- पत्थर सी हो गई आकांक्षा की मां, बदहवास है पूरा परिवार
- पुलिस की लापरवाही से अब तक आजाद हैं आकांक्षा को जलाने वाले दबंग
GORAKHPUR : दिन के करीब 1 बजे थे। आई नेक्स्ट टीम डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के बर्न वार्ड की ओर बढ़ रही थी। कराहती हुई चीखों की आवाज हर कदम के साथ बढ़ती जा रही थी। अचानक चीखें रुदाली में बदल गई। दूसरे वार्डो के लोग भी भागते हुए बर्न वार्ड की ओर आए। अंदर का नजारा देख वहां मौजूद हर शख्स की आखें नम हो गई। पांच हैवानों ने मिलकर जिस आकांक्षा को आग के हवाले किया, उसकी जलन भरी चीखों ने सबका मन झकझोर दिया। बदन पर पड़े फफोले जब फूटते तो वो असहनीय दर्द से चीख उठती। करीब 50 प्रतिशत चल चुकी आकांक्षा के पास बैठी उसकी मां पत्थर सी हो गई है।
फफोलों को निहारती रही मां
नौ महीने तक पेट में रखने के बाद आकांक्षा को जन्म देने वाली मां अब बुरी तरह झुलसी अपनी बेटी की तड़प को देखकर बिलख रही थी। बेटी के कंधे पर पड़े बड़े-बड़े फफोलों को फूटते देख वो सिहर उठती। फिर अचानक बेटी से दूर जाकर फूट-फूट कर रोने लगी। आई नेक्स्ट टीम ने उन्हें ढांढस बंधाया और बात करने की कोशिश की तो उनके मुंह से बस इतना निकला, बेटी ही नहीं, मेरा सब कुछ जल गया।
जिला अस्पताल में तड़प रही बेटी
आकांक्षा के पिता ब्याल भूषण शुक्ला एक प्राइवेट नौकरी करते हैं। उनके चार बच्चे है। आंकक्षा तीसरे नंबर की बेटी है। चारों बच्चों को पढ़ाना और उनकी अच्छी परवरिश करने में पिता का पूरी वेतन चली जाती है। ऐसे में आकांक्षा के साथ हुई दुर्घटना ने उनकी माली हालत और खराब कर दी है। जिला अस्पताल में सरकारी इलाज के अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा नहीं है। वह अपनी बेटी को हर पल मरते देख रहे हैं। लेकिन, मजबूर है, क्योंकि आर्थिक स्थिति ने उन्हें लाचार बना रखा है। जब ब्याल भूषण से आई नेक्स्ट ने बात की तो उनकी सिसकियों से एक ही बात निकली। मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं अपनी बेटी का इलाज किसी बड़े अस्पताल में करवा सकूं।
अक्सर छेड़ते थे लड़कियों को-
ब्याल भूषण ने बताया कि आरोपी गांव के दबंग है। उनके खिलाफ कभी कोई नहीं बोलता। मेरी बेटी पहली शिकार नहीं है। वह गांव की सड़क पर गुजरने वाली हर जवान लड़की को छेड़ते थे, लेकिन उनकी दबंगई के कारण कोई विरोध नहीं करता था। मैं पहला शख्स हूं, जिसने विरोध किया और उसी की सजा मेरी बेटी को मिली।
सदमे में होश खो बैठा है पिता
जिस बेटी को अपनी गोद में खिलाया। अंगुली पकड़कर चलना सिखाया। उसकी एक झींक पर भी पागल हो जाने वाला पिता आज अपनी बेटी के फफोले देखकर होश-हवास खो बैठा है। उसके आंसू सूख गए है। दिल का दर्द जबान पर कुछ ऐसे बस गया है कि बस वह बोले जा रहा है। अपना दर्द लोगों को सुनाए जा रहा है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करें। उसकी फूल सी नाजुक बेटी अंदर कराह रही है। जिसे पढ़ाकर साहब बनाने का सपना देखा था, आज वह अपनी जिंदगी के लिए लड़ रही है। बदहवास पिता से जब आई नेक्स्ट टीम मिली तो उसने एक ही बात कही आखिर मेरी बेटी का क्या कसूर था। उसने ऐसा क्या जुर्म किया कि उसे इन गुंडों ने जिंदा जला दिया।
