- शासन को नहीं मिली कोई कंपनी, टेंडर की वजह से फिर से अधर में लटकी सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट स्कीम
- पिछले दो साल से टेंडर निकालने के लिए शासन कर रही है तैयारी
GORAKHPUR: शहर की साफ-सफाई व्यवस्था एक बार फिर भगवान भरोसे है। कूड़े को ठिकाने लगाने के लिए बनाई गई सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट स्कीम पर एक बार फिर से ग्रहण लगता नजर आ रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि शासन की ओर से इसके लिए कराए गए टेंडर में किसी भी फर्म ने इंटरेस्ट नहीं दिखाया। ऐसा नहीं की यह पहली बार हो रहा है, बल्कि दो साल से शासन की लाख कोशिशों के बाद भी कोई कंपनी इंटरेस्ट नहीं दिखा रही है, जिससे गोरखपुर को चमचमाता देखने की तमन्ना रखने वालों के लिए बनाई गई स्कीम लगातार लटकती जा रही है। वहीं गोरखपुराइट्स को कूड़े के ढेर के बीच अपनी जिंदगी बितानी पड़ रही है।
शुरू होते ही लग गया था ग्रहण
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट का शुरुआत से ही विवादों का साथ रहा है। शहर में 2009 में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट स्कीम की शुरुआत हुई, लेकिन शुरुआत में ही जगह को लेकर विवाद शुरू हो गया था। नगर निगम ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए महेसरा में चिलुआताल के किनारे जमीन खरीदी। बाद में शासन ने टेंडर कराकर हैदराबाद की एपीआर कंपनी को कूड़ा निस्तारण की जिम्मेदारी सौंप दी। 2012 में कंपनी ने यह कहते हुए काम करने से मना दिया कि यह गड्ढे है। लेकिन लोगों ने यह कहकर विरोध शुरू कर दिया कि बारिश के दिनों में आने वाला पानी कूड़े के साथ नदी को भी प्रदूषित करेगा। छह माह इंतजार करने के बाद जल निगम की कार्यदायी संस्था सी एंड डीएस ने चिलुआताल थाना क्षेत्र में कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। उसके बाद शासन ने कंपनी को ब्लैक लिस्टेड कर दिया। नए सिरे से सालिड वेस्ट मैनेजमेंट को चालू करने की योजना शुरू की। इसके बाद कई कंपनियां आई, लेकिन बात नहीं बनने से वह वापस लौट जाती थी।
कूड़ों के ढेर के बीच कट रही जिंदगी
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट स्कीम स्टार्ट न होने से गोरखपुराइट्स की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। घर, होटल और रेस्टोरेंट से निकलने वाला कूड़ा दिनभर सड़कों पर पड़ा रहता है। वहीं खराब मौसम और तेज हवाओं के बीच यह इधर-उधर बिखर जाता है। हालत यह कि कूड़ा डिस्पोज करने की कोई जगह न होने और कोई दूसरा डिस्पोजल ऑप्शन न होने से कूड़ा सड़कों पर ही पड़ा सड़ता रहता है। इससे न सिर्फ लोगों को कूड़े के ढेरों के बीच होकर गुजरना पड़ता है, बल्कि उन्हें वहां से गुजरने में भी काफी परेशानी होती है। कई बार तो सिटी के बाहर बांध या खाली जमीन पर कूड़ा गिराने जाते हैं तो पब्लिक उनको दौड़ा कर भगा देती है। पिछले छह माह से कई जगह नगर निगम के कर्मचारियों को गांव वाले खदेड़ चुके हैं।
डेली 598 मीट्रिक टन निकलता है कूड़ा
नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी की मानें तो सिटी में डेली 598 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। इसमें 450 मीट्रिक टन कूड़ा नगर निगम के सफाई कर्मचारियों उठा ले जाते हैं, जबकि 150 मीट्रिक टन के लगभग कूड़ा रोड और मोहल्लों में बिखरा पड़ा रहता है। शहर से उठने वाले कूड़े को नगर निगम शहर के किनारे बांध, खाली जमीन पर गिराता है। वहीं कई मोहल्लों के खाली प्लॉट भी कूड़ेदान बन गए हैं। नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि शहर में जब तक कूड़ा निस्तारण के लिए जगह मिल जाएगी, तो लोगों को उसके बाद ही राहत मिलेगी।
शासन टेंडर तो निकाल रहा है, लेकिन इसमें किसी भी कंपनी ने टेंडर नहीं डाला। कुछ दिन पहले भी शासन ने टेंडर निकाला था, लेकिन उसमें भी कोई कंपनी टेंडर डालने नहीं पहुंची।
राजेश कुमार त्यागी, नगर आयुक्त