- मिल गई वो जगह जहां सिद्धार्थ बने थे बुद्ध

- बांसगांव में मिले बौद्ध कालीन अवशेष

- पुरातत्व विभाग की प्रारंभिक खोदाई में मूर्तियों, सिक्कों के साथ मिले प्राचीन सभ्यता के अवशेष

- तालाडीह गांव में 12 बीघा एरिया में मौजूद टीले के नीचे काफी कुछ होने का अनुमान

- खोदाई कर रही टीम ने शासन को भेजा रिपोर्ट, खेती बंद कराने का भी दिया सुझाव

GORAKHPUR: गोरखपुर के बांसगांव ब्लॉक स्थित तालाडीह गांव के नीलकंठ मंदिर परिसर के पास पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की खोदाई में बौद्ध कालीन अवशेष मिले हैं। शनिवार को करीब तीन घंटे तक चली खोदाई में दो हजार वर्ष पूर्व से लेकर 14वीं शताब्दी तक के प्राचीन सिक्के, ईट व अन्य कई वस्तुएं मिलीं हैं। ये देख पुरातत्व विभाग की टीम काफी उत्साहित है। खोदाई में मिले चीजों की विस्तृत रिपोर्ट शासन को भेजी गई है। टीम का अनुमान है कि गहन खोदाई में यहां बौद्ध कालीन तथा इससे भी प्राचीन अन्य बहुत सी चीजें मिलने की पूरी संभावना है।

टीले के नीचे हैं अवशेष

टीम की अगुवाई कर रहे रहे राज्य पुरातत्व अधिकारी नरसिंह त्यागी ने बताया कि प्रारंभिक खोदाई में इस क्षेत्र में 12 बीघे तक फैला एक टीला नजर आया है, जिसकी मौजूदा ऊंचाई सात मीटर है। पहले इसकी ऊंचाई 19 से 21 मीटर रही होगी। इसका करीब 10 से 12 मीटर क्षरण हो चुका है। उन्होंने बताया कि टीले के नीचे तीन कालखंडों की संस्कृति के अवशेष मौजूद हैं। टीले को काटकर किसान खेती कर रहे हैं, जिससे लगातार इसकी ऊंचाई कम हो रही है। यहां दबी ऐतिहासिक धरोहरे भी बर्बाद हो रही हैं। प्रशासन को तत्काल यहां खेती बंद कराकर इसको सुरक्षित करना चाहिए।

पहले भी मिले हैं अवशेष

यह पहला मौका नहीं है जब बांसगांव के प्राचीन सभ्यता संबंधी अवशेष मिले हैं। नीलकंठ मंदिर के पुजारी मकुना बाबा को कुछ महीने पहले भगवान बुद्ध की ताबें की छोटी मूर्ति और पांच-छह से सिक्के मिले थे। उन्होंने खोदाई के लिए पहुंची टीम को ये मूर्तियां और सिक्के भी दिखाए। इतना ही नहीं कुछ साल पहले खेत की जुताई के दौरान भी प्राचीन सिक्के मिले थे जो स्थानीय किसान के पास हैं।

यहीं सिद्धार्थ बने थे गौतम बुद्ध

लखनऊ से आई पुरातत्व विभाग की टीम में बताया कि प्राचीन काल में यहां कौशल राज्य की सीमा थी। यहीं आमी नदी में स्नान करने के बाद सिद्धार्थ ने अपने केश और राजसी वस्त्रों का त्याग किया था। इसके बाद ही वह बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए निकल पड़े थे। देखा जाए तो बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए ये एक महत्वपूर्ण जगह है। अब तक इसकी सही लोकेशन ज्ञान नहीं थी मगर प्राचीन भग्नावेशष मिलने से स्थिति स्पष्ट हो रही है। इस स्थान को ठीक से उत्खनन के बाद अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक स्थल के रूप में संरक्षित किया जा सकता है। कुशीनगर, लुम्बिनी और सारनाथ से नजदीकी से इसका महत्व और बढ़ जाता है।

सुझाव पर पहुंची थी टीम

इस स्थान पर खोदाई में काफी कुछ मिलने की संभावना गोरखपुर यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कॉलर्स की टीम ने जताई थी। प्राचीन इतिहास विभाग के रिसर्च स्कॉलर शिवेंद्र तथा अन्य लोगों की टीम ने सबसे पहले इस स्थान का मुआयना किया था। उनकी रिपोर्ट के बाद शहर जाने-माने पुरातत्वविद पीके लाहिड़ी ने भी स्थान को देखा। उन्होंने ही इंटेक के माध्यम से पुरातत्व विभाग को खोदाई के लिए पत्र लिखा। जिला प्रशासन से अनुमति मिलने पर शनिवार को टीम ने यहां काम शुरू किया। इस अवसर पर बांसगांव नगर पंचायत की अध्यक्ष रीतू सिंह के पति डॉ। शिवेन्द्र सिंह, ग्राम प्रधान सरोज राय के पति डॉ। चन्द्रभान राय, सुभाश राय, मनोज राय, राहुल राय, धर्मेन्द्र राय, संतोष राय, सुनील कुमार राय आदि ग्रामीण उपस्थित रहे।

खोदाई में मिली ये चीजें

तांबे के सिक्के

मूर्तियां

मृदभांड

धान की भूसी

यहां खेती होने से ऐतिहासिक धरोहरों पर खतरा है और वह बर्बाद हो रही हैं। प्रशासन को चाहिए कि यहां तत्काल खेती बंद कराकर एतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करें, जिससे कि इस इलाके का ऐतिहासिक महत्व बढ़ सके।

-नरसिंह त्यागी, राज्य पुरातत्व अधिकारी, लखनऊ

यहां जो अवशेष मिले हैं वो दो हजार वर्ष पूर्व से लेकर 14वीं शताब्दी के बीच के हैं। यहां ईसा पूर्व से कुषाण काल और मध्यकाल तक तीन कालखंडों का इतिहास छिपा पड़ा है। इस टीले के क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूम में विकसित किया जाना चाहिए। यह एक धरोहर है।

-पीके लाहिड़ी, पुरातत्वविद