ये कैसी पुलिस
वारदात को रोकने में अपराधियों के बीच पुलिस का खौफ अहम भूमिका अदा करता है। अगर पुलिस ऐसा गैरजिम्मेदार और निठल्ला रवैया अपनाएगी तो क्रिमिनल्स के हौसले तो बुलंद होंगे ही। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। पुलिस की निष्क्रियता ने अपराधियों को मानों खुली छूट दे दी कि वे आधी रात को किसी के भी घर में घुसें और उसकी लड़की को जिंदा जला दें। आई नेक्स्ट ने जब पूरे घटनाक्रम की पड़ताल की तो पुलिस की लापरवाही उजागर हो गई।
लापरवाही नं। एक
गांव में आए दिन छेड़छाड़ की घटनाएं होती रहती थीं, लेकिन इन दबंगों का डर ऐसा है कि मामले पुलिस तक पहुंचते ही नहीं। अगर पहुंच भी जाते है तो पुलिस उनको दबा दिया करती है। छेड़छाड़ को लेकर अगर सिकरीगंज पुलिस पहले से सख्त रही होती तो इस तरह की वारदात नहीं होती।
लापरवाही नं। दो
घटना के तीन दिन पहले आकांक्षा और उसकी मां को तीन युवकों ने घर पर चढ़कर गाली दी। उस पर आकांक्षा के पिता ने दोनों युवकों को दौड़ाकर पीटा तथा 100 नं। पर कॉल कर युवकों की शिकायत की। जिस पर एक एसआई ने पहुंचकर मामले की जानकारी ली और युवकों को समझा देने की बात कही, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जिससे आरोपियों में पुलिस का डर पैदा हो।
लापरवाही नं। तीन
फ्राइडे नाइट जब आकांक्षा को दबंगों ने जिदां जला दिया तब आकांक्षा के पिता ने एसओ सिकरीगंज को फोन किया तो उनका मोबाइल बंद था। पहले से चल रहे विवाद को देखते पीडि़त परिवार ने सभी पुलिस अधिकारियों के मोबाइल नं। अरेंज कर रखे थे। आकांक्षा के पिता ने सीओ खजनी को फोन लगाया। उनका फोन उठा तो लेकिन जिले से बाहर होने की बात कहकर उन्होंने सीओ बांसगांव का मोबाइल नं। दे दिया। पीडि़त पिता ने सीओ बांसगांव को फोन लगाया तो उनका फोन भी स्वीच ऑफ था। इसके बाद पीडि़त परिवार ने एसएसपी प्रदीप कुमार को फोन कर वारदात की जानकारी दी। एसएसपी ने मौके पर तुरंत पुलिस भेजने का अश्वासन दिया।
लापरवाही नं। चार
सिकरीगंज थाने से वारदात स्थल की दूरी करीब तीन किलोमीटर है, लेकिन लापरवाही की हद देखिए कि खुद एसएसपी के आदेश के बावजूद पुलिस को तीन किलोमीटर तय करने में डेढ़ घंटे लग गए। वहीं इन दबंगों का डर ऐसा कि गांव का भी कोई व्यक्ति पीडि़त परिवार की खोज-खबर लेने तक नहीं आया।
लापरवाही नं। पांच
मामले में शुरू से लापरवाही बरत रही पुलिस वारदात के दूसरे दिन भी कुछ नहीं कर पाई। आकांक्षा को आग के हवाले करने वाले हैवान खुली हवा में घूम रहे हैं जिससे पीडि़त परिवार डर के साए में है।
आकांक्षा पचास प्रतिशत जल गई है। उसका इलाज चल रहा है। अगर उसे अभी प्लास्टिक सर्जन को दिखा दिया जाए तो वह जल्द ही ठीक हो सकती है।
डॉ। एके श्रीवास्तव, जिला अस्पताल