब ने दिया था। बुजुर्ग की करामत सुनकर नवाब की बेगम ने इमामबाड़े में चांदी की ताजिया स्थापित कराया, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक है। ताजियों के अलावा रौशन अली शाह के आस्ताने का दरवाजा भी खुल जाता है, जहां फातिहा पढ़ने के लिए लोगों को हुजूम उमड़ पड़ता है। इसके साथ ही सोने चांदी के अलम और झंडे भी लोगों को दिखाए जाने के लिए खोल दिए जाते हैं।
इमाम हसन व हुसैन जन्नती जवानों के सरदार
मस्जिद गौजी रौजा में जिक्रे शोहदाए करबला जारी है। इस सीरीज में शनिवार को हुई मजलिस में मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के मुफ्ती मौलान अख्तर हुसैन ने लोगों को इसके बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इमाम हसन और इमाम हुसैन के बारे में हदीस में आया है कि हजरत अबू सईद खुदरी से रवायत है कि पैगम्बर साहब ने कहा कि हसन और हुसैन जन्नती जवानों के सरदार हैं। हजरत उसामा बिन जैद फरमाते हैं कि एक रात मैं किसी काम से पैगम्बर साहब की खिदमत में हाजिर हुआ। तो नबी इस तरह बाहर लाये कि आप किसी चीज को उठाए हुए थे, जिसे मैं न जान सका। जब मैं अर्जे हाजत से फारिग हुआ तो उनसे पूछा कि हुजूर यह क्या उठाए हुए है। उन्होंने अपनी चादर उठाई तो देखा कि उनके दोनों पहलुओं में हजरत इमाम हसन और हुसैन है। आपने बताया कि यह दोनों मेरे बेटे और मेरे नवासे है। ऐ अल्लाह! मैं उन दोनों से मुहब्बत करता हूं तू भी उनसे मुहब्बत कर, और जो इनसे मुहब्बत करे उससे भी मुहब्बत कर।
'मेरे दो फूल हैं यह दोनों'
मस्जिद के पेश इमाम हाफिज रेयाज अहमद ने कहा कि हजरत इब्ने उमर से रिवायत है कि रसूले करीम ने फरमाया कि हसन और हुसैन यह दोनों दुनिया में मेरे दो फूल हैं। एक हदीस में आया है कि एक मर्तबा आप खुत्बा दे रहे थे कि अचानक इमाम हसन व इमाम हुसैन तशरीफ लाए। उन्होंने सुर्ख रंग की कमीज पहन रखी थी। वह चलते चलते गिर पड़ते थे, उनको गिरते देखा तो नबीए करीम ने खुत्बा छोड़ दिया और मिम्बर से नीचे उतरे और उन दोनों को गोद में उठा लिया और खुद से कहने लगे कि तुम्हारी औलाद और तुम्हारे माल आजमाइश है। मैनें इन दोनों बच्चों को गिरते देखा तो सब्र न कर सका। एक मशहूर हदीस है रसूलल्लाह ने फरमाया कि इमाम हसन और हुसैन के बारे में कहा कि जिसने उन दोनों से मुहब्बत की तो उसने मुझसे मुहब्बत की और जिसने उन दोनों से दुश्मनी की उसने मुझसे दुश्मनी की। मजलिस के आखिर में शरीफ मस्जिद के हाफिज रहमत अली ने नात पेश की। इस मौके पर दबीर सिद्दकी, औरंगजेब, शहबाज, अशरफ, फैज, सेराज, ताबिश सिद्दीक, जकी सिद्दीकी, मुजीब सहित तमाम अकीदतमंद मौजूद रहे।