- राप्तीनगर विस्तार में जमीन का दिखाया था सपना

- किसानों ने किया था विरोध, योजना नहीं चढ़ी परवान

द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र : गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने गोरखपुराइट्स को चार साल पहले खुद के घर का सपना दिखाया। प्लॉट के लिए स्कीम निकाली और लोगों से आवेदन मांगे। अपना घर पाने की चाह में लोगों ने तुरंत किसी तरह पैसे जुटाए और प्लॉट एलॉट कराया। किसी ने घर के जेवर बेच दिया, कोई गांव की पुश्तैनी जमीन बेच आया तो किसी ने बैंक से कर्ज लेकर जीडीए की स्कीम में डिपॉजिट किया। लाख जतन करने के बाद स्कीम कोर्ट केस में उलझ गई। जीडीए तो मालामाल हो गया, लेकिन आवंटी ब्याज चुकाते-चुकाते परेशान हैं।

कर्ज लेकर लिया प्लॉट

जीडीए ने 2009-10 में राप्तीनगर विस्तार आवासीय योजना के तहत 892 भूखंड निकाले। अपना घर होने का सपना संजोए 261 लोगों ने तत्काल अमाउंट जमा कर दिया। अधिकांश ने कर्ज लेकर या बैंक से लोन लेकर प्लॉट एलॉट कराया था, लेकिन चार साल गुजर गए, उनके हाथ कुछ नहीं लगा। एक अदद आशियाने का सपना अभी तक अधूरा है।

भूमि अधिग्रहण में फंसा पेंच

दरअसल जीडीए ये इस स्कीम के लिए मानबेला में भूमि अधिग्रहण शुरू किया था। अधिग्रहण शुरू होते ही मानबेला के किसानों ने विरोध शुरू कर दिया। किसानों का आरोप था कि जीडीए उनसे कौडि़यों के भाव में जमीन अधिग्रहीत कर रहा है और आवंटियों को लाखों रुपए में बेचने की तैयारी में है। विरोध के बाद मानबेला के किसान कोर्ट?चले गए। कोर्ट में जाने के बाद योजना अधर में लटक गई।

स्कीम नेम- राप्तीनगर विस्तार आवासीय योजना वर्ष 2009-10

स्कीम एरिया- करीब 57 एकड़

प्लॉट- 892 प्लॉट

अमाउंट डिपाजिट बाई- 261 इंडिविजुअल

डिपाजिट अमाउंट - 6 लाख से 12 लाख रुपए

चार साल पहले 128 वर्ग मीटर भूखंड के लिए करीब 10.50 लाख जमा किए थे। जीडीए के जिम्मेदार प्लॉट के बारे में कोई ठोस जवाब नहीं दे रहे हैं। कर्ज व बैंक से लोन ली गई राशि के ब्याज ने नया दर्द दे दिया है।

सुभाष श्रीवास्तव, पीडि़त

मैं बांसगांव का रहने वाला हूं और जीडीए की इस योजना में प्लॉट लेने के लिए बैंक से साढे दस लाख रुपए लोन लिया। उस समय जीडीए ने भरोसा दिलाया कि जल्द ही प्लॉट मिल जाएगा। अब बैंक को हर साल 60 हजार रुपए ब्याज देना पड़ रहा है।

संजय कुमार सिंह, पीडि़त

हमने राप्तीनगर विस्तार योजना में नौ लाख रुपए से अधिक जमा किये। चार साल से अधिक समय हो गया, लेकिन अभी तक कोई प्लॉट नहीं मिला। हजारों रुपए बतौर ब्याज हर साल देना पड़ रहा है क्योंकि यह पूरा पैसा बैंक से लोन पर लिया था।

मान्धाता सिंह, पीडि़त

अधिग्रहण संबंधी कुछ दिक्कतों व मुकदमों के चलते योजना में देरी हुई है। योजना में जिन लोगों ने पैसा दिया है और उनको प्लॉट नहीं मिली है, उनका दर्द हमें पता है। शासन से इस मामले में मार्गदर्शन के लिए पत्र लिखा गया है। कोशिश है जल्द ही सभी अड़चनें दूर हो जाएंगी।

शिव श्याम मिश्रा, उपाध्यक्ष, जीडीए