Old modus operandi of Bawariyan gang
बावरिया गैंग पिछले पांच दशकों से अस्तित्व में है। इस गैंग की कहानी किसी फिल्मी प्लाट से कम नहींहै। इस गैंग की खासियत यह है कि यह संगठित रूप से अपराध करता है। गैंग के सभी मेम्बर अद्र्धनग्न रूप में वारदात को अंजाम देते थे। उनके हाथों में हथियार के नाम पर केवल लाठी ही होती थी, जिन्हें स्पेशली तैयार किया जाता है। सबसे अजीब बात यह है कि जिस मकान में वारदात को अंजाम देते थे वहां पर वे शौच जरूर करते थे। अंधविश्वासी इतने कि अगर घटना को अंजाम देने निकलते थे और कुत्ते के रोने की आवाज सुन लेते थे तो वारदात को पोस्टपोन कर देते थे। सबसे बड़ी बात यह है कि वारदात वाले घर में वे खून जरूर बहाते है। खून को काफी शुभ मानते है।
New modus operandi
समय बदलने के साथ ही बावरिया गैंग की मॉडल अपरेंडी भी बदल गई है। हालांकि गैंग अब भी संगठित रूप से वारदात को अंजाम देता है। गैंग के मेम्बर जींस टीशर्ट में दिखते हैं। अब पिस्टल और बम भी रखते हैं, लेकिन पुराने हथियारों को भूले नहींहैं। लेकिन खून बहाना आज भी उनकी फितरत में शामिल है। लग्जरी गाडिय़ों के साथ वे लोडर का यूज करते हैं, ताकि लूट का सामान लेकर भाग सकें। कुत्ते के रोने का अंधविश्वास जरूर टूट गया है।
चांद की करते है पूजा
बावरिया गैंग चांद की पूजा करते हैं। वे रात के अंधेरे में वारदात को अंजाम देते है। शायद यही वजह है कि वे चांद की पूजा करते हैं। बावरिया गैंग की कार्यशैली के साथ-साथ जीवन शैली भी बदल गई है। अब वह रोड किनारे टेंट लगाकर नहीं रहते, बल्कि किराए पर प्लैट और मकान में रहते है।
सिलसिलेवार करते है वारदात
बावरिया गैंग की मॉडस अपरेंडी है कि जिस एरिया में वारदात करते है, उसके आस-पास इलाके में पांच दिन के भीतर दोबारा अटैक करते है। ज्यादातर वारदात हाईवे और बाहरी एरिया में करते है। वारदात अंजाम कर वे पैदल भगाते है और रोड पर खड़ी गाडिय़ों में बैठकर कुछ ही घंटे में शहर की सीमा के बाहर निकल जाते है। वारदात को दौरान मर्डर हो जाता है तो फिर गैंग उस एरिया को छोड़ देते है।
वेश बदलकर करते है रैकी
बावरिया गैंग घटना से पहले कई बार रैकी करते है और फिर वारदात को अंजाम देते है। आपके आस-पास अचानक अगर कोई फेरी वाला, गुब्बारे वाले, या फिर कोई अंजान और संदिग्ध व्यक्ति नजर आए तो होशियार हो जाए। बावरिया अक्सर सुनसान एरिया में रोड किनारे टेंट और कैंप लगाकर रहते हैं। वारदात को अंजाम देकर लूट का सामान कैंप में रहने वाली महिलाओं को देकर दिन में गायब हो जाते है।
केस वन
बावरिया गैंग के खूनी किस्से में सबसे दर्दनाक घटना कई साल पुरानी है। 2002 में छोटी दीपावली की रात गोरखनाथ के वृंदावन कालोनी में बावरिया गैंग ने पवन दुआ के मकान में हमला किया था। गैंग ने परिवार के चार सदस्यों की नृशंस हत्या के बाद लाखों रुपए की लूट-पाट की थी। घटना ने गोरखपुर पुलिस को हिला दिया था। पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया था, लेकिन आज तक केस का वर्कआउट नहींहो सका है।
केस दो
चिलुआताल में दो साल पहले बावरिया गैंग ने संजीव श्रीवास्तव के घर धावा बोला था। गैंग ने लाठी और डंडे से संजीव की इस कदर पिटाई की थी कि लंबे समय तक उन्हें एक आंख खराब रही। बावरिया गैंग की दस्तक ने पूरे एरिया को हिला दिया था। गैंग ने इसके बाद देवरिया में एक प्रिंसिपल के घर हमलाकर लूट-पाट के बाद उनकी हत्या कर दी थी।
ठंड के मौसम में क्रिमिनल्स एक्टिविटी बढ़ जाती है। खास तौर पर बावरिया, करवट, घुमंतू बंजारे और नट आउट स्कर्ट एरिया में वारदात करते है। थानेदारों को निर्देश दिए गए है कि ऐसे क्रिमिनल्स से निपटने के लिए गश्त और पेट्रोलिंग और तेज करें। अफसरों को बताया गया है कि इसके लिए एक्शन प्लान भी तैयार करें।
एम.डी कर्णधार, डीआईजी
report by : mayank.srivastava@inext.co.in